…”रितु उसे गोद ले ले बेटा… देख तो कब से रोए जा रहा है… तुम्हारी भाभी अंजना किचन में है ना…!” रितु ने आशु को उठाकर गोद में ले लिया… कल फिर आशु के पैर के पास चीटियों की लाइन चली जा रही थी…
कनक लता जी ने देखा तो चिल्ला पड़ीं…” रितु बाबू को उठा वहां से… चीटियां हैं… तुझे दिख नहीं रहा…!” रितु ने आशु को हटा दिया…
इस बार रितु जब से अपने मायके आई थी… बदली बदली सी थी… उसके दोनों बच्चे तो दिन भर खेलने में लगे रहते… मां और भाभी घर किचन देखने में व्यस्त रहतीं… लेकिन रितु का मन किसी में नहीं लगता था…
मां ने एक बार उसकी बांह पकड़ कर कहा भी… “क्या हुआ बेटा… कुछ बात है क्या… ऐसी क्यों उखड़ी रहती हो…!” पर रितु ने बात को टाल दिया… अंजना और कनकलता दोनों को लग रहा था… “दीदी कुछ तो बात मन में गांठ बांधे है… जब से आई आशू से भी खुलकर नहीं मिली…!”
अंजना ने आशु को दीदी के बगल में सोफे पर लिटाया, और बिना कुछ कहे उसके लिए दूध बनाने चली गई… रितु उस सोफे से उठकर दूसरे पर चली गई…
आशु थोड़ी देर में सोफे से गिरने के कगार पर आ गया… रितु कनखियों से देख रही थी… मगर उठ नहीं रही थी… लेकिन जब कोई भी आता ना दिखा तो आशू बिल्कुल गिरने ही वाला था की रितु ने उसे गोद में भर लिया… और पुचकार कर उसे सीने से लगा लिया… कनकलता जी जो दरवाजे की ओट से सब देख रही थीं… ने आकर बेटी के माथे पर हाथ रख दिया… सहलाते हुए प्यार से पूछा…” क्या हुआ बेटा… यह क्या बात है…!”
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अंजना भी दूध लेकर आ गई… दीदी की गोद में आशु को देख खुश हो गई… उसने दूध भी दीदी के हाथों में थमा दिया… और जाने को हुई तो रितु ने उसे रोक दिया…” सुनो अंजना… भाई का बेटा मेरा अपना… और ननद का बेटा तुम्हारा कुछ नहीं…!” अंजना सकपका गई…” दीदी आप ये क्या बोल रही हैं…?”
” मैं अभी तक उस बात को नहीं भूल पाई…!”
कनकलता जी ने सर पकड़ लिया…” हाय रे लड़की… दो साल बीत गए… अभी तक तेरी सुई वहीं अटकी हुई है…!”
“हां मां… ऐसे ही तीन महीने का रूद्र था ना जब अंजना इस घर में बहू बनकर आई थी… और दो साल का सोम… दिन भर सोम मुझसे ज्यादा मामी के चक्कर काटता रहता था… अपनी तोतली बोली में मामी… मामी… उसी के कमरे में… उसी के साथ… बैठने… रहने… की जिद करता रहता था… फिर कैसे यह उन्हें संभाल नहीं पाई थी… कैसे मेरा तीन महीने का बच्चा बिस्तर से गिरकर… पूरे एक महीने तक दर्द से तड़पता रहा… जिंदगी भर का निशान… उसके माथे से लेकर आंख तक पड़ा वह लंबा दाग… किसके कारण है… अंजना के कारण ना……!”
अंजना के कदम लड़खड़ा गए…” यह कैसी बातें कर रही हैं दीदी आप… मेरे कारण नहीं हुआ… आप तो जानती हैं… सोम ने रूद्र को खींचकर नीचे पटक दिया था… मैं तो बस उन्हें संभाल नहीं पाई… आप तो जानती हैं ना तभी मुझे देखने लोग आ गए थे… मैं घूंघट में थी… रूद्र मेरे पास सो रहा था… सोम भागता हुआ आया और एक झटके में रूद्र को खींचकर गिरा दिया उसने……!”
“हां… यह सब कहानी तो मैं इससे पहले भी कई बार सुन चुकी… अंजना तुम बेचारे दो साल के नन्हे सोम को भी कितना ही डांट मार खिला चुकी इन बातों से… मगर मैं मां हूं अंजना… मैं जानती हूं… अगर तुम्हारी जगह मैं होती तो सोम रूद्र को कभी नहीं गिरा पाता… इसलिए मैं दो सालों तक यहां नहीं आई… अब आई देखने के लिए… की क्या ऐसे ही आशू भी गिरता पड़ता है… या तुम उसे बचा लेती हो… मगर तुम्हारा तो अभी भी वही हाल है…अभी अगर आशु को मैंने ना संभाला होता तो उसका भी हाल रुद्र की तरह……!”
” नहीं दीदी… आपके रहते ऐसा कभी नहीं होता… मुझे इसका पूरा भरोसा था… आपके भरोसे पर ही तो मैं यहां उसे छोड़ कर गई थी… नहीं तो क्या मैं अकेले उसे सोफे पर डालती… मां के पास ना छोड़ जाती… मुझे माफ कर दीजिए दीदी… उस दिन के लिए मैं फिर आपसे माफी मांगती हूं….!”
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कनक लता जी बीच में बोल पड़ीं…” नहीं अंजना… गलती तुम्हारी भी नहीं थी… हमें खुद बच्चों पर ध्यान रखना था… लेकिन लोगों के आने-जाने की व्यवस्था में हमारा ध्यान भटक गया… गलती सब की थी… इस बात को अब गांठ बांधकर क्या फायदा… रितु भूल जाओ बेटा… देखो तो आशू कितने प्यार से अपनी बुआ की गोद पाकर खुश है…!”
तभी दोनों बच्चे सोम और रूद्र भी आंगन में से दौड़ते हुए घर आए… मां… मां… की रट लगाए बच्चों को मामी ने बीच में ही दबोच लिया…” क्यों बच्चों… आज चलो हम आइसक्रीम खाने चलते हैं… चलोगे मामी के साथ…!”
दोनों बच्चे मां की तरफ देखने लगे, तो रितु ने मौन स्वीकृति दे दी… मन की गांठ खुलते ही पूरा घर खिल उठा…
आज दोनों बच्चों की जबान पर मां नहीं मामी का नाम खेल रहा था… “हम मामी के साथ जाएंगे.… आइसक्रीम खाने… चलो… चलो…!”
*** कई बार अनचाही बातों की गांठ मन में बांध कर रखने से वह नासूर बन चुभती रहती है… इसलिए जो मन में हो उसे बाहर निकाल देना चाहिए इससे मन हल्का हो जाता है… आपकी क्या राय है……
रश्मि झा मिश्रा