बिट्टू की थाली में फेका हुआ खाना देखकर दादी खूब बड़बडाईं। ” कितनी बार मना किया खाना कम परसो दोबारा दे देना पर सुने तब तो , मानों किसी बात का कोई असर ही नही पड़ता,बड़बड़ाते रहो करेगी अपने ही मन का जो उसे अच्छा लगेगा” और अपने बिस्तर पर जा कर बैठ गईं ,अब क्या करे? इसके अलावा कुछ कर भी तो नहीं सकती।
उधर सड़ा सा मुंह बना कर राधा बेटे को अपनी ओर खिंचते हुए कमरे की ओर चली गई उस कमरे की ओर जहां उसकी पूरी दुनिया हैं मनोरंजन से देकर मेकप और खाना से लेकर कपड़ा,सोना,मतलब हर वो चीज जो किसी स्त्री को अपने ही घर में अलग अलग जगहों से लेनी पड़ी है।वो उसने अपने कमरे में ही रख लिया है।
और पूरे दिन कमरे में पैक रहती है कमरे से सटा बाथरूम और उसी से सटा रसोई घर।जो खाना हो बना कर अपने कमरे में ।
पर सास हैं ना उनकी नज़र तो चौतरफा रहती है।
अच्छे बुरे का आंकलन,कम ज्यादा की परख सभी कुछ तो है उनको।हो भी क्यों ना बाल धूप में थोड़े ना सफ़ेद किये हैं।
तजुर्बा है जिंदगी का पर उनका तजुर्बा अब शायद फेल है।अब वो बात और है कि उनके जमाने में वही होता था तो बड़े कहते थे पर अब तो वैसा है नही अब तो बिल्कुल उल्टा है अब तो बच्चे चाहते है वो होता है वो चाहे जिंदगी के लिए अच्छा हो या बुरा पर करते वही हैं जो खुद का मन करता हैं।और सबसे बड़ी बात तो ये है कि उनकी अपनी ही अवलाद उनसे चार हाथ आगे है।उनको तो कुछ कहना यानि ‘ओखली में सर मारना ‘
तभी तो सब कुछ होते हुए भी सुकून नही है जिंदगी में।
पर क्या करें कुछ बोल नहीं सकती इसलिए खामोश रहती हैं।
अब उन्हें इस बात का अहसास है कि घर में चार पैसे कहां से आते हैं। क्योंकि पति के बेरोजगार रहने पर उन्होंने खुद निकलकर जाड़ा गर्मी बरसात इस देह पर सहा है।
रास्ते में चिलचिलाती धूप हो या हाड़ कपाती ठंड खेतों में काम करते अपने पिता जी को देखा है।
टपकते कमरे में सिकुड़ कर होने में बारिश के रूकने का इंतज़ार किया है।
नीली लकड़ी में चूल्हा पूकते मां को देखा है।
पैसे के भाव में कई कई दिनों तक चूल्हे के पास अवधे मुंह पड़े बर्तनों को निहारा है।
फटे कपड़ो में पेबंद लगाने के लिए कतरन के लिए दर्जी का मुंह तक निहारा है।
ये कह लो जिंदगी को बड़ी कठिनाइयों से गुजारा है।
इसलिए उन्हें लगता है कि उनके द्वारा बनाई गृहस्थी हो या शानोशौकत का सामान हो या फिर खाने पीने की चीज हो जाया ना जाये।
खाओ जी भर पर बर्बाद ना करो।
क्योंकि इनकी बर्बादी ही अपनी बर्बादी का कारण बनते हैं। और अब वो इस उम्र में अपनी आंखों के सामने कुछ भी बर्बाद होते हुए नही देख सकती ।
पर एक दिन उन्होंने देखा बहू रात की बची रोटी गाय को देने की जगह खुद खा रही थी,जिस बोतल का बचा हुआ दूध वो वाली में फेंक देती थी आज उसी का चाय बना कर पी रही थी।और तो और बिट्टू की छोटी पैंट की मोहड़ी खोल रही थी।
फिर उससे रहा नही गया तो वो पूछ बैठी अरे बहू मोहड़ी क्यों खोल रही हो छोटी हो गई है तो नई ले लो।
तब उसने बताया । मां मेरी नौकरी चली गई है और ये हैं तो एक्सीडेंट जब से हुआ है कम ही आफिस जाते हैं जिसकी वजह से तनख्वाह पूरी नही मिलती। तो दिक्कत हो रही है।
सच कहूं तो मुझे आज समझ में आया आप क्यों डाटती थी।
मां मुझे मांफ कर दीजिये।मैं आपको समझ नही पाई थी।
आगे से वही करूंगी जो आप कहेगी।कहते हुए उनके सीने से चिपक गई।इस पर उन्होंने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कोई बात नही गलती का अहसास हैना ही पश्चाताप है।आगे भी इसका ख्याल रखना कहते हुए माथे को चूम लिया।
साप्ताहिक प्रतियोगिता
#प्रायश्चित
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू
प्रयागराज