मर्यादा क्या सिर्फ स्त्री की – ऋतु अग्रवाल

“शोभित! क्या बात है? तबीयत तो ठीक है ना तुम्हारी। तुम तीन दिनों से ऑफिस भी नहीं जा रहे। चलो, डॉक्टर को दिखा लेते हैं।” मुग्धा ने शोभित के माथे को छूते हुए कहा।

        “नहीं! नहीं! मैं ठीक हूँ। तबीयत ठीक है मेरी, बस मन सा नहीं कर रहा कहीं जाने का।” शोभित अन्यमनस्क सा बोला।

     “हाँ, बुखार तो नहीं है तुम्हें। कोई परेशानी हो तो मुझे बताओ शायद मैं कुछ मदद कर सकूँ।” मुग्धा ने शोभित के पास बैठते हुए कहा।

       “नहीं मुग्धा, कोई परेशानी नहीं। बस कुछ दिन ब्रेक लेना चाहता हूँ।”शोभित ने करवट बदल ली।

     पर आखिर ऑफिस से छुट्टी ली भी कितनी जा सकती हैं और फिर ऑफिस से बॉस की अर्जेंट कॉल आने पर शोभित को ऑफिस जाना ही पड़ा। ऑफिस पहुँचते ही बॉस का बुलावा आ गया। बेमन सा शोभित बॉस के केबिन में पहुँचा।

        “मे आई कम इन मैडम?” शोभित के कहते ही उसकी बॉस रूपल ने अपनी कुर्सी घुमाई और उसे अंदर आने के लिए कहा।




         “हाँ तो शोभित जी! हम से बचने के लिए आप तो घर पर छुप कर बैठ गए। ऐसी भी क्या नाराजगी थी कि आपने ऑफिस आना ही छोड़ दिया।” रुपल मुस्कुराते हुए बोली।

       “ऐसा कुछ नहीं है मैडम। खैर छोड़िए, आप बताइए आपने मुझे किस काम के लिए बुलाया था?” शोभित अनमना हो रहा था।

      “अरे! अरे! इतनी भी क्या जल्दी है मिस्टर शोभित? कुछ देर बैठिए। हमारे साथ बातें कीजिए। काम तो होता रहेगा।” रुपल शोभित के नजदीक आते हुए बोली।

        “मैडम! मैं काफी दिनों से ऑफिस नहीं आया। मेरा काफी काम पेंडिंग है। मैं चलता हूँ। आपको कुछ काम हो तो कॉल कर दीजिएगा।” शोभित कुर्सी से खड़ा होते हुए बोला।

       “इतनी भी क्या जल्दी है शोभित? काम तो होता रहेगा। पहले कुछ प्यार व्यार की बातें कर लें।” रूपल ने शोभित को वापस कुर्सी पर धकेल दिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

        “चटाक” की जोरदार आवाज के साथ रूपल फर्श पर गिरी थी।




       “आपको शर्म नहीं आती। आप बेवजह मुझे परेशान कर रही हैं। मैं आपसे बात बार बार कह चुका हूँ कि मुझे आपसे किसी भी तरह का व्यक्तिगत संबंध रखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं शादीशुदा आदमी हूँ और अपने परिवार के साथ बहुत खुश हूँ पर आपको मेरी बात समझ नहीं आती। आपको इतनी दफा समझा चुका हूँ कि मैं विवाहेतर संबंधों में विश्वास नहीं रखता। आपका खुद का परिवार तो है नहीं बल्कि यूँ कहूँ कि अपनी तरक्की में परिवार को रोड़ा समझ आपने कभी अपना परिवार बनाना ही नहीं चाहा पर पुरुष सुख आपको चाहिए चाहे उसके लिए किसी का परिवार टूट जाए या किसी पुरुष की मर्यादा भंग हो जाए।” शोभित की साँस फूलने लगी।

        “मर्यादा—– माई फुट——-। किस मर्यादा की बात करते हो। मर्यादा सिर्फ स्त्रियों की होती है, पुरुष की कोई मर्यादा नहीं होती। पुरुष तो सदैव ही मर्यादाहीन होते हैं। दस जगह मुँह मारते फिरते हैं और मर्यादा की बात करते हैं। तुम्हारी सो कॉल्ड—— मर्यादा और वैसे भी जब किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा तो मर्यादा कैसे भंग हो जाएगी?”रूपल फुंफकारी।

      “माफ कीजिएगा मैडम! किसी को पता चले या ना चले, गलत गलत ही होता है और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मर्यादा सबकी होती है, फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। उसके संस्कार मर्यादित होने चाहिए पर आप जैसी घमंडी स्त्री कभी मर्यादा की परिभाषा नहीं समझ सकती और मैडम आपको बता दूँ कि हर पुरुष जगह जगह मुँह मारता नहीं फिरता, समझी आप। यह मेरी मर्यादा है कि मैं आपकी पुलिस शिकायत दर्ज नहीं करा रहा हूँ और यह भी मेरी ही मर्यादा है कि आज के बाद मैं इस ऑफिस में काम नहीं करूँगा जहाँ पुरुषों की मर्यादा को महत्वहीन समझा जाता है। कल मेरा त्यागपत्र आपको मिल जाएगा।”कहकर शोभित दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।

      ऑफिस के शीशों के दूसरी तरफ खड़े लोग एक स्त्री की मर्यादा को तार-तार और एक पुरुष की मर्यादा को मजबूत होते देख रहे थे। 

मौलिक सृजन

ऋतु अग्रवाल 

  मेरठ

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