मृगमरीचिगा – आरती झा आद्या

तू क्यूं नहीं समझ रही है रक्षा, शादीशुदा है वो। जिंदगी बर्बाद हो जाएगी तेरी.. रक्षा के ही दफ्तर में काम करने वाली सुरम्या उसे समझा रही थी।

पता नहीं तुझे उससे क्या दिक्कत है सुरम्या। कितना तो ख्याल रखता है मेरा। जब मुझे प्रिय कहकर संबोधित करता है तो ऐसा लगता है जैसे वो किसी पुरानी फिल्म का नायक और मैं नायिका हूं.. रक्षा खोई खोई सी आवाज में कहती है।

स्वप्न लोक से बाहर आ रक्षा। तू इतनी सुन्दर स्मार्ट इंटेलिजेंट है, कोई भी अच्छा लड़का तुझ से विवाह के तैयार हो जाएगा..सुरम्या रक्षा पर खफा होते हुए कहती है।

अरे मेरी जान तो वो भी तो शादी करेगा मुझसे। तूने कैसे सोच लिया कि हम दोनों विवाह सूत्र में नहीं बधेंगे। बहुत प्यार करता है अभिषेक मुझसे.. रक्षा कहती है।

अच्छा, दो साल से यही सुन रही हूं। कब आएगा वो शुभ दिन, उसने अपनी बीवी को बता दिया तुम्हारे बारे में..सुरम्या झुंझलाते हुए बोली।

नहीं अभी नहीं, अभिषेक को डर है कि सुनते ही छोड़ कर ना चली जाए.. रक्षा कहती है।

क्या.. अब भी तुझे लग रहा है कि वो तुझे से शादी करेगा। हम जिससे प्यार करते हैं उसे खोने से डरते हैं। अब तू सोच किसे खोना नहीं चाहता वो। अपनी मीठी मीठी बातों से जहर घोल रहा है तेरी जिंदगी में।बेवकूफ बना रहा है तुझे और तू कितनी आसानी से उसका शिकार हो गई है… अफसोस भरे स्वर में सुरम्या रक्षा को समझाने की कोशिश करती है।

समझ सकती हूं, तू मेरी दोस्त है सुरम्या। पर तू ये सोच उसके बच्चे भी तो हैं। उनके लिए कुछ व्यवस्था करके ही ना अपनी पत्नी को बताएगा। अभिषेक कहता है उसकी पत्नी उसका प्यार नहीं, उसके लिए एक फर्ज की तरह है।

भाड़ में जा तू और तेरा अभिषेक। तेरे ऊपर समय बर्बाद करना मूर्खता है…सुरम्या गुस्से में पर्स उठाकर खड़ी ही होती है कि रक्षा के घर की घंटी बजती है।

आ गया..सुरम्या मुंह बिचकाते हुए कहती है और रक्षा उठकर दरवाजा खोलती है।

हेलो सुरम्या.. अभिषेक उसे वहां देख कहता है।

रक्षा अपने नाम की तो लाज रख और सही गलत समझ अपने जीवन की रक्षा कर… अभिषेक के हेलो का बिना जवाब दिए रक्षा से बोलती हुई सुरम्या वहां से चली गई।

प्रिय आज क्या पट्टी पढ़ा रही थी वो तुम्हें.. अभिषेक रक्षा को बाहों में समेटता हुआ पूछता है।

छोड़ो ना उसे। क्यूं मूड खराब करना। मैंने तुम्हारे लिए आज स्पेशल कुछ बनाया है। तुम बैठो मैं लाती हूं.. बोल कर रक्षा रसोई की ओर चली गई।
प्रिय आज रात ऑफिस की पार्टी में तुम सामान्य गेटअप में ही आना.. रक्षा की गोद में सिर रखकर लेटते हुए और उसकी लटों से खेलते हुए अभिषेक ने कहा।

लेकिन मैंने लाल गाउन लिया है। तुम्हें भी तो पसंद है लाल रंग, फिर क्यूं… रक्षा गुस्सा होते हुए कहती है।


प्रिय मुझे मेरी पत्नी के साथ आना होगा। तुम्हें देख कर उसमें हीनता की भावना ना आए इसीलिए। उड़ती उड़ती खबर तो उसे मिल ही गई है… अभिषेक रक्षा को बातों से दुलराते हुए कहता है।

लेकिन.. रक्षा ये सुनकर अनमनी हो उठती है।

मेरी जान मेरी प्रिय… तुम तो जो डाल लो उसमें गजब ढाने लगती हो और ये सब भी तो मेरे लिए ही ना और मुझे तो तुम ऐसी ही सुन्दर प्यारी लगती हों.. अभिषेक रक्षा का चिबुक पकड़ आंखों में प्यार भर रक्षा की आंखों में देखता हुए कहता है।

ऐसे मत देखो, शर्म आती है मुझे। तुम जीते मैं हारी, सादे साधारण कपड़ों में ही आऊंगी.. रक्षा कहती है।

पार्टी में मिलते हैं फिर.. कहता हुआ अभिषेक गाड़ी की चाभी ले उठ खड़ा होता है।

इतनी जल्दी.. आज तो ऑफिस भी नहीं है.. रक्षा अभिषेक से कहती है।

बीवी की खिदमत में पेश होना है। शॉपिंग के लिए जाना है मोहतरमा को.. अभिषेक कहता हुआ वहां से निकल जाता है।

ये क्या पहना है तूने। वो गाउन को क्या हुआ.. पार्टी में रखा को सूरी के साधारण सलवार कुर्ते में देख सुरम्या परेशान होकर पूछती है।

गाउन में कुछ दिक्कत थी और अब इसके अलावा कुछ समझ नहीं आया इसीलिए.. इधर उधर देखती हुई रक्षा कहती है।

जिसे खोज रही है वो उधर है अपनी वाइफ के साथ..सुरम्या रक्षा की खोजती नजरें देख कहती है।

जा चली जा उसकी पास, लेकिन जान ले आज वो तुझे पहचान ले यही बहुत है…सुरम्या ये कहकर अन्य सहकर्मियों की ओर बढ़ जाती है।

डार्लिंग ये रक्षा है। ऑफिस में हमारे साथ ही है.. अभिषेक रखा को अपने समीप देख अपनी पत्नी से परिचय कराता हुआ कहता है।

अच्छा यही है वो, जो आजकल तुम पर डोरे डाल रही है। इतनी हैसियत तो नहीं लगती इसकी.. रक्षा को ऊपर से नीचे स्कैन करती हुई अभिषेक की पत्नी विद्रूपता से कहती है।

इस अपमान से रक्षा के तन मन में आग लग गई। उसने जवाब देने के लिए मुंह खोला ही था कि…

प्रिय इसकी क्या किसी की भी इतनी हैसियत नहीं हो सकती है। सिर्फ तुम्हारा हाई इतना हक है कि मुझ पर डोरे डाल सको.. बहुत ही अदा से अपनी पत्नी का हाथ अपने हाथों में लेता हुआ अभिषेक कहता है।

यह सुनकर रक्षा के गाल अपमान से आरक्त हो उठे।

एक बात कान खोल कर सुन लो, इस दोगले इंसान की इतनी हैसियत नहीं है कि मैं इस पर डोरे डालूं। डोर से बांध कर रखना इसे, आज मैं थी, कल कोई और होगी। अपने पति पर कहीं तुम सिर्फ डोरे डालते ही नहीं रह जाना और ये  डोर की आड़ तुम्हारी आंखों में धूल झोकता रहे … अपने अपमान से आहत रक्षा की आज आंखें खुल गई थी कि मृगमरीचिगा की ओर भागने का परिणाम कभी सार्थक नहीं होता है।

#अपमान

आरती झा आद्या

दिल्ली

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