मर्द को भी दर्द होता है  – संगीता अग्रवाल 

” पापा ये दीदी इतना क्यो रो रही हैं?” पांच साल की अनिशा मोहल्ले की एक शादी में विदाई के समय अपने पिता आदर्श से बोली।

” बेटा दीदी की विदाई हो रही है इसलिए रो रही हैं !” आदर्श ने बेटी को गोद में उठाते हुए कहा।

” पर दीदी को तो इतने सुन्दर कपड़े , गहने मिले हैं फिर रोने की क्या बात है मैं दीदी की जगह होती तो बहुत खुश होती और खुशी खुशी विदा होती !” नन्ही अनिशा की बात सुन आदर्श हंसने लगा। फिर अचानक उसे ख्याल आया एक दिन उसकी गुड़िया उसकी अनिशा भी तो ऐसे ही विदा हो जाएगी उसके कलेजे का टुकड़ा उससे दूर हो जाएगा ये सोच कर ही उसकी आंख भर आई।

” इतनी सी है और बातें देखो इसकी …चलो अब पापा की गोदी से नीचे उतरो दीदी विदा हो गई …अब जाकर सो जाओ !” तभी अनिशा की मां ज्योति बोली और उसे सुलाने के गई।

” ज्योति हमारी अनिशा भी एक दिन ऐसे ही विदा हो जाएगी हैं ना !” ज्योति के वापिस आने पर आदर्श उससे बोला।

” उसमे तो अभी बहुत वक़्त है वैसे भी आपको क्या फर्क पड़ता है आप तो पिता हैं एक मर्द… सारा दिन बाहर रहते हैं फर्क तो मुझे पड़ेगा क्योंकि एक तो मेरा उससे रिश्ता आपसे नौ महीने ज्यादा का है दूसरा मैं एक मां हूं !” ज्योति बोली।

ज्योति की बात सुन आदर्श सोचने लगा क्या सच में एक पिता को फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो मर्द होता है। पर मर्दों की भी तो अपनी भावनाएं होती है अपने बच्चों के प्रति क्या हुआ जो मर्द बच्चों को अपने पेट में नहीं रखते नौ महीने पर उन महीनों में खुद भी तो अपने बच्चे के सपने बुनते हैं।



धीरे धीरे समय बीता और अनिशा बड़ी हो गई आज उसकी शादी का वक़्त भी आ गया।

“क्या बात है ज्योति सब ठीक तो है ?” पत्नी को परेशान देख आदर्श ने पूछा।

“आज मेरी लाडो विदा हो जाएगी इस घर से मेरा घर सूना हो जाएगा कैसे रहूंगी मैं उसके बिना !” ज्योति आंख में आंसू भर बोली।

“हां हमारी लाडो के बिना तो ये घर काटने को दौड़ेगा पर ज्योति ये तो दुनिया की रीत है जिसे हर मां बाप को निभाना पड़ता है और बेटी को विदा करना ही पड़ता है …तुम दिल छोटा मत करो और हंसी खुशी बेटी को विदा करने की तैयारी करो !” आदर्श किसी तरह खुद को संभालता हुआ बोला।

“आप तो रहने दीजीए जाने मर्द किस मिट्टी के बने होते हैं जरा भी भावनाएं नहीं होती आप लोगों में पर हम औरतें कैसे खुद को समझाएं जब अपने जिगर का टुकड़ा विदा हो रहा हो !” ज्योति सिसकते हुए बोली।

” ऐसा नहीं है ज्योति अनिशा मेरी भी जान है मुझे भी दुख हो रहा बस फर्क इतना है मैं अभी अपने कर्तव्य निभाने में लगा हूं बेटी को अच्छे से विदा कर सकूं अभी यही प्राथमिकता है मेरी !” आदर्श बोला।

” जाइए आप अपने काम कीजिए आप एक मां के मन का हाल क्या जाने!” ज्योति बोली आदर्श कुछ बोलता उससे पहले फूल वाले ने आवाज़ दे दी और वो काम में लग गया कभी इधर भागदौड़ कभी उधर।

” इन्हे तो ऐसा लगता जैसे बेटी की फिक्र ही नहीं बस सब चीज अच्छी हो इनका नाम हो इतना काफी !” ज्योति सिसकते हुए खुद से बोली।



दोनों पति पत्नी शादी की रस्में करने में लगे थे ज्योति की आंख जहां बार बार बेटी की विदाई की सोच छलछला रही थी वहीं आदर्श का चेहरा थोड़ा कठोर था शादी की रस्में करते हुए भी उसका ध्यान इस बात पर था कि कुछ कमी ना रह जाए।

खैर सब कुछ अच्छे से हो गया और सबसे गले मिल रोती हुई अनिशा ससुराल को विदा हो गई। ज्योति बेटी की विदाई पर फफक फफक कर रो रही थी और आदर्श उसे आशीर्वाद दे सब काम सिमटवाने में लगा था। जब ज्यादातर मेहमान विदा हो गए तो ज्योति आदर्श को देखने लगी उसे आदर्श कहीं नजर नहीं आया।

“सो गए होंगे अपने कमरे में जाकर मर्द जो हैं क्या फर्क पड़ता है बेटी की विदाई पर ही कौन सा फर्क पड़ा था जनाब के एक आंसू तक नहीं निकला था !” ज्योति खुद से बड़बड़ाती हुई अपने कमरे की तरफ बढ़ी पर वहां आदर्श नहीं था। सब जगह ढूंढ़ कर जब ज्योति अनिशा के कमरे में आई तो देखा आदर्श बेटी की तस्वीर सीने से लगाए फूट फूट कर रो रहा है।

उसने आकर आदर्श के कंधे पर हाथ रखा तो आदर्श हिचकी ले रोने लगा। ” ज्योति मेरी लाडो चली गई अपने पापा को छोड़ ये घर सूना हो गया कल तक पापा पापा बोल सारे घर में चहकती थी अब पापा शब्द सुनने को तरस जाऊंगा मैं।” ये बोल आदर्श रोता हुआ बेटी की तस्वीर चूमने लगा।

ज्योति जो अब तक अपने दर्द को ही बड़ा समझ रही थी आदर्श को रोता देख सोचने लगी एक बाप मां से भी ज्यादा नाजुक दिल रखता है अपनी बेटियों के लिए उसे शायद मां से ज्यादा दर्द होता है बेटी की विदाई पर। फ़र्क सिर्फ इतना है वो पहले जिम्मेदारी निभाता है तब जाकर अपने आंसू बहाता है वो भी अकेले में इसलिए वो कठोर कहलाता है और एक औरत सबके सामने अपना मन हल्का कर लेती है इसलिए वो ममतामयी कहलाती है ये तो नाइंसाफी है ना मर्दों के साथ।

सच में दोस्तों अक्सर यही कहा जाता मर्द को दर्द नहीं होता था आप क्या जानो दर्द क्या होता है आप मर्द जो हो जबकि ये सच नहीं सच तो ये है मर्दों के कठोर चेहरे है पीछे एक नाजुक दिल होता है जिसे दर्द होता है।

आपकी क्या राय है मेरी रचना को लेकर बताइएगा जरूर ?

#दर्द 

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

 

 

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