मन की गहराई से। –  प्रतिभा परांजपे : Moral Stories in Hindi

मोबाइल बज उठा ,अंदाज़ तो था ही सुप्रिया का ही होगा ।

‘हाय सखी कैसी हो, जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं’ वगैरह बातें हुई।

 “और बता ,कितने दिन हो गए मिले ही नहीं! मायके आने का समय नहीं मिला क्या?” मैंने उसे उलाहना दिया।

‘ अरे आयी थी ,दो ही दिन के लिये ,

 बहुत जल्दबाजी में आना हुआ , मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब है तो 2 दिन वही निकल गये।

 ‘क्या हुआ आंटी को ?

 ,”ब्रेस्ट कैंसर डिटेक्ट हुआ है। 

‘बाप रे यह सब कब हुआ?’

अभी एक महिना पहले मै आयी थी,तब टेस्ट हुए थे।

सुप्रिया और मैं अल्पना, स्कूल की सहेलियां,  वह कभी-कभी  मेरे घर भी आती। उसका  घर स्कूल के पास था तो अक्सर हम बड़ी रिसेस में उसके घर पहुंच जाते। उसकी मम्मी बिल्कुल उसके जैसी ही सुंदर, गोरी चिट्टी ,अक्सर हमें शकरपारे मठरी,या पोहे खिलाती।

दसवीं पास होते ही हम दोनों के विषय अलग हो गए मैंने आर्ट्स तो सुप्रिया ने होम साइंस लिया। अब हमारे स्कूल और आगे कॉलेज भी अलग हो गए पर दोस्ती वैसी ही थी ।

 मेरी शादी  हो गई। मेरी ससुराल यही थी ।

कुछ सालों बाद सुप्रिया की भी शादी हो गई,वह रायपूर शिफ्ट हो गई, मायके आती तो मिलने जरूर आती,  दोनों अपनीअपनी गृहस्थी में  व्यस्त और मस्त थी।

कुछ सालों बाद सुप्रिया के छोटे भाई की शादी हुई,हम दोनों ने खूब मजे किए उसकी भाभी वर्षा मुझे कुछ मितभाषी पर अच्छी लगी आंटी जी भी बहुत खुश थी।

उसके बाद त्यौहारों का सिलसिला शुरू हुआ तो सुप्रिया के घर आना जाना होता रहा।

 अब की सुप्रिया कुछ अन मनी सी लगी कारण पूछने पर बोली भाभी और मां की बनती नहीं है। 

धीरे धीरे सभी अपनी दुनिया में उलझ गए। 

सुप्रिया ने अपना बुटीक खोल लिया था तो वह घर और काम दोनों की वजह से व्यस्त रहने लगी  , हम अक्सर मोबाइल पर बात कर लेती थी।

 1 दिन आंटी ने न्योता भेजा,  रितेश के बेटी हुई है सातवें महीने में ,उसका नाम करण है ।

मैं खुशी-खुशी पहुंच गई बच्ची  बहुत ही कमजोर नजर आ रही थी।

 इसके बाद

मेरे बेटे को जॉब मिली तो मैं उसके साथ उसका घर व्यवस्थित करने पुणेपहुंच गई वहां चार महिने रहकर जब वापस आई तोसुप्रिया से मिलना हुआ। 

उसने बताया चिंकी, रितेश की बेटी की तबीयत ठीक नहीं है, पैरों से कमजोर  है अभी तक अपने आप खड़ी नहीं हो सकती इलाज चल रहा है पर खास फायदा नही है।आंखों से भी थोड़ा कम दिखाई देता है।

एक दिन बाजार में रितेश और वर्षा से मुलाकात हुई ।वर्षा ने फिकी हंसी के साथ नमस्ते कि, आंटी कैसी है ?मैंने  पुछा तो — रितेश ने बताया, वो और वर्षा यहां पास में ही अलग मकान में रहते हैं।

बहुत दिनों से सुप्रिया का फोन नहीं आया तो मैंने सोचा आज सुमन आंटी को देख आना चाहिए।

घर गई तो आंटी लेटी हुई थी।  कीमोथेरेपी ने उन्हें बहुत ही कमजोर बना दिया था ।पलंग के पास ढेर सारी दवाइयां रखी थी मुझे देखते ही रोने लगी ।देख ना अल्पना क्या हो गया। सारा काम इन्हीं को करना पड़ता है मेरी सेवा भी करनी पड़ रही है, मैं तो मुश्किल से ही उठ पाती हूं।

 मैंने आंटी को ढाढस बंधाया ।ठीक हो जाएंगीआप  आजकल तो  नई दवाईयां और बढ़िया इलाज है ।

तभी अंकल भी आ गए, बाहर निकलते समय अंकल  बोले क्या करें शरीर का इलाज तो हो जाता है पर स्वभाव का क्या इलाज?

 उनकी बातों मैं समझ नहीं पायी। शायद 

वर्षाभाभी और आंटी के बीच के महायुद्ध की कहानी है।

समय अपनी गति से चल रहा था और अचानक आज अचानक ‌सुप्रिया का फोन,

मम्मी की हालत गंभीर है अस्पताल में है वह डॉक्टर ने जवाब दे दिया है पता नहीं कब क्या हो। भैया  मैं और पापा बारी-बारी से अस्पताल में रुकते हैं ।पापा की भी तबीयत और उम्र वैसी नहीं है , भैया की भी अपनी ड्यूटी है ,

समझ में नहीं आता क्या करें ?

“मैं आ सकती हूं बता कब कब आना ठीक होगा। मैं ५-६घंटे तक रुक सकती हूं समय तय कर लेते हैं” मैंने उसे ढांढस बंधाया।

मेरे वहां जाने से सुप्रिया को थोड़ा आराम मिला, वह घर के काम निपटा कर आती।

आंटी थोड़ा थोड़ी बातें करती तो थक जाती।

मैंने उनसे कहा कि आंटी मत बोलिए आपको थकान हो जाती है तो कहने लगी बोलने दे मन हल्का हो जाता है फिर बोली अल्पना एक बार मन की गहराई में छुपा रखी है अब उसका बोझ मुझसे सहा नहीं जाता मैं कहना चाहती हूं पर सुप्रिया बोलने नहीं देती।”

 “ठीक है आंटी आप कहिए”

“ बेटी तुम तो जानती हो वर्षा और रितेश ने अलग गृहस्थी कर ली है, और सब समझते हैं सास बहू की अनबन इसका कारण है पर असलियत कुछ और है। तुम्हें तो पता है चिंकी जन्म से ही कमजोर है। शुरू में लगा था की तेल मालिश, दवा टॉनिक से पैरों में ताकत आ जाएगी। मैंने  उसके पैरों पर खड़े होने के लिए वह सब किया पर, फायदा नहीं था।

 अब मेरी निराशा और चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा, लगता था बेटी बोझ बन कर आई है रितेश के जीवन में। धीरे धीरे मैं उससे नफरत करने लगी।

 बहू से मेरी वैसे भी ज्यादा बनती नहीं थी बहू ने अब नौकरी भी शुरू कर दी तो सारी जिम्मेदारी मुझ पर ही आन पड़ी रितेश से कहा तो कहने लगा चिंकी के इलाज के लिए काफी पैसा जुटाना पड़ेगा इसलिए वर्षा का नौकरी करना जरूरी है ।

इतना बोलते बोलते ही आंटी को थकान होने लगी। कुछ पल वह आंखें बंद कर लेटी रही। मैं सोचने लगी संबंधों में कड़वाहट के लिए क्या क्या वजह हो सकती है? थोड़ी ही देर में आंटी जी ने पानी मांगा मैंने हाथों का सहारा देकर उनका सर थोड़ा ऊंचा किया, सर के सारे बाल कीमो थेरेपी की वजह से झड़ गए थे! कितने सुंदर बाल थे उनके उस पर मोगरे की वेणी लगाती  आंटी का चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम गया बीमारी क्या-क्या ले जाती है इंसान से पर् लगता है कुछ दे भी जाती है तभी तो आंटी को यह एहसास हो रहा है।

वर्षा काम पर जाने लगी तो मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई। वर्षा जाते समय  चिंकी को डायपर लगा जाती ताकि मुझे उसे उठाकर बाथरूम ना ले जाना पड़े।

 कुछ दिनों के लगातार काम की वजह से कहो या मेरा बीपी हाई रहने से मेरा चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा, सारा गुस्सा या तो मैं इन पर या उस अबोध चिंकी पर उतारने लगी। चिंकी दो-तीन साल की  थी मेरी बातें तो समझ नहीं पाती पर मेरा रूखा व्यवहार उसे आहत कर जाता वह रोने लगती।

ऐसे ही एक दिन मैंने उस पर सारा गुस्सा उतार दिया मेरा बड़बड़ाना जारी था “अच्छा होता जन्म के समय ही ना रहती तो यह दुख नहीं देखना पड़ता मेरे बेटे को” बाहर दरवाजे पर खड़ी वर्षा सब सुन रही थी मेरा ध्यान नहीं था वह दौड़ कर आई और रोती हुई चिंकी को उठाकर अपने कमरे में चली गई। 2 दिन बाद वर्षा चिंकी को लेकर अपने मायके चली गई ।

2 महीने हो गए पर उसके आने के कोई आसार नजर नहीं आए तो मैंने बेटे से पूछा  वह भी कुछ बोला नहीं।

 1 दिन वर्षा वापस आयी और अपना सारा सामान समेटने लगी ,मैंने वजह जानना चाही तो बोली” अब आपको चिंकी की वजह से परेशान नहीं होना पड़ेगा हमने अलग घर देख लिया है!”

 मुझे अपने गलती का एहसास था , जाते समय वर्षा बोली” मम्मी जी मेरे यहां से जाने की वजह मैं किसी को नहीं बताऊंगी मैं नहीं चाहती आपके बेटे की नजरों में आप गिर जाए। “

वर्षा रितेश चले गए घर सूना सूना हो गया यह भी अनमने  से रहने लगे, मेरा मन अंदर ही अंदर मुझे खाने लगा।

 इसी बीच सुप्रिया आ गई तो थोड़ा अच्छा लगा। एक दिन वह रितेश वर्षा से मिलकर आयी तो बोली मम्मी चिंकी की आंखों का भी इलाज करवाना है उसको दिन-ब-दिन कम नजर आएगा ऐसा डॉक्टर बता रहे हैं ।भाभी ने अपनी मां को चिंकी की देखभाल के लिए बुला लिया है। 

अब मुझे अपनी गलतियों का पछतावा हो रहा था पर कहती भी किस मुंह से? तभी शायद भगवान ने मुझे यह बीमारी दी और जब मेरा शरीर मेरा साथ छोड़ने लगा तब जाकर मुझे चिंकी की विवशता का एहसास होने लगा!

 ।अपनी गलतियों का बोझ मेरे मन में गहराई तक समा गया है जो मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है मैं उससे मुक्त होना चाहती हूं।

 मेरे मरने के बाद मेरी आंखें मैं चिंकी को देना चाहती हूं, यह कोई उस पर एहसान नहीं बल्कि अपने पाप का  बोझ कम करने की कोशिश है अगर वर्षा स्वीकार ले तो मेरी आत्मा को शांति मिलेगी।

 कहते कहते आंटी की आंखों से आंसू बहने लगे आगे वह कुछ बोल नहीं पायी।

सारी बातें सुनकर मैं सन्न रह गई पर आंटी जी की जो छवि दुनिया के सामने हैं उसे मैं धूमिल नहीं करना चाहती थी बाहर आकर डॉक्टर साहब से उनके नेत्रदान के विषय में बातचीत की तो उन्होंने फार्म भर कर आंटी जी का अंगूठा लगवा लिया।

दूसरे ही दिन सुप्रिया ने बताया आंटी जी नहीं रही।

  साल भर बाद रितेश का फोन आया चिंकी का जन्मदिन है तुम्हें आना है ,स्थान वही पुराना घर पापा वाला। मुझे भी चिंकी को देखने की इच्छा थी। उसे देखा तो लगा उसकी आंखों से आंटी का अक्स झांक रहा है।

—————————++++++——-+++++लेखिका प्रतिभा परांजपे

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