मन की गांठ : माधुरी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

विवेक जी की बी एम डब्लू ६० किलोमीटर की स्पीड से दिल्ली की तरफ भागी चली जारही थी।गाड़ी उनका बेटा नितिन चला रहा था। गाड़ी ड्राइव करने के साथ ही वह कोई फिल्मी रोमांटिक गाना भी गुनगुना रहा था,क्योंकि उसका मन बहुत खुश था।वह अपने मम्मी पापा के साथ जयपुर अपनी होने बाली लाइफ पार्टनर मिताली से मिलवाने जयपुर आया था।मिताली से उसका परिचय एम बी ए के दौरान ही हुआ था,साथ पढ़ते-पढ़ते न जाने वे दोनों एक दूसरे के मन की भाषा को भी पढ़ने लगे थे।

दोनो के मन में ही प्यार के अंकुर फूट चुके थे।एमबी ए पूरा होते ही नितिन ने मिताली से अपने मन की बात कह दी थी कि वह उससे शादी करना चाहता है।यह सुन कर मिताली के गाल सुर्ख लाल हो गए थे और उसनेलजाकर अपनी पलकें झुका ली थीं।

मैं जल्दी ही अपने मम्मी पापा को लेकर तुम्हारा हाथ मांगने जयपुर आऊंगा।तिस पर मिताली ने कहा था कि तुम्हें पूरा यकीन है कि तुम्हारे मम्मी पापा तुम्हारी पसंद पर अपनी स्वीकृति दे देंगे।क्योंकि तुम तो एक रईस परिवार से ताल्लुक रखते हो जबकि मेरे पापा तो सिर्फ एक प्राइवेट कम्पनी में जनरल मैनेजर हैं।

हां मेरे मम्मी पापा के लिए मेरी खुशी से बढ़ कर कुछ भी नही है मुझे उन पर पूरा भरोसा है।

जब नितिन ने अपने घर में मिताली के बारे में बताया तो वे लोग सहर्ष ही जयपुर जाकर मिताली के परिवार से मिलने को तैयार हो गए।मिताली के परिवार के बारे में जानकारीनितिन ने अपने मम्मी पापा को दे दी थी कि मिताली के पापा किसी प्राइवेट कम्पनी में जनरल मैनेजर

हैं व उसकी मां होम मेकर,नितिन के मम्मी-पापा भी आधुनिक विचारों के थे किसी जाति-पाति से परे व दहेज प्रथा के कट्टर विरोधी थे उनको सिर्फ अपने बेटे नितिन की पसंद पर भरोसा था । इसीलिए बस नितिन के कहने पर उसकी पसंद पर अपनी मुहर लगाने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे।

मिताली के घर पंहुच कर जैसे ही दरवाजे की घंटी बजाई दरबाजा मिताली के पापा ने खोला क्योंकि मिताली की मां मेहमानों के स्वागत के लिए रसोई में व्यस्त थी और मिताली उनकी मदद करबा रही थी।

मिताली के पापा को देखते ही नितिन की मम्मी सुधा एकदम चौंक गई थी और अपने अतीत के पिछले २५ सालों में चली गई थी।

कमोबेश यही हाल सुधा को यों नितिन की मम्मी के रूप में देखकर,मिताली के पिता दिनकर जी का भी था उनके चेहरे पर भी सुधा को यों अपने सामने देखकर हबाइयां उड़ गई थी लेकिन दिनकर जी व सुधा ने तुरंत ही अपने आपको संभाल लिया था।

मिताली से मिलकर सुधा को बहुत अच्छा लगा क्योंकि तीखे नैन नक्श व सांवली रंगत लिए हुए सुन्दर होने के के साथ साथ संस्कारी भी थी, तकरीबन तीन घंटे तक वे लोग वहां मिताली के घर रुके थे ,इस दौरान मिताली के व्यवहार ने सच में सुधा का मन मोह लिया था।मन में विचारों का द्वंद्व चल रहा था।एक मन कह रहा था कि जब सब कुछ अच्छा लग रहा है

तो तो क्यों न तुरंत हां कह कर रिश्ते पर अपनी हां की रजामंदी दें तो वही दूसरी ओर मन में बिगत में हुई २५ साल पहले हुई घटना का बदला लेने का बिचारी कुलबुला रहा था।जयपुर से दिल्ली लौटते समय पूरे तीन घंटे सुधा बस अनमनी सी बैठी रही,कई बार नितिन ने पूछा मां मिताली पसंद आई न आपको?

हां बेटा निसंदेह मिताली बहुत मिलनसार संस्कारी लड़की है,तो चलो फिर किसी रेस्तरां में बैठ कर कुछ चाय नाश्ता करते हैं,

नहीं बेटा,सीधे घर चलते हैं मेरे सिर में दर्द हो रहा है मुझे चाय नाश्ता नहीं करना है, नितिन के पापा ने भी सुधा को एक दो बार टोका कि मिताली के घर से लौटने के बाद से तुम एकदम गुमसुम सी क्यों हो गई हो।

जब हम लोग जयपुर के लिए निकले थे तो तुमने तो मिताली के लिए अपना सुन्दर सा हार भी ले लिया था कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो मैं अपनी बहू को। हार पहनाकर रिश्ता पक्का करने की मुहर लगा दूंगी,फिर अचानक तुम्हारे मूड को क्या हो गया ऐसा कि कुछ ठीक लगने पर भीतुमनेउन लोगों को यह कहकर चिंतित कर दिया कि दिल्ली जाकर जैसा भी विचार होगा सूचित कर देंगे।

दिल्ली लौट कर सुधा चेंज करके तुरंत लेट गई कि मेरे सिर में दर्द हो रहा है मैं सोना चाहती हूं।नितिन भी चिंतित था कि अचानक मां को हो क्या गया है। उधर मिताली के पापा के मन में भी उथल पुथल मचा हुई थी कि जिस सुधा को सांवली रंगत का होने के कारण रिश्ता करने से मना कर दिया था,तो अब सुधा उनकी सांवली बेटी को क्यों करअपनाएगी भला।

सोने का बहाना करके सुधा लेट तो गई थी लेकिन नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। पिछले पच्चीस साल पहले लगी मन की गांठ आज अचानक सामने आ गई थी।

पच्चीस साल पहले दिनकर जी सुधा को देखने आए थे,सब कुछ पसंद आने पर भी रिश्ता यह कह कर ठुकरा दिया था कि किसी सांवली लड़की से मुझे शादी नहीं करनी।सुधा का दिल इस बात से बहुत आहत हो गया था।वह बहुत दिनों तक किसी लड़के के सामने जो रिश्ते के लिए देखने आते थे,सामने आने से इन्कार कर देती।यह तो विवेक का बड़प्पन था जो उसने सुधा को वह जैसी थी उसी रूप में स्वीकार किया।सुधा विवेक के साथ बहुत खुश हाल जिन्दगी बिता रही थी मन में बस एक ही ख्वाब था कि नितिन की शादी हो जाए तो ये जिम्मेदारी भी खत्म हो जायगी।और नितिन ने मिताली को पसंद करके यह ख्वाब भी पूरा कर दिया था।

पूरी रात सुधा के मन में विचारों का घमासान चलता रहा कि क्या मिताली की सांवली रंगत को लेकर वह इस रिश्ते को नकार कर दिनकर से उसकी उपेक्षा का बदला ले।तभी उसकी अंतरात्मा से आबाज आती कि पच्चीस साल पहले घटी इस घटना का मासूम मिताली का क्या लेना देना,उसे तो इस बावत कुछ मालूम भी नहीं है।उस विचारी का क्या दोष है,वेवजह उसे सजा क्यों दीजाय, बल्कि वह तो उसके बेटे नितिन से प्यार करती है।

सारी रात सुधा की करबटें लेते ही बीती,फिर अंततः अपने बेटे की खुशी के लिए उसने अपने साथ हुए दिनकर के उपेक्षा पूर्ण व्यवहार को भूल कर,मिताली को अपने होने बाली बहू के रूप में स्वीकार कर लिया।इस निर्णय के लेते ही सुधा का मन हल्का हो गया क्योंकि अब उसके #मन की गांठ मिट चुकी थी।

सुबह होते ही उसने विवेक व नितिन से कहा कि अगले हफ्ते हम लोग जयपुर नितिन की सगाई मिताली से पक्की करने चलेंगे।इसकी सूचना जयपुरमिताली के परिवार को देदो।इस सूचना को सुन कर दिनकर जी के दिल का बोझ भी हल्का होगया, क्योंकि सुधा को नितिन की मां के रूप में देखकर उनके मन में भी पिछले पच्चीस सालों की बात उभर कर सामने आगई थी,वे भी यही सोच कर चिंतित थे कि कहीं उनकी करनी का फल उनकी बेटी को न भोगना पड़े। अंत भला तो सब भला,सुधा ने सच्चे मन से मिताली को अपनाकर अपने साफ दिल का परिचय दे दिया था।मिताली व नितिन की शादी हो चुकी है दोनों परिवारों में आपसी तालमेल बहुत अच्छा है।सभी खुश हैं इस तालमेल से।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली

मन की गांठ शब्द पर आधारित कहानी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!