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सीमा सुबह से भाग-दौड़ में लगी थी,मानो सारी जिम्मेदारी सिर्फ उसी के कंधों पर हो ना खाने – पीने का होश और ना ही साज सिंगार का। बड़ी बहू के फर्ज की सारी जिम्मेदारी
बखूबी निभाया था सीमा ने। जिसे देखो हर किसी की जुबान पर सीमा का ही नाम था।बहू!” रीति रिवाज की सारी तैयारियां हो गई चाची सास ने आवाज लगाई ” ।”हां चाची सब तैयार है मैंने दो बार देख लिया है।” भाभी! ” मेरी अटैची में सब रख दिया.”. गीता अपने कमरे से आवाज़ लगाई।” हां नन्द रानी मेरे रहते चिंता की कोई बात नहीं है।सब कुछ तैयार है।अब तो आप जमाईं सा से मिलने के ख्वाब देखो.. बाकी मैं सब संभाल लूंगी।”
सीमा!” जो मैंने पैसे दिए थे तुम्हें रखने को टेंट वाला मांग रहा है.. देना तो” समीर ने कहा।जी! ” आई . .. साड़ी की पल्लू से माथे के पसीने को पोंछती हुई सीमा ने तिजोरी से पैसे दिए।समीर के मां-बाप नहीं थे, चाचा – चाची ने ही पढ़ाया लिखाया था तो समीर सीमा भी अपनी जिम्मेदारी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते था।
हालांकि उनके खुद के बच्चों को कुछ भी लेना-देना नहीं था। चाची जी का व्यवहार भी समीर और सीमा के प्रति उतना अच्छा नहीं था जितना लगाव उनको अपने बच्चों से था उतना स्नेह समीर के प्रति नहीं था। हमेशा पराया का अहसास दिलाती रहती थी चाची जी।समीर अहसान तले दबा था कि माता पिता का प्यार ना सही पर एक सुरक्षित छत और पेट भरने के लिए दो वक्त के भोजन में कमी नहीं थी चाचा जी के घर में।
समीर घर में बड़ा था लेकिन कभी भी बड़ों सा सम्मान नहीं दिया था छोटे भाई-बहन ने।सब की जी हुजूरी करनी पड़ती वो अलग से। मां – बाप जितना लाड़ – दुलार से अपनी औलाद को पालते हैं वो और रिश्तों में कभी नहीं मिलता।
बारात दरवाजे पर आ लगी थी। द्वार पूजा की तैयारी हो चुकी थी, दुल्हे के स्वागत में रस्में होनी थी…. तभी पुरोहित जी ने समीर को बुलाया बेटा!” आगे आओ कुछ रस्में निभानी हैं।” तभी चाची जी ने अपने बेटे गौरव को आगे करते हुए कहा… अरे! ” पंडित जी जब उसका सगा भाई है तो समीर क्यों करेगा ये रीति रिवाज।”
समीर को बहन से बहुत लगाव था और बड़े उत्साह से वो रस्म के लिए आगे कदम बढ़ाया ही था कि चाची जी की बातों ने उसे आहत किया और उसने झट से कदम पीछे हटा लिया। छोटी – छोटी बातें जिनका विषेश मोल नहीं होता है पर मन में दरार डाल जाती हैं।सारा खर्च समीर ही कर रहा था क्योंकि बड़े भाई की जिम्मेदारी है
ये चाची और चाचा जी हमेशा याद दिलाते पर कर्तव्य ज्यादा बलवान था अधिकार के आगे। कैसा भेद-भाव था…आज समीर की आंखें नम पड़ गई थी।वो अंदर आकर बैठ गया… उसके उतरे चेहरे के भाव सीमा पढ़ चुकी थी क्योंकि ये कोई पहली बार नहीं हुआ था।
पानी का गिलास पकड़ाते हुए सीमा बोली!” अरे चलो ना देखें और भी मेहमान आएं हैं…. कितने दिनों बाद मिलना होगा सबसे और हां तुम्हारे मामा – मामी जी भी तो आएं हैं।उनका आशीर्वाद भी तो लेना है। शादी व्याह ही तो होता है जहां एक जगह पर सबसे मिलना – जुलना होता है।”
” तुम जाओ मैं आता हूं थोड़ी देर में.”… अरे! नहीं – नहीं मैं अकेली मिलूंगी तो उन्हें अच्छा थोड़े ही लगेगा।” सीमा किसी तरह समीर को कमरे से बाहर ले जाना चाहती थी। बहुत ही सुलझी और सुशील लड़की थी सीमा।उसको जितना जिम्मेदारी निभाना आता था उतना ही नजर अंदाज भी करना। समीर के साथ कदम से कदम मिलाकर हर मोड़ पर वो खड़ी रहती थी सारे रिश्तों का प्यार – सम्मान उसने समीर की झोली में भर दिया हो।
फेरे भी अच्छी तरह से हो गए बिटिया विदा हो गई। सभी मेहमान समीर और सीमा की तारीफ करते नहीं थक रहे थे।ये बात चाची जी को हजम नहीं हो रही थी। अरे!” हमने भी तो कितना खर्च किया है समीर की पढ़ाई – लिखाई और पालने – पोसने में.. . अपनी बहन की शादी की जिम्मेदारी उठने में कोई एहसान थोड़े ही किया है समीर ने।”
इतनी कटाक्ष जुबान थी कि समीर को आहत कर गई थी और उसके मन में कहीं ना कहीं गांठ पड़ चुकी थी जो शायद रिश्ते को कमजोर कर चुकी थी। उसने हमेशा से जिस परिवार को अपना माना था और अपनी हर जिम्मेदारी बखूबी निभाया था आज उसे अहसास हो गया था कि ये परिवार सिर्फ उससे उम्मीदें ही करता है अपनापन उसे ना तो कल मिला था ना आज।
मेहमानों की खूब अच्छे से विदाई की थी चाची जी ने अब सीमा और समीर के गाड़ी का वक्त हो गया था। सीमा ने चाची जी से इजाजत मांगी तो चाची जी ने एक बेकार सी साड़ी और एक मिठाई का डिब्बा पकड़ाते हुए कहा कि,” घर वालों की क्या विदाई करना… रास्ते में खा लेना और हां अभी देवर की भी शादी करनी है बड़ी भाभी का फर्ज भूलना नहीं।” सीमा ने चाची जी और चाचा जी के पैर छुए और निकल गए स्टेशन के लिए।
जितने उल्लास से शादी में शरीक हुए थे जाते समय दिल उदास हो गया था कि ” समीर कितना प्यार करते थे बहन से कोई रीति रिवाज उनसे भी करवा लेते तो क्या जाता” सीमा के मन में उधेड़बुन चल रही थी।
कहते हैं ना रिश्तों में अगर तनाव और मनभेद हो जाए तो वो पुनः उस गर्मजोशी से नहीं जुड़ते हैं और समीर के मन में कहीं न कहीं गांठ पड़ चुकी थी। रास्ते भर ना खाया – पिआ और ना ज्यादा बात किया।समय का चक्र अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ ही जाता है और वक्त ऐसा मरहम है कि घाव को भर ही देता है। समीर के घर में खुशियों ने दस्तक दी थी। बेटी का जन्म हुआ था।गोद में लेते ही समीर की आंखें भर आईं थीं कि कोई अपना कहने वाली उसकी जिंदगी में आ
चुकी थी। उसकी किलकारी ने घर के कोनों को संगीतमय कर दिया था।अब उसको भी कन्यादान का हक ईश्वर ने दिया था।
चाची जी उसकी इस खुशी में शरीक नहीं हुई थी। समीर को थोड़ा बुरा तो लगा था पर उसने अपने मां – पापा की तस्वीर के सामने बिटिया को रखते हुए कहा कि,” मैं नहीं जानता की आप लोग मुझे कितना प्यार देते पर मैं अपनी बेटी को आप सभी के प्यार और आशीर्वाद की कभी भी कमी नहीं होने दूंगा। उसकी आंखों से आंसू अनवरत बह रहे थे मानो सारा दर्द सैलाब बन कर बह रहा हो।
उसने कभी भी चाचा – चाची का अपमान नहीं किया पर दिल से रिश्ता खत्म हो चुका था और अब वो ज्यादा नहीं जाता था उनके घर।सुख में भले ना शामिल होता था पर दुख में बड़े बेटे की जिम्मेदारी से कभी भी पीछे नहीं हटा था।
चाची जी के बेटे ने कोई भी जिम्मेदारी नहीं उठाई थी। कहते हैं ना ‘ जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे ‘ । बुढ़ापे में चाचा – चाची जी को समीर के घर में ही शरण लेनी पड़ी थी। पछतावा तो उनकी आंखों में साफ़ – साफ दिखाई देता था पर समीर और सीमा ने उनके मान – सम्मान और सेवा में कभी भी भेदभाव नहीं किया और ना ही पुरानी बातों का जिक्र किया था। अंतिम समय में चाची जी हांथ जोड़ कर समीर से माफी मांगी थी और समीर ने सबकुछ भूलकर माफ कर दिया था।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी