मन की गांठ – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

 क्यों अम्मा जी, घर में सब तो बराबर नहीं होते, ऐसा आपने ही तो कहा था। अब ननद जी की बेटी के भात के लिए आप थोड़े ही फैसला करेंगे कि कौन कितने पैसे देगा। रमन अगर ज्यादा पैसा दे रहा है तो कोई बात नहीं उसने आपसे लिया भी तो ज्यादा ही है। जाने कितने सालों पहले माधवी के मन की गांठ आज खुल रही थी। 

        आइए आपको इनके परिवार के विषय में बताऊं। वर्मा जी के तीन बच्चे थे बड़ा बेटा चमन और बहु राधिका दूसरा बेटा रमन बहु माधवी और उन दोनों की सबसे बड़ी बहन गायत्री थी। बड़ी बहन गायत्री की शादी के कुछ ही समय बाद चमन का भी विवाह हुआ राधिका बहू बनकर घर में आ गई।

घर का हर नियम उसे अच्छे से समझाया गया। चमन अपने पिता के साथ ही उनकी रेडीमेड गारमेंट्स दुकान पर ही बैठता था। राधिका के घर से विवाह के समय जो भी कैश और सामान आया था वह सब घर और दुकान की जरूरत के लिए ले लिया गया। राधिका के ससुराल वाले ही नहीं अपितु मायके वाले गहने भी यह कह कर ले लिए गए कि दुकान में घाटा चल रहा है

और इस दुकान को अपग्रेड करना होगा क्योंकि आजकल लोग ब्रांडेड कपड़े ही खरीदने लगे हैं।चमन को अपने पास में भी कुछ पैसे अलग रखना चाहिए ऐसी समझ और संस्कार तो चमन के पास थे ही नहीं , सासू मां के हिसाब से घर में खाने का सामान और पहनने के कपड़े तो बहुरानी को मिल ही जाते हैं इसके  अधिक की जरूरत क्या?

विवाह के तीसरे साल तक ही चमन एक बेटी और एक बेटे का भी बाप बन चुका था परंतु राधिका के जीवन में कोई फर्क नहीं आया था इसके विपरीत अब वह अपने बच्चों की चीजों के लिए भी सासू मां पर निर्भर थी और केवल घर का काम करने की मशीन ही बनी हुई थी। 

    अपनी भाभी का हाल देखकर रमन थोड़ा समझदार  निकला। बीकॉम करने के बाद वह भी कोई नौकरी ढूंढने की बजाए दुकान पर ही जाने लगा। वह चमन के जैसे नहीं था दुकान की हर खरीद फरोख्त और गल्ले पर वह पूरी नजर रखता था और कुछ समय बाद उसने वर्मा जी से दुकान के लाभ में से हर महीने में तनख्वाह के रूप में कुछ पैसे मांगे। थोड़ी बहुत आना-कानी के बाद यह बात मान ली गई और दोनों भाइयों को बराबर पैसे दिए जाने लगे। जहां चमन के पैसे तो राधिका के घर और बच्चों में ही लग जाते थे इसके विपरीत रमन अपने पैसे जोड़ने में ही लगा था। 

      रमन का विवाह जब माधवी के साथ हुआ तो रमन ने अपनी कोई इच्छा नहीं मारी उसके पास घूमने के लिए भी पैसे थे और माधवी को भी सासू मां ने बहुत गहने बनवा कर दिए थे। राधिका ने जब अपने गहनों का सासू मां से कहा तो उन्होंने कहा तुमको भी तो गहने बहुत चढ़े थे परंतु वह तो बिजनेस बढ़ाने में ही तो खर्च हुए, उससे तुम्हारे पति को ही तो फायदा हुआ अब इसकी शादी हो रही है तो नई बहू को तो सब कुछ मिलेगा ही अब दोनों के गहने तो बनवाए नहीं जा सकते जरूरत पड़ने पर तुम दोनों बहुएं मिल बांटकर पहन लेना। 

माधवी के घर में आने के बाद रमन ने सबको स्पष्ट रूप से कह दिया कि माधवी अपने गहने किसी को भी नहीं देगी। केवल गहने ही नहीं घर में हर काम के लिए अब नियम ही बदल चुके थे। अब घर के काम करने के लिए भी सहायिका का आगमन हो चुका था। राधिका अभी कुछ भी कहे तो उसको यही ताना मिलता था कि तुम  घर में देवरानी से जलती हो। घर में भी सबको यूं ही लगता था कि घर का अधिकतर खर्चा तो चमन के परिवार पर ही होता है ऐसे ही कुछ ख्याल के कारण इन दोनों को अलग कर दिया गया।

 अनायास ही सबके इस पक्षपातरूप व्यवहार से राधिका के मन में एक गांठ लग गई थी जिसका नतीजा यह हुआ कि रमन ने कहा भाई को इस दुकान से भी अलग कर दिया जाए। वह दुकान जो कि चमन की ही मेहनत से खड़ी हुई थी उसी में से ही उसको अलग करके हिस्से के रूप में कुछ पैसे दे दिए गए। अब दुकान बनाना बढ़ाना और उसका नाम चलाना यह सब इतना आसान तो ना था परंतु चमन को मेहनत

करनी आती थी समय के अंतराल में , कुछ उधार लेकर और कुछ अपनी ईमानदारी के कारण चमन दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करता गया और आज वह भी बहुत अच्छे मुकाम में था। 

      बहन गायत्री की बेटी की शादी थी और उसमें मायरे की रस्म के लिए यह फैसला हुआ था कि दोनों भाई बराबर का पैसा और गहना देंगे।(मायरे की रस्म में बहन का भाई अपने भांजे या भांजी के विवाह के समय पैसे गहने वस्त्र इत्यादि उपहार स्वरूप देता है)। अब के राधिका ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि मुझे तो कोई गहने मिले नहीं चाहे आपका कितना भी अच्छा समय आया हो पूरे समय में आपको एक बार भी मन नहीं हुआ कि मेरे मायके और ससुराल के गहनों में से कुछ भी मुझे तो बनवाया जाए।  राधिका के उन गहनों में जिस पर आपने मेरा हिस्सा कहा था उस हिस्से को मेरी तरफ से मायरे में दे दिया जाए। 

     अब समय बदल चुका था तब की तरह पूरा घर मिलकर किसी भी तरह से राधिका पर दबाव नहीं डाल सकते थे। थोड़ा बहुत मनमुटाव होने के बाद शादी संपन्न हो गई। 

     राधिका ने विवाह के बाद गायत्री की पुत्री, दामाद को अपने घर खाने पर बुलाया ,  उस समय गायत्री और अपने वर्मा परिवार को भी बुलाया गया था। गायत्री की पुत्री को विदा करते समय राधिका ने एक सेट और बहुत सारा वही सामान दिया जो कि उससे मांगा गया था और उस समय राधिका  के मना करने पर सबने बहुत कुछ बुरा भला बोला था जो की और रिश्तेदारों ने राधिका को बतला ही दिया था। परन्तु अब  सब नि:शब्द थे। 

        मन में किसी भी व्यवहार से जब गांठे लगती है तो समय का अंतराल भी उसे खोल नहीं सकता वह मन में लगी ही रह जाती है। आपका क्या ख्याल है पाठकगण? कॉमेंट्स में बताइए।

मधु वशिष्ठ , फरीदाबाद, हरियाणा।

मन की गांठ कहानी प्रतियोगिता के अंतर्गत

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