“आपको तो मेरी हर बात ग़लत लगती है। जब तक दीदी यहाँ नहीं आतीं तब तक तो आपको मुझसे कोई शिक़ायत नहीं होती पर जैसे ही दीदी आती हैं आपको मेरी हर बात बुरी लगने लगती है। उनके जाने के बाद तो आप मुझे डाँटने, सुनाने और झगड़ने का कोई मौका नहीं छोड़तीं।” परिधि जोर-जोर से चिल्ला रही थी।
परिधि की सास मीना एवं ससुर आनंद भौचक्के खड़े थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि न जाने कब और कैसे परिधि, अपनी ननद आयुषी के प्रति मन में गाँठ बाँधकर बैठ गई थी।
“तुम्हें गलतफहमी हो रही है परिधि! आयुषी के प्रति तुम्हारी यह भावना एवं सोच बिल्कुल ग़लत है। वह तुम्हारे बारे में कभी भी मुझसे भड़काने वाली बात नहीं करती है।” मीना ने प्रतिरोध जताया।
“रहने दीजिए मम्मी जी! मैं अच्छी तरह से पहचान गई हूँ आपकी बेटी को। उन्हें अपनी सुंदरता, पढ़ाई-लिखाई और ससुराल की अमीरी पर बहुत घमंड है। मुझे वह ग़रीब घर का समझती है और इसीलिए आपसे मेरी बुराई करती हैं वरना मेरे कमरे में आने पर वह चुप क्यों हो जाती हैं?” परिधि कुछ सुनने-समझने को तैयार ही नहीं थी।
“अंगद! तू सुन रहा है? तेरी बीवी, तेरी बहन के बारे में क्या अनाप-शनाप बोले जा रही है?” मीना ने सब कुछ सुनकर भी चुपचाप बैठे अपने बेटे अंगद से कहा।
“मम्मी! कुछ न कुछ बात तो ज़रूर होगी वरना परिधि भला दीदी के बारे में ऐसे क्यों बोलती?” अंगद ने दो टूक ज़वाब दिया।
“अंगद! परिधि को तो चलो, इस घर में आए अभी केवल एक ही वर्ष हुआ है। इस बीच आयुषी तीज- त्योहारों के अलावा केवल एक बार ही रहने आई है। वह, आयुषी के व्यवहार एवं स्वभाव को न समझ पाए, यह तो मैं उचित मानती हूँ पर जिस बहन के साथ तेरा बचपन बीता, जिसके गुणों की तारीफ़ करते तू थकता नहीं था, आज उसी बहन पर तू आरोप लगा रहा है।”मीना विस्मित थी।
“मम्मी! मैं आरोप नहीं लगा रहा हूँ। पर क्यों दीदी के आने के बाद आपको परिधि में कमी नज़र आने लगती है? क्यों दीदी हर सप्ताह आपसे फोन पर एक-एक घंटे बात करती हैं?”अंगद पर जैसे आयुषी के प्रति विरोध व्यक्त करने का भूत सवार था।
“तू एक पक्ष की बात कर रहा है अंगद! परिधि को तो मैं आयुषी के न होने पर भी किसी ग़लती के लिए टोकती हूँ तो यह मुँह फुला लेती है पर अब यह अपनी हर ग़लती का ठीकरा आयुषी के माथे मढ़ देती है और रही बात उसके हर सप्ताह फोन करने की तो वह शादी के बाद से हमेशा ही मुझे हर सप्ताह फोन करती है, पहले तो तुझे कोई समस्या नहीं थी पर अब तुझे इस बात पर भी ऐतराज़ है और वह मुझे फोन क्यों नहीं करेगी,वह बेटी है मेरी। तू तो हर पल मेरे साथ रहता है, क्या मेरी बेटी का पूरे सप्ताह में एक घंटे का भी हक़ नहीं है मेरे ऊपर और रही बात कि वह मुझे कुछ सिखाती है तो यह परिधि के मन की गलतफहमी है जिसे न तो मैं दूर कर सकती हूँ और न ही दूर करना चाहती हूँ और परिधि को इस बात से समस्या है कि परिधि के कमरे में आने पर मैं और आयुषी बातें करते-करते चुप हो जाते हैं तो ज़रूरी नहीं कि हम परिधि की ही बुराई कर रही हों। हो सकता है कि आयुषी के जीवन की कुछ परेशानियाँ हों जिन्हें वह सिर्फ मेरे साथ साझा करना चाहती हो। क्या परिधि अपने मायके की हर बात मेरे या तेरे साथ साझा करती है? क्या परिधि अपनी माँ से फोन पर बात नहीं करती है? मैंने तो कभी नहीं कहा कि परिधि अपनी माँ से हमारी बुराई करती है या उसकी माँ परिधि को हमारे ख़िलाफ़ भड़काती है।” मीना एक साँस में बोल गई।
“मम्मी! मेरा मतलब यह नहीं था।” अंगद ने सफाई देनी चाही।
“तुम्हारा मतलब जो भी हो पर आज के बाद आयुषी यहाँ रहने नहीं आएगी और तुम्हारे ससुराल वालों से भी हमारा किसी प्रकार का संबंध नहीं है। जब कभी हमारा आयुषी और उसके बच्चों को देखने का मन होगा, हम उसके ससुराल चले जाया करेंगे क्योंकि मैं अपने ही घर में अपनी बेटी के खिलाफ कुछ सुना या देखना पसंद नहीं करूँगी।” यह कहकर मीना अपने कमरे में चली गई।
आनंद की आँखों में अपने प्रति नफ़रत देखकर अंगद किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। अपने मन में पड़ी गलतफहमी की गाँठ के चलते परिधि ने भाई,बहन के मध्य दूरी बनाने का कार्य किया जिसके चलते अंगद ने भी अपने ससुराल वालों से दूरी बना ली।
अब आनंद और मीना महीने में एक बार आयुषी से मिलने उसके ससुराल चले जाते हैं। मीना अब घर पर आयुषी से फोन पर भी बात नहीं करती। शाम की सैर के वक्त ही वह आयुषी से बात करती है और परिधि को उन्होंने उसके हाल पर छोड़ दिया है।
स्वरचित
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ, उत्तर प्रदेश