‘ ममता ‘ – विभा गुप्ता

  ” सीमा, तुम्हारा टेस्ट पाॅज़िटीव आया है,तुम माँ बनने वाली हो।” सुनकर उसे समझ नहीं आया कि ये खुशी की बात है या दुख की।उसके अंदर एक जीव पल रहा है, इस अहसास से वह आनंदित हो रही थी तो यह सोचकर कि कोई अपनी हवस बुझाकर निशानी उसकी कोख में छोड़ गया है,

उसे घृणा भी हो रही थी।जी में उसके आया कि अभी जाकर गिरवा दे,फिर उसने सोचा,उसकी धड़कन मेरी धड़कन से जुड़ गई है।ईश्वर ने मेरी झोली में मातृत्व-सुख लिख दिया है तो भला मिटाने वाली मैं कौन होती हूँ।

  ” और समाज का क्या?”

” समाज को भी वही जवाब देगा जिसने जीवन दिया है ” अपने मन में उठ रहे विचारों को झटक कर वह घर आ गई।

    उसके हावभाव से विधवा माँ की अनुभवी आँखों ने सब कुछ समझ लिया।पूछने पर उसने माँ को बताया कि रज्जो दीदी की शादी में जब प्रेमा मौसी के यहाँ गई थी तो वहाँ कई रिश्तेदार आये थें,

उन्हीं में से किसी ने…..।पर तुम चिंता न करो,मैंने डाॅक्टर साहिबा से बात कर ली है,एक-दो दिन में जाकर इस झंझट से मुक्ति पा लूँगी।दिन बीतते गए, उसका गर्भ बढ़ता गया और वो अपने गर्भ से जुड़ती चली गई।माँ ने फिर पूछा,” अब क्या इरादा है?” वह बोली, ” डाॅक्टर साहिबा ने कहा कि जन्म के बाद वो रख लेंगी।” बेटी के इरादे को समझकर भी माँ अनजान रही और समय बीतता गया।

      नौ महीने बाद उसने एक प्यारी-सी बच्ची को जन्म दिया।डाॅक्टर बोली, ” आज यहीं रहने देती हूँ, कल तुम इस बच्ची से आज़ाद हो जाओगी।” वह रात भर अपनी बेटी को निहारती रही, उसके साथ अनुभव किये हुए अपने अहसासों और भावनाओं को याद करती रही।

कभी पेट में लातें चलाना तो कभी अपनी साँस में उसकी साँसों की खुशबू को महसूस करना।बेटी की नन्हीं-नन्हीं ऊँगलियों के स्पर्श ने उसे मोहपाश में बाँध लिया और तड़के ही वह अपनी बेटी को लेकर घर आ गई।

      माँ कुछ कहती, उससे पहले ही उसने कह दिया,” माँ, मेरे शरीर का हिस्सा है ये।न तो मैं इसे अलग कर पाऊँगी और ना ही इसके बिना जी पाऊँगी।” माँ बोली,” जानती हूँ बेटी, कभी मैं भी इस दौर से गुज़री थी, मैंने भी समाज और लोक-लाज के भय से तुझसे छुटकारा पाने की नाकाम कोशिशें की थी लेकिन मेरी तरह आज तू भी अपनी ममता के आगे हार गई है।

” कहकर माँ ने मुस्कुराते हुए उसकी गोदी से बच्ची को ले लिया और उसकी नज़र उतारने लगी।और सीमा, वह तो बस अपनी उस माँ को एकटक देखती रही जिसने उसे अपनी कोख में रखने और पालने-पोसने में समाज के न जाने कितने अपमान सहे होंगे।

                      — विभा गुप्ता

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