मैं हार नहीं मानूँगी – के कामेश्वरी

मेरा नाम श्रीदेवी है । मैं अपने माता-पिता की छठवीं संतान हूँ । जी ठीक पढ़ा आपने !!!मेरे माता-पिताकी हम छह लड़कियाँ थीं । मैं आख़री संतान होने के कारण मुझे सबका बहुत प्यार मिला । मैं पढ़ाई मेंअव्वल आती थी । इसलिए पिताजी हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते थे । पिताजी पुलिस डिपार्टमेंट मेंकाम करते थे । इस महँगाई के ज़माने में छह लड़कियों को पालना उनके अकेले के बस की बात नहींथी ।

इसलिए वे हम सब लड़कियों के कपड़े खुद सिलते थे । हम उन्हें ही पहनकर इतराते थे । हमसभी बहनों को उन्होंने पढ़ाया और सब बहनों की शादियाँ उनके हैसियत के हिसाब से अच्छे परिवारों मेंकराया । अब मैं ही बच गई थी । सारी बहनों की शादियाँ होते तक में मैंने अपना बी एस सी ख़त्म करलिया । मैं आगे पढ़ना चाहती थी । पिताजी ने कहा बेटा मैं अब रिटायर होने वाला हूँ तुम्हारा दिल तोनहीं दुखाना चाहता हूँ पर मैं मजबूर हूँ क्या करूँ । हाँ एक बात कह देता हूँ कि रिश्ता सेटेल होते तकतुझे कुछ कोर्सेज़ करना है तो कर लेना ।

यही मेरे लिए बहुत था क्योंकि मैं भी उनकी मजबूरी समझसकती थी । इसलिए मैंने कम्प्यूटर कोर्स में दाख़िला लेने के लिए सोचा पर कहते हैं न होनी को कौनटाल सकता था । अरविंद अपने माता-पिता के साथ मुझे देखने आए । उन्हें एक ही नज़र में मैं भा गईथी । अरविंद एल आई सी में नौकरी करते थे । दिखने में हेंडसम, माता-पिता के इकलौते पुत्र थे औरक्या चाहिए कोई ज़िम्मेदारी नहीं है पिताजी को यह रिश्ता

बहुत पसंद आया था । उनका मान रखते हुए मैंने भी हाँ कह दिया था ।


पिताजी वैसे भी रेडी बैठे थे चट मँगनी पट ब्याह हो गया । बहनों ने भी अरविंद को बहुत पसंद किया ।एक नौकरी अच्छी दिखने में अच्छा था । अकेला लड़का था । किसी भी लड़की के लिए इससे बेहतररिश्ते कहाँ मिलते हैं । शादी करके ससुराल पहुँची । हैदराबाद बाद में एल आई सी कॉलोनी में रहते थे। सास की चार बहनें थीं । वे सब भी आती जाती थी । बहुत ही अच्छे लोग थे ।

मुझे नहीं लगा कि मैंनए लोगों के बीच आई हूँ । हम दोनों हनीमून पर गए । रात और दिन ऐसे कट रहे थे कि तारीख़ों कापता भी नहीं चला । मेरे सास ससुर दोनों बहुत अच्छे थे । ससुर किसी प्राइवेट कंपनी में काम करकेरिटायर हो गए थे । उनके बुढ़ापे का सहारा बेटा ही था । एक दिन अरविंद देर रात हो गई पर घर नहींपहुँचे ।

मुझे डर लगने लगा कि इन पाँच महीनों में ऐसा कभी नहीं हुआ था । सास ससुर और मैं इनकीप्रतीक्षा में बिना खाना खाए बैठे हुए थे । मेरे दिल में रह रह कर बुरे ख़याल आ रहे थे । बड़े दोनोंचुपचाप एक-दूसरे का मुँह देखते हुए बैठे रहे ।

मुझे लगा कोई दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है । मैं उठी और दरवाज़ा खोला मेरे नाक में कुछ गंदी सीबदबू आई । मैं पीछे हट गई मुझे समझने में देर नहीं लगी कि अरविंद ने शराब पी रखी है । लड़खड़ातेहुए वे अंदर आने लगे मैंने उन्हें सहारा दिया और अपने कमरे में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया ।

सासससुर को काटो तो खून नहीं । उन्हें लगा शादी के बाद अरविंद बदल गया है अब पीना छोड़ देगा । परंतुआज उसे इस हालत में देख कर वे बहू से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे । उस रात घर में किसी ने भी खानानहीं खाया । मेरी आँखों से नींद कोसों दूर थी । मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।


सुबह सब अपनेअपने समय पर उठ गए । मैंने उनसे कुछ भी पूछना मुनासिब नहीं समझा इसलिए चुपचाप अपने कामकरने लगी । वे मेरे पीछे आ गए और कहने लगे कि कल दोस्त का जन्मदिन था सबने ज़बरदस्ती की तोमैंने थोड़ी सी पी ली है आगे से ऐसा नहीं होगा । मैंने अपने पति पर विश्वास कर लिया ।

मैंने देखा दोस्तों की पार्टी आजकल हफ़्ते में दो बार होने लगी है । कहते हैं न कि विश्वास पर ही दुनियाटिकी है बस पति की बातों पर विश्वास करते करते हुए ही मैंने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया ।

माँ पिताजी मुझे छोड़ने हमारे घर आए । दो दिन रहकर चले गए । अब मेरा सारा समय बच्ची जिसकानाम हमने ऐश्वर्या रखा था उसके साथ ही बीतने लगा ।

अरविंद दिन पर दिन पियक्कड़ होते जा रहे थे । उन्हें घर परिवार और अपनी बच्ची की भी फ़िक्र नहींथी । इसी बीच एक दिन मेरी सास की बहन आई हुई थी दोनों आपस में बातें कर रहीं थीं उनकी बातोंसे मुझे पता चला कि अरविंद पहले से ही पीते थे ।

हमारे यहाँ का सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह होती है कि लोग या माँ बाप सोचते हैं कि कितना भीबिगड़ा हुआ बेटा ही क्यों न हो शादी के बाद ठीक हो जाएगा । और ठीक न होने पर बहू को दोषीठहराया जाता है कि तुमने उसे ठीक नहीं किया । अरे ! पैदा किए हुए माता-पिता ही उसे सही रास्तानहीं दिखा सकते तो कल की आई हुई लड़की क्या ठीक करेगी अब इन्हें कौन समझाए ।

वही बात यहाँ भी लागू हुई अरविंद के घरवालों ने भी सोचा कि शादी के बाद अरविंद ठीक हो जाएँगेपर ऐसा नहीं हुआ था । मुझे दुख इस बात का होता था कि एक तो अपने बेटे के बारे में बिना बताएएक अनजान लड़की की ज़िंदगी को तबाह करने का अधिकार इन्हें किसने दिया है । और सोने परसुहागा कि उम्मीद रखते हैं कि वह अनजान लड़की बेटे को सही राह पर ला दे । वाहह रे दुनिया कमालहै ……..


ख़ैर अब होनी को कोई नहीं टाल सकता है । मैंने भी सोचा क्या करूँ छोटी सी बच्ची बूढ़े माँ बाप औरपति को किसी की भी परवाह नहीं है । जब क्वार्टर का वाचमेन इन्हें सहारा देकर अंदर लाता था तोमुझे बहुत बुरा लगता था । सब तरफ़ देखती थी कि कोई देख तो नहीं रहा है ।मैं भी कितनी पागल थीन सब एक ही ऑफिस में काम करने वाले लोग थे ।उन्हें तो मालूम रहेगा ही न ।

मेरे पिता की सीख थी कि घर की बात घर में ही रहे । पिताजी हमेशा मुझे हिम्मत देते थे और कहते थेकि तू तो मेरी शान है मुझे मालूम है कि कितनी भी मुश्किलें आएँगे तू बिना हारे जंग जीत जाएगी ।इसलिए शायद मैं अपने आपको किसी की नज़रों में नहीं गिराना चाहती थी । अरविंद अब अपनीतनख़्वाह भी घर पर नहीं देते थे ।

दूध वाले से लेकर किराने वाले तक आए दिन घर के सामने उधारमाँगने के लिए खड़े रहते थे । इसी बीच मेरे ससुर जी की तबियत ख़राब हो गई और अस्पताल में भर्तीकराया गया था पर दो दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई थी । जो एक सहारा था वह भी चला गया । परंतुभगवान ने बहुत ही समझदार बच्ची को मेरे घर में भेजा । छोटी थी पर उसे घर की हालत मालूम थी ।इसलिए वह कुछ नहीं माँगती थी जो देते थे वही खा लेती थी । पढ़ाई में मुझ पर गई है हर क्लास मेंअव्वल आती थी ।

एक दिन शाम को सात बजे किसी ने फ़ोन किया आपके पति रास्ते में पड़े हैं । मैं और ऐशु भागे देखातो अरविंद फुल पीकर गाड़ी से गिरे पड़े थे ।उनके जेब से पैसे बाहर गिर गए थे । हम दोनों ने उन्हेंसंभाला और वाचमेन की मदद से गाड़ी घर लाए । हमारे ही क्वार्टर्स में एक यूनियन लीडर रहते थे ।दूसरे दिन सुबह मैं उनके पास गई और रोते हुए कहा यह जॉब मुझे दिला दीजिए ।


वे हँसते हुए बोले मैंसमझता हूँ तुम्हारी तकलीफ़ पर पति के जीवित रहते हुए पत्नी को नौकरी नहीं मिल सकती है न मैंतुम्हारी मदद इस बात पर नहीं कर सकता हूँ । उनकी पत्नी एक स्कूल में पढ़ाती थीं । उन्होंने कहा तुमपढ़ी लिखी हो बच्ची भी बड़ी हो गई है नौकरी कर ले । आजा मेरे साथ कल मेरे स्कूल में वेकेंसी है ।दूसरे दिन मैं उनके स्कूल पहुँची ।बारह सौ रुपये महीने की तनख़्वाह में मैंने स्कूल जॉइन कर लिया ।

उसी स्कूल में पाँच साल तक मैंने काम किया । फिर सास की बहन ने मुझे उनके स्कूल में कामदिलाया । जहाँ मुझे तीन हज़ार रुपये महीने की तनख़्वाह थी । अब मेरी आर्थिक स्थिति में सुधारआया पर अरविंद को भी मैं सुधारना चाहती थी । मैंने उन्हें बच्ची का वास्ता देकर अस्पताल में भर्तीकराया । जहाँ थोड़े दिन रहकर ही ये ठीक होने लगे थे । मैंने हिम्मत नहीं हारी उन्हें कौंसलिंग भीदिलवाया ।

अब मैंने उनमें सुधार देखा ।इसी बीच मैंने बी.एड. किया और एक बहुत बड़े स्कूल मेंगणित और फ़िज़िक्स पढ़ाने लगी । स्कूल से घर आते ही ट्यूशन लेने लगी । ऐश्वर्या को डेंटल कॉलेजमें सीट मिल गई थी । वह पढ़ाई में अच्छी होने के कारण शहर से बाहर जाने की नौबत नहीं आई ।शहर के कॉलेज में ही दाख़िला लिया ।

अरविंद भी अब कम पीने लगे तनख़्वाह घर लाकर देने लगे ।मैंने भी बच्ची की शादी के लिए गहनेबनवा लिए । अब मैंने सोचा एक फ़्लैट भी बुक कर लेते हैं । मैं और अरविंद ने घूम फिरकर एक फ़्लैटपसंद किया और ख़रीद भी लिया । इतने साल मैंने क्वार्टर में बिताया था । स्कूल क्वार्टर के सामने हीथा इसलिए ट्यूशन भी अच्छे मिलते थे उसके कारण  मेरा घर चल जाता था । वहाँ से जब शिफ़्ट होगए तो मुझे बहुत बुरा लगा था ।

मैं नहीं कहती यह सब कुछ ही पल या दिनों में हो गया है । इसकेलिए मुझे अपने जीवन के दस साल देने पड़े । इस बीच सालों से मेरे सुख दुख में साथ देने वाली मेरीसासु माँ मुझे छोड़कर चली गई । मेरा घर सूना हो गया था । इन दस सालों में मैंने बहुत कुछ खोया भीऔर पाया भी । ऐश्वर्या का कोर्स ख़त्म होते ही वह पी जी के लिए प्रिपेयर होने लगी । इस बीच उसकेलिए मेलबर्न में नौकरी करने वाले अच्छे लड़के का रिश्ता आया ।


उसे पी जी करना था । मैंने उसेसमझाया कि वहाँ जाकर पी जी कर ले क्योंकि पी जी के होते ही तुम कहोगी जॉब कर लूँ फिर इतनाअच्छा रिश्ता है ठुकरा मत । उसे शायद मेरी बात समझ में आ गई थी । इसलिए उसने शादी के लिएहामी भर दिया फिर क्या हमने अकेली लड़की है इसलिए उसकी शादी धूमधाम से कर दिया है । आजवह मेलबर्न में अपने पति के साथ खुश है । अरविंद ने पीना छोड़ दिया है । हमने भी सबके समान कारघर सब ख़रीद लिया है । अभी दोनों को रिटायर होने के लिए छह सात साल बचे हैं ।

इस बीच मैंने अपने समय को बर्बाद नहीं किया इधर-उधर की बातों से बचने के लिये मैंने एम एडकिया,फ़िज़िक्स में एम एस सी, मेथ्स में एम ए , इंग्लिश में एम ए, सैकॉलजी में एम ए करके आज कीडेट पर फ़िज़िक्स में ही मैं पी एच डी भी कर रही हूँ । मुझे पढ़ना अच्छा लगता है इसलिए यह सबकिया ।

आज मैं गर्व के साथ कह सकती हूँ कि एक महिला अगर सोच ले तो वह कुछ भी कर सकती है । यहथे मेरी ज़िंदगी के पल जिन्हें मैंने पल पल जिया है और जीती रहूँगी । मेरे पिताजी मेरे लिए आदर्श थेइतनी लड़कियाँ होने के बाद भी उन्होंने हम पर कभी ग़ुस्सा नहीं किया था । आज सोचती हूँ किपिताजी होते और मेरी जीत देखते तो कितना खुश होते थे । वे जहां कहीं भी हैं मुझ पर गर्व महसूस कररहे होंगे कि उनकी ही बेटी है जिसने आज इतनी तरक़्क़ी की है ।

मेरी इस कहानी से कुछ लोग भी प्रेरित होते हैं तो मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात होगी ।

#बेटी _हमारा _स्वाभिमान

के कामेश्वरी

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