मैं कैसे कन्यादान कर सकतीं हूं – सुषमा यादव  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : ये एक सत्य घटना है,जिसे दिल्ली के पंडित जी ने

साकार किया था, अपने अकाट्य तर्कों से समझाते हुए।

कृपया नकारात्मक टिप्पणी देकर ऐसे विद्वान पंडित का अपमान मत करिएगा। समय बदल रहा है, हमें कुप्रथाओं से उबरना ही होगा। हमें अपनी सोच बदलनी ही होगी।**

आज साधना की बरसों की साध पूरी होने जा रही थी। उसकी बेटी की शादी हो रही थी।

साधना के पति का स्वर्गवास कई साल पहले हो गया था। शादी की देखभाल उसके और उसकी छोटी बेटी के जिम्मे था।

बेटी की हल्दी, मेंहदी रस्म चल रही थी। साधना सबको गाने की धुन पर झूमते, नृत्य करते, मेंहदी लगाते और आपस में हंसी-मजाक करते खामोशी से एक तरफ खड़ी हो कर देख रही थी। 

वह अत्यंत चिंतातुर थी, अंदर ही अंदर कोई बात उसे खाए जा रही थी, आंखें भर भर आ रही थी।

वह चुपचाप जाकर अपने पति की तस्वीर के सामने खड़ी हो गई, आंखों से आंसू सब बंधन तोड़ कर बहने लगे। आप के कितने अरमान थे,अपनी बेटी की शादी मैं खूब धूमधाम से करूंगा,लोग देखते रह जाएंगे। हम तुम दोनों अपनी बेटी का कन्यादान करेंगे।जानती हो साधना, कन्यादान करने का नसीब सबको नहीं मिलता, हम कितने भाग्यशाली हैं कि हम दो दो बेटियों का कन्यादान करेंगे। साधना अपने पति की बातों को याद करके फूट फूटकर रो पड़ी। हम भाग्यशाली नहीं, अभागे हैं, मनहूस हैं,हम बेटी का कन्यादान नहीं कर सके।

मां पिता के होते हुए हमारी बेटी का कन्यादान कोई और करेगा, मैंने भी ये अधिकार खो दिया है।

इतने में दोनों बेटियां आईं और आंसू पोंछ कर मां को गले से लगा लिया। दोनों ने सोचा, मां को शादी के समय पापा की याद आ रही है।

शादी में बरातियोंके द्वारचार, स्वागत के बाद शादी की रस्में शुरू हुई। पंडितजी  वेद मंत्रोच्चारण के साथ शादी संपन्न करवा रहे थे। साधना एक कोने में खामोश अपने आंसूओं को पीते हुए बैठी थी। अचानक पंडित जी ने कहा,आइये, कन्या दान करिए।

साधना ने अपने दूर के रिश्तेदार देवर और देवरानी की तरफ इशारा करते हुए कहा, पंडित जी, बेटी के चाचा और चाची कन्या दान करेंगे। चाचा और चाची ख़ुश हो कर उठ ही रहे थे कि पंडित जी ने कहा, क्यों, वो क्यों भतीजी का कन्यादान करेंगे, जबकि लड़की की मां यहां विद्धमान है। साधना जी,आइए और अपनी बेटी का कन्यादान करिये।

साधना ने हड़बड़ाते हुए कहा, पंडित जी, मैं कैसे कन्यादान कर सकतीं हूं ? मैं तो,,, आगे के वो मनहूस शब्द उससे बोले नहीं गए। 

पंडित जी ने कहा,, मैं सब जानता हूं।पर किसने कहा कि एक मां अकेले कन्या दान नहीं कर सकती है। आप उसकी मां हैं और वो आपकी बेटी है”, ये अधिकार केवल आपको है। “आपके रहते हुए कोई और कन्यादान का अधिकार कैसे पा सकता है ? 

जिंदगी भर आपने संघर्ष करके अकेले ही अपनी दोनों बेटियों को इस सफल मुकाम पर पहुंचाया है।

आपने सब दुःख, कष्ट झेलकर अपने सुखों की परवाह न करते हुए अपनी सारी जिम्मेदारियां बखूबी निभाईं और आज अपने इस अनमोल अधिकार को दूसरों को सौंप रहीं हैं।

उठिए और प्रसन्नतापूर्वक अपनी बेटी का कन्यादान करिए, ऊपर आसमां से आपके पति देव सब देख रहें हैं,उनकी आत्मा को शांति प्रदान करिए। अपने अधिकारों का उपयोग करिए।

पंडित जी की गंभीर बातें सुनकर सारे मंडप में सन्नाटा छा गया।

साधना सिर झुकाए बैठी रह गई।

छोटी बेटी आई और अपने बांहों में भर कर मां को उठाते हुए बोली, मां, ये तो केवल आपका अधिकार है,चलिए, दीदी का कन्यादान करिए।

वहां बैठे हुए सभी अतिथियों और बड़ी बेटी तथा उसके ससुराल वालों ने करतल ध्वनि करते हुए कहा,जी हां ये आपका ही अधिकार है,आप अपना अधिकार दूसरों को क्यों दे रहीं हैं? 

साधना ने सबको देखा, उसकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे और वह जाकर अपनी बेटी और दामाद के हाथों को पकड़ कर बैठ गई, पंडित जी ख़ुश हो कर कन्या दान की रस्में करवाने लगे। साधना को जैसे अनमोल उपहार मिल गया।

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

#अधिकार

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