• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

मैं इस घर को प्यार का मंदिर समझती थी – चाँदनी झा 

“बेटा तुम तो ऐसी न थी, घर में कोई कुछ कह दे तो घर माथे पर उठा लेती थी…और आज?”

मालती जी ने मोनिका को फोन पर उसकी हालत जानकर कहा। आंखों में आंसू छिपाते हुए, मोनिका ने कहा मां, दर्द होता है तो तुम्हें बता देती हूं, अच्छा लगता है। पर मां….आचनक से कुछ भी फैसला लेना साधारण बात नहीं है, जैसे आप कहते हो….अरुण का घर छोड़ दूं, मां, उसके बाद का भी तो मुझे सोचना चाहिए।

सोचना क्या बेटा….तुरंत दूसरी शादी हो जायेगी, बहुत लड़का मिल जायेगा।

बस यही बात मां….और दूसरा लड़का अरुण जैसा, या अरुण से खराब नहीं होगा, कौन जानता है?

पर बेटा…..रोज-रोज तुम क्यों झेलोगी? अब वो जमाना न रहा कि….जिस घर में, डोली जायेगी, उसी घर से अर्थी उठेगी। अब सहने का ज़माना नहीं है। देखो बेटा, सुमित्रा जी(मोनिका की सास) तुझे कभी भला न बोलती हैं, अरुण की हरकतों की तो बात ही क्या करें, तो फिर क्यों और कैसे तुम वहां रहोगी?

 

मोनिका की चार वर्षीय बेटी, तब तक जग चुकी थी, मां, रूही जग गई है, मैं बाद में बात करती हूं।

मालती जी अपनी बेटी के ससुराल में बेटी को होने वाली परेशानियों से परेशान होकर, अपनी बेटी को शादी तोड़ने, और ससुराल छोड़ने की बात कहती थीं। वो अपनी बेटी  के दर्द से दुखी थीं।



पर मोनिका….आज से छः साल पहले, जब शादी कर ससुराल आई थी, मोनिका की सुंदरता, मोनिका के व्यवहार, मोनिका के मधुर स्वभाव से सब घरवाले इसे खूब प्यार करते थे। सास तो मोनी बेटा, मोनी बेटा कहते थकती नहीं थीं। अरुण तो जैसे दीवाना था मोनिका का। और ननद, देवर, अपनी भाभी को घेरे ही रहते थे।

पर लगभग ढाई-तीन साल पहले, अरुण के बिजनेस में घाटा लग गया, अरुण के पिताजी का देहांत हो गया। अरुण तनावग्रस्त होते चला गया। वहीं, मोनिका की सास ने जुबां से बोलना कम, गुस्साना ज्यादा शुरू कर दिया। अरुण के सिर पर…छोटे भाई-बहन, की पढ़ाई, घर का खर्चा, पिता के न रहने का गम, ऊपर से उसे भी अपनी एक बेटी हो चुकी थी, परिवार और खर्चा बढ़ता जा रहा था, आमदनी का कोई स्रोत नजर न आ रहा था।

अरुण न जाने क्यों, मोनिका पर बात बात पर गुस्सा हो जाता। जबकि इन हालतों में भी मोनिका अपने परिवार के साथ थी। उनके दुख में दुखी, और उनकी खुशियों में अपनी खुशियां ढूंढती थी। पर….सुमित्रा जी जैसे….सारे परेशानियों कि वजह मोनिका को ही समझने लगी थीं। साथ ही….अरुण भी मोनिका को भला-बुरा कहते नहीं थकता था।

 

रूही का जन्मदिन है। तो मैं क्या करूं?



मां बुला रही है।

तो जाओ न कोई मना किया है क्या?

आप इतने परेशान क्यों हैं?

तो खुशी से नाचूं?

मतलब मोनिका के किसी भी सवाल का, अरुण सीधे-सीधे जवाब नहीं देता था। साथ ही… न ढंग से बात करता, न कभी मोनिका की तारीफ। सासू मां भी….मोनिका को समझती न थीं। जिस घर में मोनिका को इतना प्यार मिला, वहीं मोनिका, अब प्यार भरी बोली के लिए भी तरसती। आए दिन, अरुण और मोनिका के बीच झगड़े होते रहते। कभी-कभी मोनिका सोचती…मैं इस घर को प्यार का मंदिर समझती थी, पर ये तो नफरत का द्वार निकला। इनलोगों का ये भी रूप होगा मैंने कभी सोचा भी न था। इनके इस पहलू से तो मैं अनजान ही थी, पर अच्छा ही हुआ कि….इन लोगों का ये पहलू भी मेरे सामने आ गया।

रूही को खाना खिलाने के बाद….मोनिका रसोई के कामों में लग गई। अरुण, पीछे से आकर, मोनिका को चूम लिया। आज तो आपको मुझपर बहुत प्यार आ रहा है? हां, अपनी बीबी पर प्यार आना, कोई गलत बात है क्या? अच्छा? शरमाते हुए मोनिका ने कहा। मां, की आवाज पर अरुण रसोई से बाहर आ गया।

मोनिका…..ने सोचा यही तो मेरा अरुण है,  मैं बेकार में इनके नकरात्मक पहलू के बारे में सोचने लगी थी।

मोनिका अपने रिश्ते में बिल्कुल मजबूत हो गई। दूसरे दिन मां से बोली न, न, मां, इनके प्यार और अधिकार भी याद करो, थोड़ी बहुत परेशानी हर रिश्ते में होती है, अभी के व्यवहार को देखकर….मैं भविष्य का फैसला न लूंगी। मोनिका ने मां से ये भी कहा….मां, रिश्तों में सिक्के के तरह दो पहलू होते हैं, बिना दोनों तरफ देखे हमें, कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। मां, क्या कहती, चलो बेटा, तुम जिससे खुश हो, वही अच्छा। मैं मां हूं, दर्द तुम्हारा नहीं सुन पाती हूं, बस इसलिए। मोनिका….अपने परिवार के सकारात्मक पहलू में खो गई, जो उसे सुकून और शांति देता था।

चाँदनी झा 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!