मां जी”आपकी बहू समझदार हो गई!! – सरगम भट्ट

मां जी”आप थोड़ी देर रूही को देख लेंगी, मैं अभी थोड़ी देर में मार्केट से आती हूं ” इतना कह मानसी रूही को गीता जी के पास छोड़कर बिना उनका जवाब सुने चली गई।

मानसी का अब यह रोज का हो चुका था, वह रूही को गीता जी के पास छोड़कर रोज किसी न किसी बहाने ज्यादातर घर से बाहर ही रहती थी।

कभी सहेलियों के साथ, कभी शॉपिंग , कभी सिनेमा, किटी पार्टी, और उसी शहर में मायका है तो वहां चली जाती”रात को ही सीधा लौटती फिर।

घर और बेटी को शायद उसमें कभी अपना समझा ही नहीं, जिम्मेदारियों से भागना चाहती थी।

वह चाहती थी गीता जी सारा काम भी कर ले और रुही को भी देखें, लेकिन इतना सब अकेले गीता जी नहीं कर पा रही थी”उनकी भी तो उम्र थी और इस उम्र में कुछ ना कुछ बीमारी लगी ही रहती है।

आज भी यही हुआ थोड़ी देर का बोल कर मानसी मायके चली गई, मनन ऑफिस से लौटकर आया “मां को बेटी के साथ साथ काम करते देखकर पूछा”

“मां” मानसी कहां है?

और तुम बच्ची को भी देख रही हो काम भी कर रही हो?

थोड़ी देर का बोलकर बाजार गई थी, अभी तक नहीं आई शायद मायके चली गई होगी”उसकी मम्मी भी तो उसे याद करती हैं, गीता जी ने मानसी का पक्ष लेते हुए कहा।

लेकिन उनका भी मन होता था वह भी आराम करें थोड़ा बहुत, मानसी अपनी जिम्मेदारी को समझें”लेकिन मानसी समझाएं नहीं समझ रही थी उल्टा बुरा मान जाती।

मानसी रात को ग्यारह बजे लौट कर आई, मां जी”वह मम्मी का फोन आया और मैं मायके चली गई, रूही कहां है?

सो गई !और तुम अपना और मनन का खाना निकाल लो अभी मनन भी नहीं खाया है, इतना कह गीता जी मानसी को सबक सिखाने की ठान सोने चली गई ।



आखिर उन्होंने मनन के साथ प्लानिंग जो किया है।

सुबह मानसी के उठने से पहले ही गीता जी कहीं चली गई, मानसी सुबह उठकर बाहर आई तो मांजी का रूम बाहर से बंद था।

मनन तुम्हें पता है मां जी कहां गई?

हां! अचानक से मामी जी की तबीयत खराब हो गई है और मम्मी वहां चली गईं, रात में तुम लेट आई थी शायद इसीलिए तुम्हें नहीं बता पाई होंगी।

अब तो मानसी की हालत खराब रूही के साथ-साथ काम कैसे होगा?

कब आएंगी?

पता नहीं! शायद दस बारह दिन में।

अब मानसी अकेले रूही को भी संभालती”और घर का सारा काम भी करती, (मनन उसकी मदद करता था जितना हो सकता था , लेकिन गीताजी तो पूरा संभालती थी)उसका बाहर जाना लगभग बंद ही हो चुका था।



अब उसे समझ में आ रहा था, कैसे वो बेटी के साथ साथ सारा काम गीता जी पर छोड़कर निकल जाती थी” शायद जिम्मेदारियों से बचने के लिए! मदद भी तो नहीं करती थी वह गीता जी की।

वह शायद यह भी समझ गई,कि मां जी जानबूझकर गई हैं”

मनन पूछो ना मां से कब आएंगी?

क्यों फिर से आजादी चाहती हो?

रहने दो! मैं खुद ही पूछ लूंगी””इतना कह उसने फोन मिला दिया।

हेलो” “मां जी” प्रणाम कैसी हैं आप? और मामी जी कैसी हैं?

सब ठीक है बेटा।

प्लीज मांजी मुझे माफ कर दीजिए, मुझे पता है मामी जी को कुछ नहीं हुआ है”आप मुझे सबक सिखाने के लिए गई है!

प्लीज मांजी आप जल्दी से आ जाइए, आपकी बहू का अकेले मन नहीं लगता”और हां आपकी बहू अब समझदार हो गई है, अब जिम्मेदारियों से नहीं भागेगी आपकी बहू।

मनन भी चुटकी ले रहा था।

मां! आना मत नहीं तो आपकी बहू सारा काम आप पर छोड़ कर दिन रात गायब रहेगी।

दोनों की नोकझोंक सुन गीता जी बहुत खुश थीं।

गीता जी की आंखों में खुशी के आंसू थे, बहू समझदार जो हो गई थी बिना किसी कड़वाहट के।

(जिम्मेदारी से कब तक कोई भागेगा आखिर में एक ना एक दिन उसे समझना ही पड़ेगा)

 

सरगम भट्ट

 

 

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