क्या मर्द रो नहीं सकते (पार्ट -1) – मीनाक्षी सिंह

चांदनी – ये क्या यार ,विभू के जाने में बस 15 दिन बचे हैँ ! मेरा दिल बैठा जा रहा हैँ ! तुम हो कि अपनी ही धुन में मस्त ! कभी फ़ोन ,कभी टीवीं ,कभी सैर पर निकल जाते हो ! आखिर किस मिट्टी के बने हो तुम ! सुन रहे हो ना ,मैं तुमसे बात कर रही हूँ अभिषेक !

अभिषेक अपने चश्मे को नीचे करके चांदनी को घूरते हुए – क्या तुम मुझसे बात कर रही हो मिसेज वर्मा !

हाँ तुम्ही से प्राणनाथ ,पति परमेश्वर ! उफ़ सच में सब मर्द एक से होते हैँ ! इनके सीने में दिल ही नहीं होता !

अभिषेक – हाहा ,सही बोल रही हो ! मैं तो निर्दयी हूँ ! मुझे भी पता हैँ हमारा विभू 15 दिन बाद पढ़ाई के लिए इंगलैंड जा रहा हैँ ! जीने दो उसे अपनी ज़िन्दगी ! हमें तो ऐसा मौका मिला नहीं ! उसे मिल रहा हैँ ,इसमें तो हमें खुश होना चाहिए ना  कि तुम्हारी तरह दुखी होकर विभू को भी दुखी करना चाहिए !

चांदनी – तुम खुश हो ना उसके बाहर जाने से तो  ठीक हैँ मैं भी नहीं रोऊंगी अब ! पर एक बार और सोच लो यार ! एकलौते बेटे को इतनी दूर वो भी पढ़ाई के लिये भेजना ठीक रहेगा क्या ?? याद हैँ मिस्टर अग्रवाल जी ने अपने बेटे शिवम को विदेश भी नहीं अपने ही देश में बैंगलोर पढ़ने भेजा था ! वो कभी लौटकर नहीं आया ! गलत आदतों में पड़कर अंत में उसने सुसाईड कर लिया ! ये सब सोचकर मेरा  मन बैठा जा रहा हैँ ! हम तो इतनी दूर भेज रहे हैँ विभू को ! जहां बार बार उसे देखने भी नहीं जा सकते !




अभिषेक – यार चांदनी ,जस्ट चिल यार ! एविरीथिंग इज ओके ! नो नीड टू वरी ! हमारा बेटा ऐसा नहीं हैँ ,मुझे हमारी परवरिश पर भरोसा हैँ ! विभू कोई बच्चा नहीं हैँ ! मैने मिस्टर अग्रवाल की तरह उस पर बरडन नहीं डाला हैँ ! पढ़ाई में मन लगे तो ठीक नहीं तो घूम फिरकर लौट आये ! बट अगर वो जाना चाहता हैँ तो हमें उसे रोकना नहीं चाहिए !

चांदनी – ओके अभिषेक ,अगर आपको ठीक लगता हैँ तो कोई बात नहीं ! देख तो लो चलकर विभू की सारी तैयारी हो गयी हैँ य़ा. नहीं ! तुम पूछोगे तो “ही विल फील हैप्पी “!

अभिषेक – आपका हुकुम सर आँखों पर मोहतरमा !

अभिषेक ,चांदनी विभू के कमरे में ज़ाते हैँ !

विभू – मम्मा  ,आज सूरज कहाँ से आया हैँ ! पापा मेरे कमरे में ! ज़रूर आप लेकर आयी होंगी इन्हे यहाँ ! नहीं तो पापा मेरे कमरे में खुद चलकर आयें ,इट्स ईमपोसिबल !

चांदनी – तू ऐसा क्यूँ सोचता हैँ कि तेरे पापा पत्थर दिल हैँ ! तुझे वही तो इतनी दूर भेज रहे हैँ ! तूने एक बार कहा, मान गए !

विभू – वो तो मम्मा ,आपकी बात मानते हैँ ! उन्हे रहना भी तो इसी घर में हैँ आखिर ! आपकी बात नहीं मानेंगे तो जायेंगे कहाँ !

अभिषेक – बदमाश ,बहुत बड़ा हो गया है तू ! पापा की टांग खींचता हैँ ! बता सारी तैयारी हो गयी तेरी !

विभू – कहाँ पापा ,अभी तो लिस्ट का आधा सामान भी नहीं आया हैँ !

अभिषेक – कोई बात नहीं ,कल हम दोनों साथ चलेंगे ,सब सामान ले आयेंगे ! इज इट ओके ??

विभू – परफेक्ट ! डन ! थैंक यू पापा !

अगले दिन विभू ,अभिषेक ,चांदनी तीनों लोग मार्केट ज़ाते हैँ !

विभू – मम्मा ,वहाँ भीड़ कैसी हैँ ! कुछ हुआ हैँ क्या ??

चांदनी – अभिषेक ,गाड़ी रोको ! देखने तो दो ! इतनी भीड़ कैसे हैँ यहाँ !

अभिषेक – ओह ,चांदनी यहाँ तो एक्सीडेंट हुआ हैँ ! ये तो शायद मैं सही पहचान रहा हूँ तो …….

आगे की कहानी कल इसी समय इसी पेज पर पढ़िये !

तब तक के लिए राधे राधे

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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