किटी पार्टी – अंतरा

“आज फिर तुम्हारी मां सजधज कर तैयार हो गई किटी पार्टी में जाने के लिए।  मैंने तुमसे पहले भी कहा था उनको रोकने के लिए। यह कोई तरीका है इस उम्र में किटी पार्टी मनाने का…. लोग क्या कहेंगे…. भजन करने की उम्र में पत्ते खेलने का शौक चढ़ा है। तुम कुछ कहते क्यों नहीं अपनी मां से। ” पत्नी ने पति को झिड़कते हुए अपनी सास की शिकायत लगाई।

“सही कहती हो… अब तो मुझे भी लगने लगा है कि माँ ने हद पार कर रखी है… अभी जाकर बात करता हूं।” पति दनदनाता हुआ मां के पास पहुंचा

“मां मुझे आपसे कुछ बात करनी है ।”

” हां बोलो!” मां ने अपनी साड़ी का पल्लू संभालते हुए बोला

“मां बुरा मत मानना… पर यह आपने क्या लगा रखा है… हर महीने किटी पार्टी…. क्या यह सब अच्छा लगता है…. अब आप 57 की हो रही हैं… इस उम्र में औरतें मंदिर जाती हैं पर आपको पार्टी में जाना है…”

” पर तुम लोग जब दिल्ली में थे तो किटी तो बहू भी जाती थी… तब तुमने कभी विरोध नहीं किया… यहां तक कि मैंने भी उसका कभी विरोध नहीं किया”

“उसकी बात और है माँ… वह आज की लड़की है लेकिन क्या यह सब आपकी उम्र में अच्छा लगता है.. “

मां ने व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ कुछ देर रुककर  कहा,” तुझे पता है बेटा… आज से 10 साल पहले जब तेरे पिताजी का देहांत हुआ.. तब तू  दिल्ली में था…. 20 दिन की छुट्टी लेकर आया और फिर वापस अपनी बीवी को लेकर चला गया… तुझे पता है मैं तेरे पिताजी के बिना कैसे अकेली रही…  यह घर मुझे काटने को दौड़ता था…. जब तक ऑफिस में रहती थी तो लगता था…. घर वापस ना जाना पड़े…. पर शाम ढलते ही हर पक्षी को बसेरा लेना पड़ता है… चाहे मन हो या ना हो। तब मेरी इन्ही सहेलियों ने मुझे सहारा दिया.. जीने का हौसला दिया… मुझे फिर से जीना सिखाया… अब अगर मैं भी अपने दोस्तों के साथ कुछ वक्त बिताना चाहती हूं… खुश रहना चाहती हूं तो इसमें हर्ज ही क्या है ?क्या दोस्ती की भी कोई उम्र होती है?”




“मैं मानता हूं कि मैं तब नहीं रुक पाया पर अब तो हम सब आपके साथ हैं… फिर आपको क्या जरूरत है किटी पार्टी में जाने की।”

हुँहहह… माँ के चेहरे पर हसीं फ़ैल गयी ”  कोरोना की वजह से तुम दोनों की नौकरी ना गई होती तो क्या कभी तुम दोनों मेरे पास लौट कर आते..  मैं तो हमेशा से यही थी… यह मकान यही था…आज तुम सिर्फ अपनी जरूरत की वजह से यहां हो और रही बात  किटी पार्टी की तो मैंने आज से तो जाना नहीं शुरू किया। आज से दो साल पहले जब तुम लोग यहां आए थे तब तो मेरी किसी दिनचर्या से तुम लोगों को हर्ज नहीं था लेकिन अब तुम मुझे अपने हिसाब से ढालने की कोशिश क्यों कर रहे हो??”

“ऐसा नहीं है मां कि मैं आपकी दिनचर्या बदलने की कोशिश कर रहा हूं… मैं बस यह कह रहा हूं कि समाज क्या कहेगा है कि 57 साल की औरत किटी पार्टी में जा रही है”

“बेटा… जाती तो मैं ऑफिस भी हूं… क्या तब तूने कहा कि माँ आप 57 साल की हो कर नौकरी कर रही हैं।जब मै नौकरी कर सकती हूँ तो अपना जीवन क्यूँ नहीं जी सकती…  अगर तुम्हें आज समाज की इतनी फिक्र है तो तब क्यों नहीं सोचा जब मैं अकेली यहां रह रही थी… बेसहारा सी। आज जब मैंने अपने हिसाब से जिंदगी जीना सीख लिया तो तुम्हारी नाक कट रही है। और हां…. रही बात समाज की तो बातें समाज में बाद में शुरू होती हैं… पहले घर में शुरू होती हैं…. अगर तुम्हें और बहू को मेरी दिनचर्या नहीं अच्छी लग रही है तो बेशक तुम वापस दिल्ली जा सकते हो क्योंकि मुझे पता है…. तुम सिर्फ यहां तब तक हो जब तक तुम्हें कहीं आसरा नहीं मिल जाता और मैं तुमसे उम्मीद लगाकर खुद को दोबारा नहीं तोड़ सकती” अपना पल्लू सही करती.. हाथ में हैंड पर्स लहराती माँ दरवाजे से बाहर निकल गई… अपनी जिंदगी जीने के लिए और बेटा बहू एक दूसरे का मुँह तकते रह गये|

मौलिक

स्वरचित

अंतरा 

 

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