खुशियाँ लौट आई – उमा वर्मा 

घर में टीवी पर कोई अच्छा सिनेमा चल रहा था ।हम सब, अम्मा, बाबूजी, भैया और भाभी सब लोग आनन्द उठा रहे थे कि अचानक भैया के सिर में तेज दर्द होने लगा और उन्हे उल्टियाँ होने लगी ।जबतक अस्पताल ले जाने की तैयारी होने लगी तो भैया दुनिया से चले गये ।

घर परिवार में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा ।अम्मा का तो रो रो कर बुरा हाल था ।भाभी एक दम गुमसुम हो गई ।फिर सारे क्रिया कर्म और परिवार के आगमन के बीच भैया को अंतिम विदाई दे दी गई ।घर सूना लगने लगा था ।अम्मा दहाड़ मार कर रो रही थी और भाभी को कोस रही थी ” इसी के भाग से मेरा बेटा चला गया ” ।मै कहना चाहता था ” अम्मा, भाग तो सब का जुड़ा था उनसे फिर अकेले भाभी को दोष क्यों?” मुझे भाभी से सहानुभूति थी ।बेचारी के हाथ की मेहंदी भी नहीं छूटी थी ।

कि उनकी दुनिया ही उजाड़ हो गई ।मुझे उम्मीद थी कि एक दिन अम्मा को उनसे जरूर हमदर्दी हो जाएगी ।पर जैसे जैसे दिन बीत रहा था अम्मा उनके प्रती और भी उग्र हो गई थी ।वे उन्हें किसी भी तरह माफ नहीं कर रही थी ।दिन अपनी गति से चल रहा था ।अम्मा का रोना चालू रहता ।भाभी ने घर के लोगों के हिसाब से अपनी दुनिया ढाल ली।मै भी भाई को बहुत याद करता और भाभी से सहानुभूति रखता था ।वे मेरे आफिस जाने के लिए सुबह उठकर गरमागरम चाय बना देती ।फिर टिफ़िन पैक कर देती ।

उस के बाद घर के लोगों के लिए खाना तैयार करती, घर की सफाई करती ।अम्मा बाबूजी का बहुत खयाल रखती थी वह लेकिन अम्मा उनसे खुश नहीं हुई कभी ।एक दिन इन्ही विचारों में खोया आफिस जा रहा था कि पीछे से आटो वाले ने ठोक दिया ।मेरे पैर में फ्रैक्चर हो गया ।किसी तरह घर पहुंचा तो भाभी ने सहारा दिया और पलंग पर लिटा दिया ।फिर तुरंत हल्दी चूने का लेप लगाया ।




अब मै आफिस नहीं जा रहा था चोट के कारण ।भाभी मेरा बहुत खयाल रखती थी ।मेरे खाने के लिए जब गरमागरम रोटियाँ सेकती तो चूल्हे की आग में उनका तपता हुआ चेहरा मुझे बहुत प्यारा लगता ।वे रोज सुबह फूलदान में ताजे फूल लगा देती ।मेरे पढ़ने के लिए अखबार और पत्रिकाएं करीने से मेज पर रख देती।अब वे मुझे बहुत अच्छी लगती ।कहीँ न कहीं अपने दिल में उनके लिए लगाव महसूस करने लगा था मै।पर अम्मा से उम्मीद करना बेकार था ।

भैया के जाने के बाद परिवार में कुछ लोगों ने कहा था कि सुधीर के साथ जोड़ी लगा देना चाहिए ।मै भी तो यही चाहता था ।कभी सोचता, यह मेरी भाभी है, मुझे ऐसा नहीं होने देना चाहिए ।फिर मन कहता ” हरज ही क्या है?” उनकी भी तो सारी उम्र पड़ी है, उन्हे भी तो एक सहारा चाहिए ।धीरे-धीरे मेरा आकर्षण उनके लिए बढ़ता गया ।हिम्मत करके  अम्मा से कहा तो वह फट पड़ी ” पागल हो गया है क्या ” एक बेटे को खो दिया, अब तुम को नहीं खोना चाहती हूँ ” लेकिन मैंने अपने मन में फैसला कर लिया था ।

देखते देखते होली का त्यौहार आ गया ।घर में कोई रौनक नहीं थी।अम्मा अपने कमरे में भैया को याद करके रो रही थी ।भाभी रसोई की तैयारी में लग गई थी ।अच्छा मौका था ।मै अब एक दम उठा  और पूजा की थाली से एकमुश्त अबीर-गुलाल  लेकर उनके माथे पर भर दिया ।घर में कोहराम मच गया ।अम्मा ने गुस्से में हम दोनों को बहुत कुछ कहा।भाभी को घर से निकल जाने को कहा ।हाथ पकड़ कर बाहर कर दिया और दरवाजे को बंद कर दिया ।मै अम्मा पर चिल्लाया ” यह क्या किया तुमने?, 

वह बेचारी  कहाँ जायगी ” ” बड़ा आया भाभी की तरफ दारी करने, बहुत हमदर्दी है तो कर लेना ब्याह ” ” हाँ, हाँ, कर लूँगा।” यही तो मैं चाहता था ।मै तुरंत घर से निकल गया ।पास में ही मंदिर था ।देखा  भाभी चुप चाप सिर झुकाए रो रही थी ।उनका हाथ थामे  पंडित जी से निवेदन किया ” पंडित जी, हमारी शादी करवा देते तो ठीक था ” फिर तुरंत दो फूल माला खरीदा।एक घंटे के बाद उनका हाथ थामे दरवाजे पर खड़ा था ।गले में माला ,माँग में सिंदूर, बहुत प्यारी लग रही थी वह ।

अंदर से अम्मा निकली ।हाथ में आरती की थाली लिए ।हम दोनों की आरती की उनहोंने ।अंदर ले आई हाथ पकड़ कर ।हमें तो उम्मीद ही नहीं थी अम्मा के इस रूप की।” बेटा, हमारी गलती हो गई, इस बच्ची को घर से निकल जाने को कहा ।हमें माफ कर देना बेटा ।पापा ने मुझे बहुत समझाया कि घर की इज्जत घर में रहना चाहिए ।मै ही गलत थी।बेटा खोया था  न,तो दिमाग फिर गया था मेरा।भाभी अब मेरी पत्नी थी।अम्मा के पैर पर झुकी हुई थी ।अम्मा ने उसे कलेजे से लगा लिया ।मेरी उम्मीद का सितारा बुलन्द हो गया था ।मैंने ईश्वर को लाख लाख धन्यवाद दिया ।—- ” उमा वर्मा, सिंह मोड़,राँची

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