खुद करो तो ठीक मैं करू तो गलत – रश्मि प्रकाश 

 

वह अपने ऑफिस से निकलने ही वाली थी …कि अचानक तेज बारिश शुरु हो गई सोचने लगी समर ने कहा था “आज मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा मेरा इंतजार कर लेना।”

एक घंटे होने को आए समर अब तक नहीं आया ऑफिस के भी अधिकांश लोग जा चुके थे। ऑफिस की कार भी निकल गई क्योंकि उसे अपने समर के साथ आज कुछ शॉपिंग करने जाना था पर समर आए तो सही कुछ सोच कर दीपा ने समर को फोन किया,”कहाँ हो समर बारिश तेज हो रही सब लोग निकल गए हैं तुम मुझे लेने आने वाले थे याद है और भूल गए?”

“दीपा जी समर सर कार ड्राइव कर रहे हैं कुछ ही देर में मुझे घर ड्रॉप करके आपको लेने चले जाएंगे वो बारिश तेज हो गई तो उन्होंने मुझे लिफ्ट दे दिया मेरा घर आपके ऑफिस के रास्ते में ही पड़ता है। मैं सनाया समर सर के साथ काम करती हूं अभी कुछ दिनों पहले ही ऑफिस ज्वाईन किया है।”कहकर उसने फोन रख दिया

दीपा को कुछ समझ आया कुछ नहीं तभी एक कार का दरवाजा खुला और बैठने का इशारा किया गया।देखी तो ऑफिस में ही काम करने वाले उसके मैनेजर तन्मय सर थे।

समर का गुस्सा वो कार में बैठ कर निकाल दी।

तन्मय ने उसे घर पहुंचा दिया तो औपचारिकता वश उसने चाय कॉफी को पूछ लिया। तन्मय इस निमंत्रण को अस्वीकार ना कर सका और घर में आकर बैठ गया।

दोनों कॉफ़ी पी ही रहे थे तभी समर आ गया। एक तो दीपा वहाँ नहीं मिली ना उसका फोन उठा रही थी और अब सामने किसी के साथ बैठ कर कॉफी पी रही थी।

“तन्मय ये है मेरे पति समर और समर ये मेरे मैनेजर सर तन्मय आज इन्होंने ही मुझे घर पहुंचा दिया।”दीपा ने समर के चेहरे को पढ़ते हुए कहा




कुछ देर तक अपने गुस्से को दबाए समर सामान्य बन कर बात करता रहा। जब तन्मय चला गया उसके बाद समर चुप ना रहा,”तुम मेरा इंतजार नहीं कर सकती थी? क्या जरूरत थी मैनेजर के साथ आने की!!”

“मुझे इस बारे में कोई बात नही करनी तुमसे तुमको दूसरों से फुर्सत मिल जाए उसके बाद मेरे लिए सोचना।”कह दीपा रसोई में रात के खाने की तैयारी करने लगी

जब समर को खाने के लिए बुलाने गई तो वो फोन पर व्यस्त दिखा।वो बस इशारे में बोल आ गई ,वो भी दो मिनट कहकर फोन पर लगा रहा।

दीपा इंतजार करना चाह रही थी पर भूख जोर की लगी तो वो खाने लगी।

“आ ही रहा था इंतजार कर लेती…।” कह समर अपनी प्लेट लगाने लगा

 

 

“ये सनाया भी ना अभी अभी आई है हर बात मुझसे ही पूछती रहती है।”कहकर समर खाने लगा

दीपा कुछ ना बोली जानती थी बात कहां से कहां पहुंच जाएगी इसलिए चुप रहने में ही भलाई है। फिर सुबह जल्दी उठ कर ऑफिस जाने के चक्कर में बहस करके कौन सिरदर्द मोल ले।

दीपा की चुप्पी समर को चुभ रही थी।

“कुछ बोलोगी नहीं?”समर खामोशी तोड़ना चाहता था

“सुनना ही चाहते हो तो सुनो जैसे सनाया की मदद तुमने की वैसे ही तन्मय सर ने मेरी कर दी तुम भी ऑफिस जाते हो साथ काम करने वालों के साथ कैसा रिश्ता तुम भी बखूबी जानते होंगे। बस आज के बाद इस बारे में कोई बात ना पूछना ना कुछ उल्टा सीधा सोचना।” कहकर दीपा उठकर जाने लगी

“मतलब….!”कुछ आगे बोलने से पहले ही समर को एहसास हुआ कि दीपा सनाया की वजह से उसके पास देर से गया इसलिए वो नाराज़ हैं।

सुबह जब दीपा उठी तो समर सो रहा था,जब वो चाय बनाकर ले आई तो देखती क्या है समर फिर से फोन पर लगा है..वो चाय रख कर चली गई।




कुछ देर बाद समर ने दूसरी चाय देने कहा तो दीपा का गुस्सा फूट पड़ा।

कल का दबा हुआ लावा बाहर निकल आया।

समर भी कहा चुप रहने वालों में था, तन्मय के साथ लेकर दीपा को सुनाने लगा। दोनों एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे थे और शायद बात उतनी बड़ी नहीं होती जितनी दोनों के आरोपों से खींचती चली गई।

दीपा वैसे ही गुस्से में ऑफिस चली गईं।

शाम में भी मन मुटाव दिखाई दे रहा था।समर के पास सनाया का फोन आता रहता और वो बातों में मशगूल ही रहता।

आज सुबह फिर सनाया का फोन आ गया और समर ने दो बार चाय के लिए कहा तो दीपा से रहा नहीं गया। वो समर को बोली,”ऐसा करो तुम खुद ही चाय बना लो नहीं तो ऑफिस जाकर इस सनाया के साथ पी लेना मेरे पास इतना समय नहीं कि तुम बातें करते रहो और मैं चाय बनाती रहू…।”

“आज सुबह से तुम वही राग अलापने लगी क्या हो गया किसी से बात कर लेता हूं तो ,अब वो खुद आगे बढ़कर पूछ रही है तो क्या बोलकर मना करूं तुम ही बताओ?’ गुस्से में तमतमाए समर ने दीपा से कहा

“हाँ हाँ करो ना फिर जब मैं किसी से बात करूं तो सब तुम्हें मेरा बॉयफ्रेंड ही क्यों नजर आता है?”खुद करो तो ठीक मैं करू तो गलत वाह ये सही है तुम्हारा !”मन ही मन भुनभुनाती दीपा रसोई में जल्दी जल्दी काम निपटा कर ऑफिस निकलने की तैयारी करने लगी।

ऑफिस की कार भी आती होगी ये नहीं की थोड़ी मदद ही कर दें फोन पर ही लगें रहते बोल दो तो जनाब को बुरा बड़ी जल्दी लग जाता और कहते हैं छोटी सी बात को रबड़ की तरह खींच देती हों।ये किस्सा शादी के दूसरे महीने से ही शुरू हो गया था। जबकि समर जानता था कि दीपा जहां काम करती वहां पर लडके भी है और दीपा की सबसे अच्छी बनती है। पर कुछ दिनों से समर के ताने सुन कर अब दीपा से भी नहीं रहा जा रहा था। कोई बर्दाश्त करें भी तो कितना कर सकता है।जब से तन्मय उसे छोड़ने आया समर का बर्ताव दीपा के प्रति और खराब होने लगा था।

 

 

समर का ये बदला रूप देख दीपा के समझ ही नहीं आ रहा था करे तो क्या करें।

आज उसने सोच लिया घर आकर अपने रिश्ते को समझना होगा नहीं तो किसी दूसरे की जगह बनते देर नहीं लगेगी।




रात को कमरे में…

“समर सोच रही हूं अब जॉब छोड़ दूं…तुम क्या कहते हो?”दीपा ने बिना किसी भूमिका के बात रख दी

“क्या हुआ तुम्हें जो जॉब छोड़ने की बात कर रही हो? ये ई एम आई का क्या होगा फिर और अपने घर का सपना वो कैसे पूरा होगा?”समर परेशान होता हुआ बोला

“वो सब तुम समझो मेरे ऑफिस में बहुत लड़के है जिनसे मेरे पति को बहुत आपत्ति हो रही ऐसे में नौकरी करने से घर का माहौल खराब हो रहा इससे अच्छा है जॉब ही छोड़ दूं!”दीपा ने कहा

“यार समझ रहा हूं ताने मार के बात को रबड़ की तरह मत खींचो मैं भी ऑफिस के चक्कर में तुम पर ध्यान नहीं दे रहा था…हम दोनों ही बिना बात का इश्यू बना रहे थे।अब से हम घर में ऑफिस के जरूरी कॉल पर बात करेंगे बाकी का वक्त हमारा होगा प्यार को खींचो तकरार को नहीं!”कहकर समर दीपा से अपने व्यवहार के लिए माफी माँग लिया

अब से ऑफिस में लड़कों से बात करने पर आपत्ति जताना बंद कर दिया और सनाया को ऑफिस में काम से काम तक रखता घर पर उसके कॉल को साइलेंट मोड पर अब प्यार की डोर खींचना था बातों का नहीं!

कभी कभी छोटी सी बात रबड़ की तरह खींचती चली जाती है जिसका अंत कई बार सुखद नहीं होता दीपा और समर भी वैसा ही कर रहे थे पर दीपा की समझदारी ने बात को संभाल लिया और समर भी समझ गया कि ऑफिस और घर दोनों की जगह अलग है एक में मिला देने से बात तो खींचनी ही है क्या पता कोई रेखा ही खींच जाती।

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

 

 

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