काश! मैने तभी आवाज उठाई होती… – आरती  खुराना आसवानी

“क्या बात है दामिनी आज हर अख़बार में तुम्हारा जिक्र है, सभी लोकल न्यूज़ चैनल तुम्हारे दिलेरी के किस्से बता रहे।पर फिर भी तुम उतनी खुश नही लग रही।” मिहिर ने पत्नी  दामिनी से पूछा।

” हाँ ,खुश तो नहीं पर थोड़ी सी संतुष्टि है कि मैं मीठी के लिए कुछ कर पाई।’ दामिनी ने बात पूरी की।

मीठी दामिनी के घर काम करने वाली  नीलिमा की बेटी है।दामिनी जब से शादी कर के आयी तब से नीलिमा उसके घर काम कर रही।नीलिमा ने दामिनी के दुख सुख में हमेशा साथ दिया। नीलिमा की बेटी का नाम “मीठी” भी दामिनी ने ही रखा था। नीलिमा के काम पर आने के बाद उसके बच्चे घर में अकेले ही रह जाते थे।नीलिमा के खोली के बाहर से मीठी गायब हो गयी। नीलिमा के पति का दोस्त उसे फुसला कर ले गया था।

मीठी की हालत खराब देख दामिनी ने कसम खा ली थी कि वो नीलिमा और मीठी को न्याय दिला कर रहेगी। मीठी सिर्फ पांच साल की है। दामिनी को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अंततः उसने उस हैवान को सात साल की सजा करवा कर ही दम लिया।

सब लोग सोचते कि क्या पड़ी थी दामिनी को…मेड की बच्ची के लिए इतनी लंबी लड़ाई लड़ने की… पर कोई नहीं जानता उसके पीछे भी एक कहानी है।

एक अंधेरे कमरे में टेबल लैंप के नीचे दामिनी अपनी डायरी लिखते हुए,” आज इतने सालों बाद जो अग्नि सीने में धधक रही थी उसको कुछ हद तक शांति मिली। काश मैंने ये आवाज़ तब उठायी होती।  सालों पहले जब मैं पेट में पथरी  की वजह से अस्पताल में दाखिल हुई थी।दर्द इतना भयानक था कि मैं इंजेक्शन लगते ही बेसुध हो गयी,पर आज भी वो अश्लील स्पर्श मेरी रूह को झकझोर कर रख देतां है। बदहवासी में मुझे याद नही वो हरकत की किसने…परंतु डॉक्टर ने जिस हवस भरी निगाहों से मुझे देखा मेरे मन ने गवाही दी कि ये वही बेहया इंसान है। मैं सिर्फ उसे घूर कर देख ही पाई जाने क्यों …….कुछ महीनों बाद शादी थी… शायद इसीलिए इज्जत का सोच मैं कुछ बोल ही नही पाई।




शादी के बाद मिहिर के स्पर्श को भी मैं सहज नही ले पाई क्योंकि कही न कही वो अश्लील स्पर्श मेरी आत्मा को घायल कर चुका था। शादी के एक साल बाद जब अखबार में पढ़ा कि वही  डॉक्टर एक गर्भवती महिला के साथ जबरदस्ती करने के कारण निलंबित हो गया। जबरन सम्बन्ध बनाने के कारण गर्भवती महिला का तीन महीने का गर्भपात भी हो गया।

जहां एक तरफ उस डॉक्टर की सजा सुन मुझे खुश होना चाहिए था वही उस अजन्मे बच्चे की मौत का मैं खुद को जिम्मेदार समझने लगी। एक साल में वो डॉक्टर जाने कितनी महिलाओं के साथ अश्लील हरकतें कर चुका होगा। काश ! मैने एक साल पहले उस डॉक्टर के खिलाफ एक्शन लिया होता,तो कितनी मासूम औरतें उसका शिकार होने से बच जाती। मेरे चुप रहने से ही उस दरिंदे के हौसलें बढ़े होंगे। सिर्फ स्पर्श ही तो था ये सोच कर मैने उसे अनदेखा करा…. पर मेरे अनदेखी ने…. उस डॉक्टर को पूरा हैवान बना दिया। मैं इस शर्मिंदगी को कई सालो से झेल रही थी।

सालों बाद जब मीठी… मेरे हाथों में खेली बच्ची का वो हाल देखा… तो मेरे अंदर की औरत ने मुझे धिकारा । तभी मैने ठाना बच्ची मेरी हो या किसी और की….कोई फर्क नही पड़ता…समाज में घूम रहे इंसानों के रूप में इन दरिंदो को सबक सिखाना जरूरी है…….इन्हें अनदेखा करना बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। दामिनी ने पेन को ढक्कन लगा डायरी बन्द कर दी। लैंप बन्द किया और सोने चली गयी।




आंखे बंद करने पर पलकें इतनी भारी लग रही थी जैसे सालों बाद आज सो रही थी।सही मायनों में उस काश का बोझ इतना ज्यादा था…जिसने दामिनी की रातों की नींद , दिल का सुकून सब छीन लिया था।

नीलिमा रोज सुबह की तरह काम पर आई। दामिनी ने हाल चाल लिया।

” और मीठी ठीक है…बस्ती में सबका कैसा व्यव्हार है ? कोई कुछ गलत  बोलता तो नही……”

” क्या दीदी अब तो बस्ती का माहौल बदल गया है।एक राक्षस को सजा मिलते ही सब सुधर गए।बच्चियां खेलती हुई इधर उधर निकल भी जाये तो लोग उनकी खोली तक पहुंचा कर जाते है। ” नीलिमा ने कॉफी पकड़ाते हुए दामिनी से कहा।

दामिनी ने कॉफी का सिप लेते सूर्य को देखा उसे ऐसे लग रहा जैसे सूर्य एक नई सुबह का आगाज कर रहा हो।

धन्यवाद दोस्तों

मेरा ये ब्लॉग स्वरचित और काल्पनिक है । इस ब्लॉग के माध्यम से मैं सिर्फ यही बताना चाहती हूं कि…दामिनी की तरह हमे किसी काश के बोझ तले नहीं जीना ।औरत कोई भोग की वस्तु नहीं….जहां लगे गलत हुआ….. वहां आवाज उठानी चाहिए।

आपकी दोस्त

आरती  खुराना आसवानी

 

 

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