कलाकृति (भाग 1 )-डॉ पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : आज बहुत दिनों के बाद अमृता के मन में गहन शांति थी। इतने दिनों से इसके मन में पीहू को लेकर जो कसमकश चल रही थी उस पर विराम लग गया था। वैसे भी पीहू कोई गैर तो नहीं थी उसकी दिवंगत सगी ननद दिव्या की बेटी थी।अब अमृता और उसके पति सुधाकर ने पीहू को कानूनी तौर पर अपनाने का फैसला लेकर अमृता को फिर से मां बनने का अधिकार दे दिया।

कल पीहू को अपनाने की सारी कार्यवाही पूरी हो जायेगी। आज की रात जहां अमृता को सुकून दे रही थी वहीं उसको अतीत के उन गलियारों में भी ले जा रही थी जिनसे उसने हमेशा बचना चाहा है।ना चाहते भी उसे बीते हुए कल की सारी बात याद आ गई। 

वो उन दिनों में पहुंच गई जब आज से लगभग बीस वर्ष पूर्व वो इस घर में सुधाकर की दुल्हन बन कर आई थी। सुधाकर बैंक में मैनेजर थे। छोटा सा परिवार था। घर में सुधाकर के अलावा उनके माता-पिता और उनसे दस वर्ष छोटी बहन दिव्या थी। माता-पिता को सुधाकर और उनका परिवार भा गया था।

इस रिश्ते के लिए अमृता की मौन स्वीकृति समझ चट मंगनी पट विवाह की तर्ज़ पर शादी कर दी गई थी। अमृता ने उस समय कॉलेज पूरा किया ही था। स्वभाव से वो बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी नहीं थी पर घर के कामों में निपुण और काफ़ी समझदार थी। जब वो विवाह करके इस घर में आई थी तब मात्र बाइस साल की थी और सुधाकर पच्चीस साल के थे।

मायके का माहौल ऐसा था कि उसके दिल में ससुराल के लिए कोई भी नकरात्मक विचार ना था। उसको लगा था कि सास-ससुर के रूप में उसको माता-पिता और ननद के रूप में छोटी बहन मिल जायेगी।

पर यहां आकर देखा तो उसकी सोच से उलट ही माहौल था। वैसे भी कहते हैं ना कि हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती ऐसा ही कुछ अमृता की ससुराल का हाल था। सुधाकर अपने काम में व्यस्त रहते थे और ससुर जी की भी रिटायरमेंट में अभी काफ़ी समय बाकी था। 

घर पर सासू मां का एकछत्र राज्य था जिसमें वो और उनकी बेटी किसी का भी हस्तक्षेप नहीं चाहती थी। सुधाकर से दस वर्ष उपरांत पैदा होने की वजह से वो काफ़ी ज़िद्दी और नकचढ़ी थी। घर में अमृता का आना और उसका सुधाकर के साथ हंसी के दो बोल बोलना तक दिव्या को रास नहीं आता था।

वैसे भी अगर इसके खाना बनाने में या घर के काम में कुछ कमी हो जाती तो सासू मां सारा घर सर पर उठा लेती और मायके से कुछ ना सीख कर आने का ताने विभिन्न तरीके से सुसज्जित कर उसका दिल दुखाने से ना चूकती। इधर दिव्या अमृता के मेकअप से लेकर नए नए कपड़ों को बिना पूछे बेकद्री से उपयोग में लाती।

कभी अमृता कुछ कह देती तो उस एक बात में चार लगाकर सुधाकर के सामने परोसती। अमृता के लिए सब कुछ बहुत असहनीय हो रहा था। वो तो सुधाकर का व्यवहार उसके प्रति काफ़ी प्रेमपूर्ण था साथ-साथ ससुर जी भी उसको बेटी की तरह मान देते थे,नहीं तो उन लोगों के पीछे तो वो दो बोल प्यार के लिए भी तरसती थी। बाहर वालों के सामने उसकी सास इतना मीठा बोलती थी कि कोई अमृता के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार की कल्पना भी नहीं कर सकता था। 

 दिन बीत रहे थे अमृता गर्भवती थी वो अपनी पहली संतान को जन्म देने वाली थी जहां उसको बहुत प्यार और देखभाल की जरूरत थी वहीं सास और ननद का व्यवहार उसका दिल दुखा जाता। उसकी गोद भराई की रस्म थी। इसके मां ने बड़े प्यार से वर्षो से संजोए बहुत ही सुंदर झुमके बाकी सब सामान के साथ अमृता को दिए थे।

अमृता को बचपन से ही वो झुमके बहुत पसंद थे। सभी मेहमानों के जाने के बाद दिव्या ने वो झुमके उठा लिए और कहा कि ये मेरे को पसन्द आ रहे हैं इनको मैं ही रखूंगी। अमृता ने उसको बहुत समझाने की कोशिश की यहां तक कहा कि वो और कुछ भी ले सकती है पर वो टस से मस नहीं हुई।

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कलाकृति (भाग 2 )

कलाकृति (भाग 2)-डॉ पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

डॉ पारुल अग्रवाल,

नोएडा

#अधिकार

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