कभी धूप कभी छांव : बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

*************

” अम्मा बार बार तुम्हारे नाम की चिठ्ठियॉ आ रही हैं, जो निर्णय करना हो एक बार जाकर सब कुछ खतम कर दो।”

” तुम लोग कोई सलाह देते नहीं हो, मैं कोई निर्णय कर नहीं पा रही हू्ॅ, क्या करूॅ, कहीं ऐसा न हो कि बाद में तुम लोगों को लगे कि मैंने जो किया गलत था।”

तीनों बच्चे मॉ के पास बैठ गये। बड़े बेटे राजन ने मॉ का हाथ अपने हाथ में ले लिया – ” ये दोनों तो छोटे थे, इन्हें शायद सब कुछ याद न हो लेकिन मुझे तुम्हारा हर संघर्ष याद है। तुम जो भी फैसला लोगी वह हम तीनों का फैसला होगा।”

” तब ठीक है कल तुम तीनों मेरे साथ चलना, कल इस कहानी को खतम कर दूॅगी।”

तीनों बच्चे तो सो गये लेकिन विशाखा की ऑखों में नींद नहीं थी। कैसे भूल सकती है उस दिन को, जब संजय अपने साथ एक स्त्री को लेकर घर आया। अक्सर घर न आने और कम होते वेतन के कारण, कुछ भी कहने पर उसको और बच्चों को मारने पीटने के कारण काफी दिन पहले  जान गई थी कि संजय के किसी दूसरी स्त्री से सम्बन्ध हैं लेकिन बच्चों के लिये चुप रह जाती। कहॉ लेकर जायेगी तीन बच्चों को? कम से कम थोड़ा खाकर भी बच्चों के साथ सुरक्षित तो रहती है। 

जबसे भाई की शादी हुई है, उसका चार दिन के लिये भी मायके आना किसी को पसन्द नहीं आता है और जब पता चलेगा कि वह संजय को छोड़कर हमेशा के लिये आ गई है तो शायद उसे कोई घर में भी नहीं घुसने देगा।

चुपचाप सहती जा रही थी लेकिन उस दिन तो हद ही पार हो गई। संजय ने आते ही कहा कि इस घर में अब मेरे साथ नीरू रहेगी, तुम लोग अभी घर छोड़कर जाओ।

सुनकर विशाखा दंग रह गई – ” इतनी रात में बरसते पानी में तीन बच्चों को लेकर मैं कहॉ जाऊॅ?”

” कहीं जाओ, मुझे इससे मतलब नहीं है।” यह कहते हुये उसने बड़े बेटे को एक लात मारी – ” इन पिल्लों को लेकर तुरन्त मेरे घर से निकलो नहीं तो मैं सबको मार डालूॅगा।” उसने एक साल की बिटिया को जमीन पर पटकने के लिये उठा लिया। विशाखा ने दौड़कर बच्ची को संजय के हाथ से छीन लिया।

” मैं अभी जा रही हूॅ लेकिन मेरे बच्चों को अब हाथ भी मत लगाना।” फिर उसने नीरू की ओर देखकर कहा – ” कैसी औरत हो तुम जो एक औरत से उसका घर और बच्चों से उसका पिता छीन लिया?”

” अपने पति को तुम बॉध नहीं पाईं तो वह मेरे पास आ गया।” नीरू ने इतराते हुये कहा – ” तुम्हारा पति यदि तुम्हारे साथ रहना चाहे तो मैं अभी चली जाती हूॅ। अपने आपसी झगड़ों में मुझे दोष देना बन्द करो।”

संजय ने हाथ पकड़कर उसे बच्चों सहित उस बरसती अंधेरी रात में घर से निकाल दिया और नीरू खड़ी मुस्कराती रही।

उस रात तीनों बच्चों को लेकर विशाखा सहायता के लिये पास के थाने में गई लेकिन नशे में चूर रिपोर्ट लिखने के नाम पर बार बार उसको स्पर्श करते थानेदार की वासना भरी नजरों को देखकर थाने से बाहर भाग आई।

जिन्दगी तीन बच्चों के साथ आज इस मुकाम तक कैसे आई है, वही जानती है। उसे याद है कि पहली बार उसने सौ रुपये के लिये अपनी अस्मत का सौदा किया था क्योंकि उसके बच्चे तीन दिन से भूखे थे और गुड़िया बुखार में तप रही थी।

आज उसके दोनों बेटे राजन और मानव मोटर मैकेनिक का काम करते हैं और बेटी नीति इण्टर मीडियट में पढ रही है और सभी अपनी मेहनत से सम्मान की रोटी खा रहे हैं। 

दूसरे दिन विशाखा अपने तीनों बच्चों सहित संजय के आफिस में थी।

” आप लोगों को इतने बार बुलाया गया लेकिन आप लोग आते ही नहीं थे। न जाने कितने सालों से आपका केस पेंडिंग था, ऊपर के अधिकारियों से डॉट तो हमको पड़ती है।” अधिकारी काफी नाराज था – ” चलिये, इन कागजों पर हस्ताक्षर करिये,ताकि संजय परमार की पेंशन और सारे भुगतान आपको दिये जा सकें। वैसे भी आप लोगों का पता कितनी मुश्किल से ढूढा है हमने आपको क्या मालुम?”

विशाखा ने एक बार बच्चों की ओर देखा फिर कहा – ” साहब संजय की मृत्यु का हमें कुछ पता नहीं था लेकिन आपको मेरा पता किसने बताया?”

तब उस अधिकारी ने बताया कि अखबार में विज्ञापन देखकर उन लोगों के किसी रिश्तेदार या पड़ोसी ने आफिस में यह पता भेजा था जिसका नाम उन्हें नहीं पता है।

विशाखा ने एक बार फिर से अपने बच्चों की ओर देखा, फिर कहा – ” साहब, आप जहॉ कहिये, मैं हस्ताक्षर कर दूॅगी लेकिन मुझे और मेरे बच्चों को संजय का कुछ नहीं चाहिए। “

यह कैसे हो सकता है सुनकर सभी चौंक गये। इस आफिस में मृतक के परिवार को पेंशन और एक एक पैसे के लिये लड़ते झगड़ते तो सबने देखा था लेकिन कोई ऐसा भी आयेगा कि लाखों रुपये और आजीवन मिलने वाली पेंशन से इन्कार कर देगा यह तो कल्पनातीत है।

” आप लोगों को पता भी है कि आप क्या कह रहे हैं?”

” हॉ, साहब पता है लेकिन मेरा अब भी यही फैसला है कि मेरी ओर से आप इस सब पैसे  का कुत्तों को खाना खिला दीजिये लेकिन हम लोगों को नहीं चाहिये।” फिर विशाखा फूट फूटकर रोने लगी – ” साहब, जिन्दगी तो धूप- छांव है। बरसते पानी की वह रात और घर से निकाले जाने के बाद के वो दिन जब अपने बच्चों के लिये मैं हर बुरा से बुरा काम करने के लिये तैयार हो गयी थी बीत गये तो अब मुझे पैसे का क्या करना? अब तो मेरे बच्चे बड़े हो गये हैं, दुख के दिन बीत गये हैं। मेहनत करके दो रोटी अपने लिये और दो मेरे लिये कमाकर ले ही आयेंगे।”

अधिकारी ने एक अन्तिम प्रयास किया, उसने राजन की ओर देखकर कहा – ” अपनी मॉ को समझाओ बेटा कि अपने अधिकार को ऐसे न छोड़ें। इस पैसे से तुम अपने दोनों भाइयों और बहन के लिये बहुत कुछ कर सकते हो। इनको आजीवन पेंशन मिलेगी और…..।”

लेकिन राजन ने बात पूरी होने के पहले ही कहा – ” साहब! मेरी अम्मा का जो फैसला है, वही हम तीनों का फैसला है। मैं पॉच साल का था, मैंने अपनी अम्मा का वह संघर्ष देखा है। मेरी अम्मा बी०ए० तक पढी थी लेकिन कोई प्रमाण पत्र न होने के कारण भीख मॉगने तक के लिये मजबूर हो गईं थी। अम्मा सही कह रही हैं कि जिन्दगी धूप – छांव है। अब हमें किसी के पैसे की कोई जरूरत नहीं है। हम मेहनत से जो कमायेंगे, उसी में सन्तुष्ट रहेंगे।”

फिर विशाखा ने एक आवेदन पत्र लिखकर अपने और बच्चों के हस्ताक्षर करवा दिये – ” लीजिये साहब, हम चारो ने लिखकर दे दिया है कि हम लोगों को अभी और भविष्य में संजय का कुछ नहीं चाहिये। इसे संजय की फाइल में लगा लीजिये ताकि आपका काफी दिनों का पेन्डिंग केस खत्म हो जाये।”

लेकिन फिर जैसे विशाखा को कुछ याद आ गया – ” साहब, आपने हम लोगों का पता लगाने के लिये इतनी मेहनत की, क्या इस पैसे और पेंशन पर किसी ने अभी तक दावा नहीं किया है।”

” नहीं, संजय की मृत्यु के दूसरे दिन ही नीरू नाम की स्त्री ने आकर दावा किया था कि पेंशन और भुगतानों पर उसका अधिकार है लेकिन सर्विस रिकार्ड में आप और आपके बच्चों का नाम था, इसलिये उसे कुछ भी नहीं दिया जा सकता था।

उसने बताया कि आपकी मृत्यु हो चुकी है तो उसे आपका मृत्यु प्रमाण पत्र और बच्चों को लेकर आने को कहा गया। वह बार बार नये बहाने लेकर आती रही कि प्रमाण पत्र गुम हो गया है और बच्चे कहीं चले गये हैं। बाद में तो उसे आफिस गेट से ही भगा दिया जाता था।”

” आप चाहें तो उसे दे दीजिये, हमें कोई एतराज नहीं है।’

” ये सरकारी सुविधाएं मृतक और उसके परिवार के लिये होती हैं, अनाधिकारी के लिये नहीं।”

चारो ने सभी बैठे हुये लोगों को हाथ जोड़कर अभिवादन किया और सब उन सबको जाते हुये अविश्वनीय नजरों से देख रहे थे जो हाथ आई पेंशन और पैसे ठुकराकर सम्मान की सूखी रोटी खाना चाहते थे।

 

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर 

# सम्मान की सूखी रोटी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!