…पूरे तेरह लोगों का टिकट कटाया था अनिल ने… संजोग से दो टिकट दूसरे डब्बे में मिल गए…
मां, पापा, भैया, भाभी, दीदी, जीजा जी, खुद वह उसकी पत्नी सुधा, और साथ में सबके बच्चे… सभी को एक डिब्बे में बिठा… वह भैया के साथ दूसरे डब्बे में चला गया…
बड़ा लंबा सफर था… पूरे दक्षिण की यात्रा करके वे लोग वापस आ रहे थे…
सबकी गपशप… बच्चों की धमाचौकड़ी में कब समय निकल गया कुछ पता ही नहीं चला…
वापसी में सभी बड़े थके हुए थे… पर बच्चों पर थकान का कहां असर था… चारों बच्चे मस्ती करने में लगे थे…
दो जगह टिकट हो जाने से समस्या और गहरी हो गई थी… बच्चे भाग कर दूसरे डिब्बे में जाने की बार-बार जिद कर रहे थे…
सुधा का बेटा सबसे छोटा बिट्टू अभी उनकी दौड़ से अलग था… पर भाई-बहनों की शरारतें देखकर… वह साल भर का बच्चा भी पूरी जोर लगाए था…
मां पिताजी तो अपनी बर्थ पर सो गए… माला दी, और कंचन भाभी भी लेटी हुई थीं…
बिट्टू को कंचन भाभी ने अपने पास ही सुला लिया…” देख सुधा हम आराम कर रहे हैं… बच्चों को देखते रहना…!”
” भाभी मैं अकेली इन चारों को कैसे संभालूंगी…!”
” अरे ऐसा कौन सा संभालना है… चलती ट्रेन है… कूद थोड़े ही जाएगा कोई… बस नजर दिए रखो…!”
सुधा का बड़ा बेटा गुड्डू भी सिर्फ 3 साल का था… पर भैया दीदी के पीछे वह भी बावला था…
अंकिता, सोनम और सनी तीनों बच्चे बड़े थे… माला दी की बेटी अंकिता साथ आई थी… सोनम और सनी कंचन के बच्चे थे…
सुबह का समय था… गाड़ी कई स्टेशनों पर अभी रुकती हुई चल रही थी…
एक जगह काफी देर गाड़ी खड़ी रही… अनिल, भैया के साथ इस डब्बे में आया…
सारे बच्चे उसके साथ हो लिए…” यह चाहिए… वह चाहिए…!”
” अच्छा ठीक है… सबको जो चाहिए मिलेगा पर कोई नीचे मत उतारना…!” बोलकर अनिल नीचे उतर गया…
भैया सबको सोया देखकर वापस अपनी बर्थ पर चले गए… इतने में बच्चे भी नीचे उतर गए…
अनिल ने देखा तो डांट कर उन्हें वापस भेज दिया…
गाड़ी भी अचानक स्टार्ट हो गई… थोड़ी देर के बाद सोनम ने पूछा…” गुड्डू कहां है…!”
सभी बच्चों की नजर गई… छोटा गुड्डू तो वहां था ही नहीं…
देखते-देखते बच्चे गुड्डू… गुड्डू… शोर मचाने लगे… सुधा के पांव तले की जमीन खिसक गई…
उसने तुरंत अनिल को फोन लगाया…” गुड्डू को तुम साथ ले गए क्या…?”
” क्या… नहीं… नहीं तो… क्या बोल रही हो…?”
अब तक सभी की नींद भाग चुकी थी… सब एक दूसरे पर बच्चों पर झल्ला रहे थे… चिल्ला रहे थे…
इधर-उधर देख लेने के बाद… भैया ने झट से चेन खींच दी…
चारों तरफ अफ़रा-तफ़री मच गई थी…
तीन साल का बच्चा ही तो था… बड़ा होता, तो कम से कम अपना नाम पता तो ढंग से कुछ बता पाता…
अंकिता और सोनम ने तो रोना शुरू कर दिया… सबकी डांट का पहला लक्ष्य तो बच्चे ही थे…” तुम्हारे साथ था… तुम लोगों ने देखा कैसे नहीं…!”
चेन खींचकर क्या फायदा था… गाड़ी स्टेशन से काफी दूर निकल आई थी…
गुड्डू का कहीं पता नहीं मिल पाया… सभी लोग ट्रेन से उतर गए…
जिसकी जिस पर बना रही थी… सभी आपस में एक दूसरे पर अपनी अपनी भड़ास निकालने में लग गए…
इस समय तीनों बच्चे ऐसे चुप हो गए… मानो कोई बच्चा साथ ही ना हो… एकदम शरीफ… एक दूसरे का मुंह देखते खड़े थे…
कंचन भाभी, माला दी दोनों को अपने-अपने पति से फटकार पड़ रही थी…
दादा दादी अलग उलझ रहे थे… सुधा अनिल दोनों एक दूसरे पर इल्जाम का टोकरा उठा उठा कर फोड़ रहे थे…
सभी कैब कर वापस स्टेशन आए… कहीं बच्चे का पता नहीं चला…
चीखना… चिल्लाना… रोना… सब जोड़ों पर था…
स्टेशन मास्टर ने कहा…” आप लोग शांति रखिए… पता लगा रहे हैं… सीसीटीवी फुटेज भी देखते हैं… इस तरह चिल्लाने से काम नहीं चलेगा…!”
बच्चे की तस्वीर लेकर हर जगह खोज खबर लगानी शुरू की गई…
कोई दो घंटे बाद… जिस ट्रेन से वे वापस जा रहे थे… उसी ट्रेन के एक स्टाफ ने फोन किया…
बच्चा ट्रेन में ही था… दूसरे डब्बे में… औरों के साथ…
खबर पक्की जान कर सबकी जान में जान आई…
अब तक सब लड़ झगड़ कर… आपस में सारी यात्रा की याद को कड़वाहट में बदल चुके थे…
स्टेशन पुलिस की मदद से गुड्डू को उतार लिया गया…
सभी फिर वापस उस स्टेशन पर पहुंचे… जहां गुड्डू को उतारा गया था…
इस पूरे घटनाक्रम में 5 से 6 घंटे लग गए थे…
ये छः घंटे पूरे एक युग की तरह बीते मानो… और बच्चे… उनके भीतर तो जबान ही नहीं थी… जैसे ही गुड्डू से मिलना हुआ… सभी खुशी से झूम उठे…
सबके मिल जाने के बाद सुधा ने गुड्डू को गोद में लिया… प्यार से पूछा…” बेटा… तुम कहां चले गए थे…!”
” मैं कहीं नहीं गया… ट्रेन में था… आप लोग चले गए…!”
” अच्छा हम लोग चले गए थे… लेकिन तुम तो नहीं थे हमारे साथ… तुम भैया दीदी को छोड़कर कहां गए थे…!”
” मैं खेल रहा था… भैया दीदी के साथ… छुप कर उधर गया… सूसू आई तो करने चला गया… फिर खोज रहा था… आप लोग नहीं मिले…!” बोलते हुए गुड्डू सुबक-सुबक कर रोने लगा…
आखिर बच्चा तो मिल गया… लेकिन सब ने एक सीख ली, कि जब हम समूह में कहीं जाते हैं तो जिम्मेदारी किसी एक कि नहीं… पूरे समूह की होती है…
हम सबको एक दूसरे का सम्मान और ध्यान दोनों करना होता है… समूह की जिम्मेदारी अधिक जटिल होती है… आपस में उलझने का प्रायश्चित सभी कर रहे थे… एक दूसरे की कुछ अधिक ही परवाह कर के……
रश्मि झा मिश्रा