जिल्लत के छप्पन भोग – मनीषा भरतीया : Moral Stories in Hindi

बाबूजी कब तक मुफ्त की रोटियां तोड़ते रहेंगे??

चलिए उठिए  जाकर बाजार से सब्जी और फल ले आइए…. और हां यह लीजिए 10 किलो गेहूं  है…”इसका आटा भी पिसवा कर ले आइएगा! 

“लेकिन प्रिया बेटा तुम तो जानती हो कि मैं 10 दिन से बुखार से पीड़ित था… आज अभी तो बुखार उतरा है… मेरे शरीर में इतनी भी ताकत नहीं है कि मैं 10 मिनट खड़ा रह सकूं….. और ऊपर से  दम्मे की बीमारी से इतनी हांफती  होती है कि हमेशा चक्कर आते हैं….

” और तुम मुझे कह रही हो कि मैं आटा पिसवा लूं …और सब्जी फल बाजार से लेकर आऊं…. वहां से घर तक का कोई रिक्शा भी नहीं मिलता और मिलता भी है  तो रिजर्व करके आना पड़ता है…. जिसका 150 रुपए भाड़ा लगता है… फिर तुम गुस्सा करोगी…..

“और पैदल में इस हालत में 15 -20 किलो वजन लेकर कैसे आऊंगा???

कुछ तो मुझ पर रहम करो…

मैं तुम्हारे पिता समान हूं…

लोग जानवरों के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं करते जैसा तुम मेरे साथ रोज करती हो…

अच्छा अच्छा ठीक है ज्यादा बकवास करने की जरूरत नहीं है…

ठीक है आप आटा कल पिसवा कर ले आइएगा …अभी सब्जी और फल ले आइए.. ठीक है बहू जैसा तुम ठीक समझो… वैसे मेरी हालत घर के बाहर जाने की भी नहीं है….. लेकिन तुम मुझ पर सामान लाने के लिए दबाव डाल रही हो…. अगर मुझे कुछ हो गया मैं गिर के बेहोश हो गया तो इसकी जिम्मेदार तुम होगी…

हां हां ठीक है इतना लेक्चर झाड़ने की जरूरत नहीं है ऐसा कुछ नहीं होगा…

आप पुराने जमाने के हैं ….”बहुत  घी खाया हुआ है….. पहले की चीजें अभी की तुलना में बहुत अच्छी होती थी….

आपके शरीर में हम सबसे ज्यादा ताकत है! 

वैसे भी मैं क्या इस घर में अकेली खाती हूं??? आप भी तो  खाते हैं बाबूजी!

सबको मिल बांटकर ही काम करना पड़ता है….

अब जाइए भी जल्दी  नहीं तो सब्जी और फल नहीं मिलेंगे….”थोड़ी देर बाद पंकज ( प्रिया का पति)    घर में घुसता है….

अरे पंकज आप अभी तो गए थे …इतनी जल्दी ऑफिस से आ गए??

हां मेरी एक जरूरी फाइल घर में ही छूट गई बस उसे ही लेने आया हूं..

अभी लाई! 

आप चाय पियेंगे??

नंही 

बाबूजी कहां है… दिखाई नहीं दे रहे अपने कमरे में आराम कर रहे हैं क्या??

क्या हुआ जवाब क्यों नहीं दे रही??

वो वो वो

यह वो वो क्या लगा रखा है??

सुबह-सुबह सांप सुंध लिया है क्या तुम्हें??

अरे नहीं वह मेरा कहने का मतलब है कि वह उनके दोस्त रामधन काका है ना… बाबूजी उनसे ही मिलने गए हैं…

कैसी बातें कर रही हो! 

रामधन काका  तो परसों रात की ट्रेन से लखनऊ गए हैं…

वह दो-तीन दिन पहले मुझे नूक्कड़ पर मिले‌ थे… तभी उन्होंने मुझे बात बात में बताया…

सच-सच बताओ तुम क्या छुपा रही हो?? कांटो तो खून नहीं प्रिया की जान तो जैसे हलक में आ गई…

अब करे‌ तो क्या करें…वो मैंने उन्हें बाजार भेजा है सब्जी और फल लाने के लिए…

तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया आर यू मैड??

बाबूजी का आज सुबह 10 दिन बाद बुखार उतरा था…

तो तुमने उनसे काम करवाना भी शुरू कर दिया…

तुम्हें तो शर्म आनी चाहिए! 

इतना नीचे कैसे गिर सकती हो तुम! 

अरे कैसी बहू हो तुम तुमने एक बार भी नहीं सोचा की बाबूजी को चक्कर आकर अगर वह गिर गए उन्हें कुछ हो गया…. तो क्या होगा??

आज मेरे पिता की जगह तुम्हारे पिता होते क्या तब भी तुम यही करती??

जवान संभाल के बोलो पंकज! 

क्यों जब बात अपने पिता पर आई तो तुम्हें इतना बुरा क्यों लगा??

: खैर छोड़ो तुमसे तो बात करना ही बेकार हैं…

आप सुनिए तो सही इतना परेशान मत होइए … बाबूजी आ जाएंगे …. उन्हें कुछ नहीं होगा…

तुम्हारे लिए ये कहना बहुत आसान है…. क्योंकि वो तुम्हारे बाबूजी नहीं है ना… तुम्हारे अन्दर इंसानियत नाम की कोई चीज तो है नही…. क्योंकि तुम्हें अपना पराया  से फुर्सत कहां हैं…. लेकिन मेरे लिए तुम्हारे पिताजी हो या मेरे पिताजी दोनों एक बराबर है….

अरे इंसान तो वो होता है….. वो जो‌ राह चलते राहगीर जिसे वो‌ जानता भी नहीं फिर भी उसकी तकलीफ़ में मदद करें…. मुझे बाबूजी की बहुत चिंता हो‌ रही है… पता नहीं वो किस हाल में होंगे…

कहीं गिर तो नहीं गये‌ होंगे 

उन्हें कुछ हो तो नहीं गया होगा..

मन में बुरे बुरे ख्याल आ रहे हैं??: सुबह से दोपहर हो गयी …. वो अभी तक नहीं आए…. मैं जा रहा हूं… अपने बाबूजी को‌ ढुंढने….

भैया ये‌ फोटो देखिए… ये मेरे बाबूजी है…. आपने इनको कहीं देखा है???

नहीं भैया मैंने तो कहीं नहीं देखा…

“सुनिए भैया एक बार आप भी ज़रा ध्यान‌ से देखकर बताए….. क्या आपने इनको कहीं देखा है….

नहीं भाई हमने‌ नही देखा… यकीन मानों…

देखते तो जरूर बताते… हमारे भी तो‌ पिता समान हैं….

 पंकज को अपने पिताजी को खोजते खोजते सुबह से शाम हो गई…. पर उनका कहीं पता नहीं चला

हर गली, हर चौराहा सब कुछ छान‌ मारा…. ” लेकिन निराशा ही मिली 

जब वो हारकर  पुलिस टेशन‌ जाकर रिपोर्ट लिखाने जाने‌ वाला ही था….. तभी उसने सोचा क्यों ना राधा कृष्ण के मन्दिर में एक बार देखा जाए… बाबूजी अक्सर वहां जाते ही है….. क्योंकि वो हमारे घर से‌ नजदीक है…. बहुत उम्मीद लगाए और ईश्वर से प्रार्थना करते हुए वो‌ उस मन्दिर की तरफ बढ़ा…. और ये भी सोचा कि पुलिस वाले २४ घंटे के पहले रिपोर्ट कंहा लिखते हैं….

मन में भगवान की आराधना करते हुए…. भगवान‌ मेरे पिताजी को एक बार मुझसे मिलवा दो…. अब से मैं खुद उनका ध्यान रखूंगा…

मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी… भगवान!

मुझे क्षमा कर दो‌ भगवान!: बस मुझे मेरे बाबूजी से मिलवा दो!

तभी पंकज को मन्दिर के प्रांगण में उसके बाबूजी दिखाई दिए….  वह विलख विलख कर रोने‌ लगा…. भगवान का लाख लाख शुक्र है… बाबूजी की आप बिल्कुल ठीक हो और सही सलामत मुझे मिल गये…. मुझे माफ़ कर दीजिए…. बाबूजी मैं अच्छा बेटा नहीं बन सका… मैं काम में इतना उलझा रहा… कि कभी देख ही नही सका की प्रिया आपके साथ इतना खराब बर्ताव करती है…. आप प्लीज घर चलिए..बाबूजी,अब मैं आपका ध्यान रखूंगा… आपको कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा…. 

अरे बेटा,तू इतना परेशान मत हो और ना ही खुद को ग़लत समझ…. इसमें तेरी कोई ग़लती नही है…तेरे जैसा बेटा तो किस्मत वालों को मिलता है… तू घर में रहता ही कितनी देर हैं… जो तुझे पता होगा…. मैंने भी तुझे कभी इसलिए नहीं बताया कि तू परेशान होगा….

और बहू भी पूरी तरह से गलत नही है…. वो खाना पीना सब मुझे वक्त पर देती हैं… और सबकुछ मुझे जो पसंद  है… वो भी बनाती है … बस मेरे साथ उसका वर्ताव ठीक नहीं है…. कुछ भी बोलने से पहले  सोचती नहीं… दिन भर जली कटी बातें सुनाती है.. और सम्मान नहीं देती…. 

  अब वैसे भी तेरी मां तो चली गई…. जिसके साथ मैं अपने सुख दुख बांट सकता था…. बस अब पिंकी , सोनू और तुम्हारे लिए एक साल‌ से जिल्लत की जिंदगी जी रहा था… लेकिन अब मैंने फैसला कर लिया है…. कि‌ अब मैं भगवान की सेवा करूंगा….. और जो रूखा‌ सुखा मिल जाएगा उस सेवा‌ के

निमित वो खा लूंगा…. और पंडित जी से मेरी बात हो गयी है… उन्होंने कहा है….. मन्दिर के पीछे वाले हिस्से में छोटा कमरा है…. जिसमें मैं रह सकता हूं..

माना मुझे छप्पन भोग खाने को नहीं मिलेगा…. लेकिन जो‌ रूखा सूखा भी मिलेगा…. वो‌ पूरे सम्मान से मिलेगा…

इसलिए बेटा तू दिल पर कोई बोझ मत रख..

तू पिंकी और सोनू के साथ मिलने आते रहना

मुझे किसी भी चीज की जरूरत होगी… तो मैं तुझसे मांग लूंगा

पंकज  रूंधे गले और आंखों में आंसू भरे हुए घर लौट आता है 

उसे कम से इतनी तसल्ली रहती है कि उसके पिता ठीक हैं….

दोस्तों सही भी है मुझे भी लगता है कि जिल्लत के छप्पन भोग खाने से तो सम्मान की सूखी रोटी खाना ज्यादा अच्छा है…

ये मेरे विचार है…

आप अपने विचार मुझे जरूर बताएं 

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#सम्मान की सूखी रोटी

स्वरचित 

@मनीषा भरतीया

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