झूठ के पाँव नहीं होते : करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

वो ज़माना तो गया बहनजी….जब बस घर-बार देखकर लड़कियाँ ब्याह दी जाती थी । मुझसे मत कहना अपने छोटे बेटे का रिश्ता बताने को । तुम्हें बहू नहीं चलता फिरता रोबोट चाहिए । जैसे तुम्हारे लच्छन है ना …. ब्याह तो होने से रहा । 

इतना कहकर रिश्ते कराने वाली सरस्वती तेज़ी से निकल गई । शीतल की समझ में कुछ नहीं आया कि वह अपनी बात कहकर  इतनी जल्दी में क्यूँ निकल गई….आख़िर मेरी भी तो सुनती । शीतल घर के अंदर आई । हमेशा की तरह बड़ी बहू निधि का कमरा बंद था । शीतल ने खुद ही पहले पानी पिया फिर अपने कमरे में जाकर कपड़े बदलकर , हाथ- मुँह धोकर बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई ।

मन हो रहा था कि कोई बढ़िया सी चाय बनाकर दे दें और चाय पीने के बाद वह थोड़ी देर लेट जाए । पर उसके नसीब में ऐसा सुख कहाँ?

पूरे बीस साल हो पति को गुजरे …. छोटे- छोटे तीनों बच्चों को उसने कैसे पाला , वही जानती थी । वो तो भला हो पति के सहकर्मियों का , जिन्होंने भागदौड़ करके उसे पति के स्कूल में ही नौकरी दिलवा दी थी । शुरू- शुरू में तो वह शर्म से गड जाती थी जब कोई उसे पानी पिलाने को कहता या सामान इधर से उधर ले जाने को ….पर धीरे-धीरे शीतल ने स्वीकार कर लिया था कि अगर दर-दर की ठोकरें नहीं खानी तो अपनी नौकरी की इज़्ज़त करनी पड़ेगी । 

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समय गुजरता गया । शीतल ने बच्चों को  बहुत सुविधाएँ नहीं तो कभी किसी चीज़ का अभाव भी नहीं होने दिया । बेटी की शादी जे०बी०टी० कराने के बाद कर दी । बड़े बेटे ने बी० टेक० किया और एक कंपनी में लग गया । वैसे तो शीतल ने सोचा था कि बड़े की नौकरी लगने पर आराम की ज़िंदगी जिऊँगी पर अच्छी ख़ासी तनख़्वाह को छोड़ने का साहस न कर सकी । बड़ी बहू क्या आई मानो उसके जीवन की शांति भंग हो गई थी । 

शीतल हमेशा की तरह सुबह के नाश्ते- खाने की तैयारी करके , अपना लंच बॉक्स पैक करके निकलती पर बहू तो सिर्फ़ अपना और बड़े बेटे का खाना बनाती ….. देवर से एकबार भी ना पूछती । अपने कमरे का झाड़ू- पोंछा करती और बाक़ी घर यूँ ही पड़ा रहता । एक दो दिन तो शीतल ने कुछ नहीं कहा पर तीसरे दिन बहू को बुलाकर कहा—-

बेटा ! परिवार में मिलजुल कर रहना पड़ता है । अब मेरी भी उम्र हो रही है । जितना होता है, मैं सुबह कर जाती हूँ । तुम घर में रहती हो तो अपने घर को  अब तुम्हें ही सँभालना पड़ेगा । 

माँजी! मैं अपना और अपने पति का काम कर सकती हूँ बस …

शीतल ने बहू की बात बीच में काटते हुए कहा—-

चलो ! झाड़ू- पोंछा वाली लगवा देती हूँ । तुम्हारा हाथ बँटवा दिया करेगी । 

पर अब भी बहू केवल अपना खाना बनाती और देवर को हर रोज़ कॉलेज कैंटीन में ही खाना पड़ता था । बहुत समझाने पर भी जब बहू ने अपने में कोई बदलाव नहीं किया तो शीतल अपने साथ छोटे बेटे का टिफ़िन भी पैक करके जाने लगी ।

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नहाते- नहाते अपने कपड़े खुद धोकर डाल जाती और छोटा बेटा खुद धो लेता था । बड़े कपड़ों के लिए हफ़्ते में एक दिन मशीन लगा देती थी । शीतल नहीं चाहती थी कि मोहल्ले में उनके घर की कहानी मनोरंजन का विषय बन जाए । 

छोटे बेटे की भी बैंक में नौकरी लग गई पर लाख कोशिश के बाद भी उसके लिए कोई रिश्ता ही नहीं आता था । थकहार कर शीतल ने रिश्ते कराने वाली सरस्वती देवी से बातचीत की पर आज उसका टका सा जवाब सुनकर शीतल की समझ में नहीं आ रहा था कि मैं बहू को रोबोट समझती हूँ , यह बात सरस्वती ने क्यूँ कही ……

इसका  पता लगाकर ही छोड़ेगी । वे घर की बात को जितना दबाने की कोशिश कर रही है बहू उतने ही पैर फैलाती जा रही  थी । शीतल ने अपने लिए चाय का कप बनाया और सरस्वती देवी के ऑफिस की तरफ़ चल पड़ी । थोड़ी दूर ही गई थी कि रिश्ते में लगने वाली जेठानी मिल गई । शीतल को देखते ही कटाक्ष करते हुए बोली—-

सुबह तो निकल जाती हो बन-ठनकर , कम से कम एक आध काम शाम को तो करवा दिया करो उस बच्ची के साथ । बहू क्या आ गई …. तुम्हारे तो पर निकल आए । पर्स उठाती हो और निकल लेती हो वो पूरा दिन चक्करघिन्नी बनी रहती है । उसकी हालत देखकर ही तो छोटे का रिश्ता नहीं आ रहा । 

शीतल का मन तो किया कि खरी-खरी सुना दें पर यह सोचकर चुप रही कि पूरी बात उगलवाने के लिए चुप रहना ज़रूरी है । इसलिए उसने कहा—-

बहनजी! गलती तो मुझसे हुई है पर आपको किसने बता दिया?

मैं क्यों किसी का नाम बताऊँ ? वो तो अच्छा हुआ कि  तुम्हारे घर  के सामने से आना – जाना लगा रहता है और बेचारी बहू को पड़ोसियों से बातें करती सुन ली मैंने ।

शीतल उल्टे पाँव घर लौट आई । वह समझ गई कि उसके काम पर जाने के बाद बहू न जाने क्या- क्या कहानियाँ गढ़कर पड़ोसियों को सुनाती रहती थी…..शीतल ठहरी नौकरीपेशा ,

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उसके पास तो इतना समय नहीं होता कि सुख- दुख के अलावा पड़ोसियों के साथ गप्पें मार सके । उसने मन ही मन भगवान को धन्यवाद कहा कि उसने मेरा मन नौकरी छोड़ने से फेर दिया वरना वह तो बेटों की गुलाम बनकर रह जाती । फिर उसने बड़े बेटे से कहा कि —-

वरुण!  निधि अक्सर तुमसे नया घर लेने की बात करती रहती है….मैंने भी इस बारे में बहुत सोचा कि बात ठीक ही है । यह पुराना बाबा के जमाने का मकान रहने लायक़ तो रहा नहीं…..ऐसा करो या तो इसे तोड़कर नया मकान बना लो या कहीं अलग ले लो ।

वरुण ने दो दिन बाद माँ से कहा—

माँ, इस पुराने मोहल्ले में मकान बनाने का क्या फ़ायदा….कल को बच्चे बड़े हो जाएँगे तो यहाँ क्या रखा है? ऐसा करो इस मकान को बेच दो और मेरा हिस्सा मुझे दे दो । 

नहीं बेटा , जब तक मैं जीवित हूँ मकान तो नहीं बेचूँगी । रही तुम दोनों की बात ….तुम दोनों भाई मेरी तरफ़ से आज़ाद हो …. अपने बलबूते पर मकान बनाओ और रहो । मेरे बाद तुम दोनों को यह मकान मिल ही जाएगा ।

शीतल का लहजा देखकर वरुण थोड़ा सकपकाया पर बोला कुछ नहीं । वे दोनों पति- पत्नी तो शायद अलग घर बसाने की योजना पहले ही बना चुके थे । एक महीने के अंदर ही बड़ा बेटा  अपने परिवार के साथ शहर के पॉश इलाक़े में रहने चला गया।

अब शीतल ने छोटे बेटे के विवाह के लिये अपनी ही जान- पहचान की एक रिश्तेदारी में साधारण सी लड़की देखी और बहू ले आई । छोटी बहू की शादी को छह महीने बीत चुके थे पर पड़ोसी हैरान थे कि आख़िर बड़ी बहू को रोबोट समझने वाली सास ने छोटी बहू के साथ वैसा व्यवहार क्यों नहीं किया क्योंकि छोटी बहू से जब भी कोई उसकी सास के बारे में कुछ पूछता तो वह हमेशा सास की तारीफ़ करती नहीं थकती थी ।

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करने को तो शीतल बड़ी बहू की असलियत सबको बता सकती थी पर वह हमेशा यही सोचकर चुप रही कि सच्चाई भला कब तक छिपती है ….झूठ के पाँव नहीं होते । 

करुणा मलिक 

# तुम्हें बहू नहीं चलता फिरता रोबोट चाहिए

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