झूठ का बोझ… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

“…और कितनी देर लगाओगी… जल्दी करो ना… मां पापा के आने का समय हो गया है…!”

” बस हो गया… दो मिनट और…!” क्रिस्टीना फिर से एक बार आईने में अपने को ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोली…” सब तो सही है…!” साड़ी के प्लेट पर हाथ फेर कर… एक बार अपने गालों को फाइनल टच किया… आईने से खुद को परफेक्ट पूछ कर पल्लू उठा सर पर डाल दिया… पहले सर पर… फिर उसे खींचकर नाक तक लाकर खुद ही मुस्कुरा उठी…” हो गया… अब बिल्कुल ठीक है…!” उसने दरवाजा खोल दिया…

 बाहर राजीव हड़बड़ा कर बोला…” क्या यार इतनी देर लगा दी…!”

” वह छोड़ो… पहले देख कर बताओ… ठीक है ना… लग रही हूं ना… बिल्कुल संस्कारी बहु…!”

 राजीव ने सर से पैर तक उसे देखा… फिर पल्लू खींच कर सर के नीचे करते बोला…” मेरा सर… सिंदूर कौन लगाएगा… बिना सिंदूर के संस्कारी बहू बन गई… इतना सब कर लेती हो, और यह सबसे जरूरी बात तुम्हारे दिमाग में कैसे नहीं आती…!”

 क्रिस्टीना मायूस हो गई… “सॉरी…!”

” नहीं यार… सॉरी मत बोलो… आओ मैं लगा देता हूं…!” राजीव ने उसे आईने के पास ले जाकर दराज में रखी सिंदूर की डिबिया निकाली और एक चुटकी उसकी मांग में सजा दिया…” हां… अब एकदम परफेक्ट है…!”

तभी दरवाजे का बेल घनघना उठा… “मां पापा आ गए… चलो जल्दी… पल्लू ले लो…!”

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 राजीव ने दरवाजा खोला… मां पापा मुस्कुराते हुए सामने खड़े थे… दोनों ने झुक कर उनके पैर छुए… झुकते ही राजीव की नजर पीछे खड़ी बड़ी सी ट्राली बैग पड़ गई… राजीव थोड़ा झिझकते हुए बोला…” मां इतनी बड़ी ट्राली में क्या है…!”

” क्या है क्या… इस बार हम अपने बच्चों के साथ रहने आए हैं… शादी तो तुमने अपनी मर्जी से कर ली… इसलिए कभी बहू को जानने समझने का मौका नहीं मिला… दो बार आई तो पहली बार गुस्से में थी… दूसरी बार बहू के स्वभाव से खुश होकर गई… इस बार उसके साथ समय बिताऊंगी… मुझे भी तो कुछ दिन बहू का सुख लेना है…!” राजीव खीझ गया

” आओ कृष्णा… पास बैठो बेटी…!” मां ने क्रिस्टीना को पकड़ कर अपने पास बिठा लिया… उससे बातें करने लगी… पर राजीव के चेहरे का रंग उड़ चुका था… थोड़ी देर में चाय नाश्ते के बाद… मां नहाने चली गई… और पापा वहीं सोफे पर झपकी लेने लगे…

 राजीव ने धीरे से क्रिस्टीना से कहा…” तुम्हें नहीं पता तुम कृष्णा नहीं क्रिस्टीना हो… क्या जरूरत है तुम्हें इतना अच्छा बनने की… मां को पता चल गया तो सारा प्यार और दुलार यहीं धरा रह जाएगा…!”

क्रिस्टीना उदास होकर बोली…” देखो राजीव, मैं जैसी हूं वैसी ही हूं… तुमने मुझसे मेरे इसी व्यवहार के साथ शादी की है… अब यह तुम्हारी परेशानी है कि तुम ये नहीं समझ सके कि मैं कृष्णा नहीं क्रिस्टीना हूं… घर से झूठ बोला तुमने… मां पापा को धोखा दिया तुमने… मुझे झूठ बोलने को बार-बार मजबूर भी तुम्हीं कर रहे हो… इस दिखावे की जिंदगी की क्या जरूरत है… मैंने तो पहले ही दिन कहा था कि उन्हें सच बता देते हैं… अगर वे यह बर्दाश्त कर चुके की बेटे ने बिना बताए शादी कर ली… तो यह भी बर्दाश्त कर लेंगे की बहू हिंदू नहीं इसाई है…!” 

“क्रिस्टीना… यह इतना आसान नहीं है… यह बात मां कभी बर्दाश्त नहीं करेगी…!”

” मतलब… मैं बुरी बन जाऊं… जो मैं नहीं हूं वह बन जाऊं… राजीव, मुझे मां पापा के साथ रहना अच्छा लगता है… मैं तुम्हें बता नहीं सकती… जब मां ने कहा कि वह मेरे साथ रहना चाहती है, तो कितनी खुशी हुई… मगर एक झूठ का बोझ… जो मेरे सर पर लदा है… उसके कारण मैं खुलकर खुश भी नहीं हो पा रही…

प्लीज राजीव मुझे इस दिखावे की जिंदगी से आजाद कर दो… मैं सच्चे दिल और सच्चाई के साथ मां की बहू बनना चाहती हूं…!” इतना बोलते क्रिस्टीना की आंखें डबडबा गईं… वह सुबकने लगी…तभी राजीव को सामने से हटाते हुए… मां ने आगे बढ़कर क्रिस्टीना को पकड़ कर, गले से लगा लिया… उनकी आंखें भी भरी हुई थी… कुछ पल गले लगे रहने के बाद, अलग होकर मां कुछ बोलती उससे पहले क्रिस्टीना बोल उठी…” मां माफ कर दीजिए प्लीज…!”

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 मां ने उसके दोनों हाथ थाम लिए…” तुम क्यों माफी मांग रही हो बेटा… मैंने तो पहले दिन से जाना था कि तुम हमारे धर्म कर्म रीति रिवाज कुछ नहीं जानती… मैं तो तुम्हारे बारे में सब कुछ उसी समय पता लगा चुकी थी… इसलिए पहली बार गुस्से में गई… मगर दूसरी बार, तुमने अपने व्यवहार से मेरा दिल जीत लिया… बस यह एक दिखावा जो तुम दोनों मिलकर हमारे पास कर रहे थे… मुझे वह हटाना था… हमारे सूटकेस में तो बस खाने पीने का सामान भरा हुआ है… जो तुम दोनों के लिए ले आई… बाकी यहां अभी रहने को थोड़े ही आई हूं…!”

 राजीव शर्म से गड़ा जा रहा था…” सॉरी मम्मा…!”

” किस-किस बात के लिए सॉरी कहोगे बेटा… और किस-किस से कहोगे… हम कल ही जा रहे हैं… उसके लिए क्रिस्टीना को कृष्णा बनने की… अच्छी को बुरी बनने की… जरूरत नहीं है…!”

” नहीं मां… अभी आप कहीं नहीं जाएंगी… कुछ दिन हमारे साथ रहिए… क्रिस्टीना मनुहार से बोली… तो मां ने उस पर अपनी मनुहार की मुहर लगा दी… “जरूर रहूंगी बेटा… पर अभी नहीं… अभी तो बस तुम लोगों को अपने झूठ के बोझ से आजाद करने आई थी… अगली बार… जब तुम अपनी असली पहचान के साथ हमारा स्वागत करोगी…!”

रश्मि झा मिश्रा 

दिखावे की जिंदगी…

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