अभी कुछ दिनों पहले ईश्वर की असीम अनुकंपा से हमारे घर में पोती का अवतरण हुआ है। परंपराओं के अनुसार उसके नामकरण संस्कार के लिए मैं पंडित जी के पास गई जो शहर के प्रसिद्ध ज्योतिषी भी हैं। काफी लोग अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कर रहे थे अतः मैं भी बैठ गई और समय बिताने के लिए लोगों की अजीबोगरीब समस्याएं और उनके समाधान सुनने लगी कुल मिलाकर यही सार निकाला कि जब इंसान हालात के आगे मजबूर हो जाता है तो वह धर्म की शरण में आता है।
थोड़ी देर बाद मेरा नम्बर आया और मैं पंडित जी के सामने पहुंची अभी अपनी बात शुरू ही की थी कि एक युवक जिसके चेहरे से परेशानी टपक रही थी, बहुत जल्दी में भड़भडाता हुआ आया बहुत बेचैन था वो। पंडित जी ने उसे इंतज़ार करने को कहा पर मेरा मन उसकी व्यथा को महसूस कर पा रहा था तो मैंने उससे कहा.. पहले आप बात कर कर लीजिये।
उसने कृतज्ञता भरी नज़र मुझ पर डाली और जो कुछ भी उसने बताया उसे सुनकर दिल छलनी हो गया जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो क्या कीजियेगा। वह भी अपने बच्चे की ग्रहदशा जानने आया था उसने जो बताया वह प्रकृति का क्रूर मज़ाक ही था।
पांच दिन पहले उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी खुशी से सारा परिवार फूला नहीं समा रहा था। वह खुद दिहाड़ी मजदूर था जब डॉक्टर ने ऑपरेशन से डिलीवरी करने की बात कही तो किसी तरह पैसे का इंतज़ाम किया उसने। बेटे के जन्म के बाद उसे नर्सरी में रख दिया गया जहाँ नर्सें ही उसकी देखभाल कर रही थी वह तो बस शीशे में से अपने कलेज़े के टुकड़े को देखकर संतुष्ट हो लेता।
जब हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने का समय आया तो माँ बेटे दोनों के बिल उसे थमा दिये गये , चलते समय डॉक्टर ने उसे बताया कि बच्चे की आँखों में दिक्कत है आप उसे आँखों वाले डॉक्टर को दिखाएँ। उसने तत्काल बच्चे की आँखें खोलकर देखीं तो उसके होश उड़ गये धरती घूमती सी प्रतीत होने लगी उसे।
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बच्चे की आँखों में काली पुतली ही नहीं थी सिर्फ सफेद आँख के बीच में एक पीला मोती सा था ऐसा तो उसने या किसी ने भी कभी देखा या सुना ही नहीं था। मैं और पंडित जी भी अवाक् होकर उसकी बात सुन रहे थे। वह लगभग गिड़गिडाता हुआ पूछ रहा था.. बताईये न पंडित जी मेरे बेटे की ग्रहदशा कैसी है वह देख तो पायेगा न
पंडित जी मौन थे और यह मौन उसके साथ साथ मुझे भी कचोट रहा था इस पल मेरी सारी संवेदनाएं अप्रत्याशित रूप से उस युवक और बच्चे से जुड़ गई थी हम दोनों को ही पंडित जी जवाब का बेसब्री से इंतज़ार था।
आखिर में उन्होंने कहा ग्रहदशा तो अच्छी है पर तुम तुरंत उसे आँखों के डॉक्टर के पास ले जाओ।
उसे सबसे बड़ा दुःख यही था कि अगर अस्पताल प्रशासन ने पहले ही उसे सत्य से अवगत करा दिया होता तो जो पैसा उसका वहाँ भर्ती रहने पर लगा वह बच गया होता और वह जल्दी से जल्दी दूसरी जगह इलाज़ करा लेता।
मैं सोच रही थी कई बार जिंदगी इंसान को ऐसे दोराहे पर ला कर खड़ा कर देती है कि उसे मार्ग ही नहीं सूझता कि जाएं तो जाएं कहाँ।
स्वरचित एवं मौलिक
कमलेश राणा
ग्वालियर