इज्जत की बेड़ी। – रश्मि सिंह

प्रणव-आप सभी को सुप्रभात। आज हिन्दी सम्मेलन में आप सभी का स्वागत है। आपका विषय है-#इज़्ज़त। इस विषय पर लिखने के लिए आपके पास तीन घंटे का समय है। 

गरिमा विषय का नाम सुनते ही अतीत में पहुँच जाती है। माँ ने शादी के दिन समझाया था-जवानी से लेकर अब तक तुमने हमारा मान सम्मान, प्रतिष्ठा बनाए रखी। समय पर घर आना, सादगी से जीवन जीना, किसी शादी पार्टी में भी हमेशा भाई या पापा के साथ गई हो। तुमने कभी हमारा सर नहीं झुकने दिया। आज तुम्हारे विवाह के शुभ अवसर पर तुमको बताना चाहूँगी की तुम हमारा गर्व हो और आज से तुम एक नहीं दो परिवारों की इज़्ज़त हो।

गरिमा-माँ अब और नहीं कब तक सिर्फ़ मैं ही। आपने हमेशा मुझे ही इज़्ज़त सम्भालने का बेड़ा दिया, डर दबाव में रखा, प्रतियोगिताओं के लिए कभी बाहर नहीं जाने दिया, हर नियम मेरे पर ही लागू किए, पर भाई को तो कभी कुछ नहीं कहा। वो ऑफिस से इतना लेट आता है जब चाहता है दोस्तों के साथ घूमने जाता है। उस पर कोई पाबंदी नहीं।

गायत्री (गरिमा की माँ)- पुराने समय से चला आ रहा है कि लड़कों पर कभी कोई नज़र या पाबंदी नहीं रखी गई है। क्या तुम्हें नहीं पता कि हमारा समाज पुरुषप्रधान है। अपने ससुराल में भी तुम्हें ये देखने को मिलेगा तो इस तरह वहाँ कोई सवाल-जवाब मत करना।

गरिमा विवाह के बाद ये डर लिए अपने ससुराल जाती है। दिलो दिमाग़ इज़्ज़त नाम की बेड़ी से जकड़ा हुआ है। हमेशा एक डर कि कोई ऐसी बात ना हो जाये जिससे मुझे कुछ सुनना पड़ जाए, या मेरी वजह से किसी का सर नीचा हो। 




ससुराल में उसे बहुत सकारात्मक वातावरण देखने को मिला, लड़के और लड़कियों के लिये एक नियम। एक दिन  सुनील (गरिमा का देवर)-मम्मी आज मैं अपने दोस्त की बर्थडे पार्टी में जाऊँगा। थोड़ा लेट हो सकता है। 

सावित्री (गरिमा की सास)-बेटा जल्दी आने की कोशिश करना, वरना अपने पापा को तो जानता ही है तू।

सुनील 12:30 बजे चुपचाप घर में आता है, तुरंत राकेश (गरिमा के ससुर) तेज़ आवाज़ में बोलते है ये कोई समय है घर आने का। तुम्हें घर का नियम नहीं पता क्या। 9 बजे तक हर हाल में घर में आना है। मदिरा-पान सब प्रतिबंधित है। 

गरिमा ये सुनकर दंग हो जाती है कि मेरे ससुराल में लड़कों के लिए भी वही नियम है जो लड़कियों के लिए है। उसे बहुत प्रसन्नता होती है कि इज़्ज़त का अर्थ यहाँ सिर्फ़ लड़कियों को बांधने वाली बेड़ी से नहीं वरन् इज़्ज़त   रूपी चादर को ओढ़ने से है, जिसे सब पहनना पसंद करते है। 

घंटी की आवाज़ से गरिमा का ध्यान अतीत से हटकर वापस वर्तमान में आता है। उसके चेहरे पर एक मंद मंद मुस्कान थी क्योंकि इसी इज़्ज़त, मान-सम्मान की वजह से आज वो इस सम्मेलन में निर्णायक की भूमिका में हूँ। 

आदरणीय पाठकों,

इज़्ज़त का अर्थ किसी पर जबरन थोपे जाने वाले नियम नहीं होने चाहिए वरन् इज़्ज़त का अर्थ उन गुणों से होना चाहिए जो स्वच्छंद रूप से व्यक्ति के अंदर आत्मसात् हो, क्योंकि जबरन थोपे गये नियम कभी ना कभी टूटते ज़रूर है। आशा करती हूँ आप सबको मेरी रचना पसंद आयी होगी। मेरी रचना को अपना अमूल्य समय देकर सराहे




स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

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