इतनी स्वार्थी भी मत बनो – रश्मि प्रकाश

”ये कैसी गलती हो गई उससे … कह दो ये झूठ है…ना मैं मान ही नहीं सकता नरेन ऐसा कुछ कर सकता है….. मेरा छोटा भाई कभी ऐसाकर ही नहीं सकता है तुम लोग मुझे मेरे भाई के बारे में ऐसी बातें बता कर मुझे उसके ख़िलाफ़ भड़का रहे हो..!” कहते हुए नरेश बाबूअपनी आराम कुर्सी पर सिर

 टिकाएँ सामने खड़े पड़ोसियों की बात को झुठलाने पर लगे थे 

“ अरे नरेश बाबू आपसे हमें कोई बैर है क्या जो हम आपसे

 झूठ बोलेंगे….आप खुद ही चल कर देख लीजिए फिर कहिएगा कौन सचकौन झूठ…।” पड़ोसी रमाकान्त ने कहा 

नरेश बाबू  पड़ोसियों की भीड़ में कुछ ऐसे चेहरे भी देख रहे थे जो जाक देखने के खिलाफ अड़ंगा लगाने के लिए तैयार होंगे ।

नरेश बाबू कुछ ना बोले और उठ कर अपने कमरे में 

चहलक़दमी करने लगे।

“ बेटा…. तुने तो कहा था तू सदा छोटे का ख़्याल रखेगा..फिर ऐसा क्या हो गया जो छोटे ने ऐसा कदम उठाया?” दूर से माँ की आवाज़कमरे में गूंजती हुई प्रतीत हो रही थी 

“माँ मुझे माफ कर दे… मैं तेरा अच्छा बेटा नहीं बन पाया…नहीं रख पाया छोटे का ख़्याल… तू ही बता क्या करूँ.. एक 

कसम ने सदियोंसे हमारे बीच दीवार सी खड़ी कर दी है….एक 

तरफ़ मेरी पत्नी है दूसरी तरफ़ मेरा भाई…और तू इस कलह को देख ना सकी तो हमेंमँझधार में छोड़ कर चली गई…।” कहकर नरेश बाबू फफक पड़े

“ पता नहीं किस मोह में मैं फँस गया छोटे की आज तुम्हें देखने तक नहीं जा पा रहा…..ये बेड़ियाँ मुझे बहुत पहले तोड़ देनी 

चाहिए थी परतूने भी तो देखा था ना तेरी भाभी कैसे कैसे प्रपंच रचती रहती थी… बता कैसे तेरी बदनामी बर्दाश्त करता 



इसलिए अपने कलेजे पर पत्थररख ये दीवार चुनवा दिया…।” सामने की दीवार पर हाथ मारते नरेश बाबू की सिसकियाँ और तेज हो गई थी 

“आपको नरेन से मिलने जाना है..!” दमयंती देवी ने आकर 

नरेश बाबू से पूछा 

“ मुझे तुमने बात नहीं करनी दमयंती… बीस साल से जो मुझे हर दिन सालता रहा पर तुम्हारी आँखों ने हमेशा अनदेखा कर 

दिया आजइस सवाल को करने से क्या लाभ… ना जाने मेरा नरेन कैसा होगा… !” नरेश बाबू का रोना दिल दहलाने वाला था

“ मैं आज अपनी हर कसम वापस लेती हूँ…नरेन पर लगाए हर इलज़ाम झूठे थे…. मुझे माफ कर दीजिए … आप का भाई के प्रति लगावदेख कर मुझे लगता था आप ना तो मुझे और ना हमारे दोनों बच्चों को प्यार करेंगे बल्कि सारा प्यार दुलार पैसे सब नरेन को दे देंगे… मैं वो बर्दाश्त नहीं कर सकी और उस दिन आत्महत्या का नाटक रच आपको उनसे

 दूर कर दिया… पर मैं ना तब आप दोनों भाई का प्यार ना उसतोड़ पाई ना आज… आप अलग तो हो गए पर खुद से नरेन को अलग ना कर पाए… आज आपका ये रोना देख मुझे बहुत तकलीफ़ होरही है… आप जाइए नरेन के पास… मैं नहीं रोकूँगी..!” हाथ

 जोड़कर दमयंती नरेश बाबू के सामने खड़ी हो गई 

नरेश बाबू एक पल को दमयंती को देखे और लगभग भागते

 हुए घर से निकले…घर का चबूतरा तो एक ही था दीवार खींच गई थी वो भी ऐसी  की रास्ते ही अलग कर दे… 

नरेन के घर पर सब परेशान से खड़े थे.. सामने नरेन का दुबला पतला मृतप्राय सा शरीर देख कलेजा मुँह को आ गया… “ये क्या हालबना लिया मेरे भाई…!” कहकर दौड़ते हुए अपने भाई को गले से लगा लिए नरेश बाबू 

पीछे पीछे दमयंती भी इस घर की चौखट पार कर आ गई थी जो कभी अपने देवर देवरानी को सुना गई थी “ तुम लोगों से मेरा मरते दमतक कोई नाता ना रहेगा कान खोलकर सुन लो..”

देवरानी नीलिमा दमयंती को देख दौड़ कर आई और पैर छुए.. “ देखो ना दीदी कल ये खुद को ख़त्म करने की कगार पर पैग पर पैग लिएजा रहे थे… लीवर ख़राब कर चुके हैं अब ना जाने क्या करना चाहते हैं… डॉक्टर ने इलाज के लिए अस्पताल भर्ती होने कहा तो कहते हैंमरना है तो यही मरूँगा देखता हूँ आख़िरी समय में भी भैया देखने आते हैं और नहीं…भाभी मुझे माफ़ भी करती है कि नहीं..।” कहकर मुँहपर पल्लू रख सिसक पड़ी नीलिमा 

दमयंती ने नीलिमा को गले से लगाया… और जल्दी से नरेन के पास आ गई … “नरेन मुझे माफ कर दो… तुम्हारी बीमारी का सुन कर भीअनसुना करते रहे.. मेरी एक ज़िद्द ने तुम्हारी ये हालत कर दी.. ।”



 दमयंती आज सच में दिल से नरेन से माफ़ी माँगने आई थी 

नरेन की साँसें चढ़ने लगी थी तभी एम्बुलेंस के सायरन के साथ नरेश बाबू के दोनों बेटे नरेन को अस्पताल ले जाने के लिए 

आए।

नरेन को अस्पताल भेज कर नरेश बाबू वहीं बैठ गए… ना नरेन के बच्चों ने जाने दिया ना नरेश के अपने बच्चों ने… पैंसठ साल की उम्र मेंनरेश बाबू को अस्पताल ले जाकर उनकी तबीयत ख़राब होने का भय था।

“ नीलिमा… नरेन की ऐसी हालत कैसे हो गई…?” पहली बार नरेश बाबू नरेन की पत्नी से कुछ बात कर रहे थे (क्योंकि छोटे भाई कीपत्नी से जेठ बात नहीं कर सकता था)

नज़रें नीची कर सिर झुकाए नीलिमा ने कहा,“ भाई साहब आप लोगों से अलग होकर ये हर दिन रोते थे.. कहते थे मेरे माता-पिता तोभैया ही है वो ही मुझसे रूठ गए हैं… भाभी तो दूसरे घर से आई थी उन्हें मुझसे शिकायत हो सकती… पर भैया … वो भी सोचते थे मैंनिठल्ला हूँ… काम नहीं करता.. चोरी करता हूँ माँ समान भाभी को देखता हूँ ये सब लांछन सह जाता अगर

 भैया मेरा भरोसा करते परभैया ने भी… तब से वो रोज शराब पीने लगे मना करने पर रो देते… हम बस बीस साल से इसी 

इंतज़ार में थे कि एक बार आप आ जाओतो ये ठीक हो जाएँगे… उन्हें ये सब इतना सालता रहा कि ये जीना ही नहीं चाहते थे ।”

“ देखा दमयंती … तुम्हारे एक स्वार्थ ने हमारे रिश्ते को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया…..  मेरा भाई किस हालत में पहुँच गया ….और तुमलोग कहते थे वो ऐश कर रहा… आपकी तो उसे जरा भी परवाह नहीं… इधर मेरा भाई तकलीफ़ सह रहा था… अब तो तुम भी कुछसमझो…नीलिमा मुझे माफ कर देना मैं तुम लोगों का ध्यान नहीं रख पाया माँ से किया वादा ठीक से नहीं निभा पाया ।” नरेश बाबू

 नज़रें झुकाएँ नीलिमा से बोले

“ अरे नहीं भाई साहब आप ऐसा नहीं बोलिए नरेन जल्दी ही 

ठीक होकर आएँगे… मुझे पता है उन्हें दवा से ज़्यादा आपके प्यार की ज़रूरतहै वो बस उन्हें मिल जाएगा फिर नरेन सँभल जाएँगे ।” नीलिमा ने कहा 



बहुत देर से खुद को रोक रखी दमयंती को भी एहसास हो रहा था उसने ऐसे रिश्तों में पति को बाँध कर रखा हुआ था जो उसके सामनेसाथ ज़रूर थे पर अंदर से ऐसे जुड़े थे कि वो अपने 

हज़ारों प्रपंच के बाद भी उसे अपनी ओर ना कर सकी।

दमयंती नीलिमा के गले लग बोली,“ मुझे माफ करना नीलिमा मैं स्वार्थी हो गई थी…।”

समय लगा नरेन को ठीक होने में… कहते हैं ना कभी-कभी दवा से ज़्यादा प्यार दुलार असर करती है.. नरेन की दवा तो नरेश बाबू थे… वोसाथ मिले तो ठीक तो होना ही था।

दोनों परिवार आज भी दीवार के आर पार ही रहते है पर अब 

हर दिन मिलना जुलना ..बातचीत… करते रहते हैं…।

 

परिवार टूट जाते हैं बस एक स्वार्थ पर … जो इन सब से परे 

सोच कर चले वहीं सही मायनों में रिश्ते निभा सकता है…. आज के दौर मेंऐसे बहुत घर इसी तरह तैयार होते हैं जहां उपर नीचे अपने अपने लिए घर बना कर रहते हैं पर तीज त्योहार में 

परिवार एक ही रंग में रंगाहोता है।

परिवार को अहमियत दीजिए… पैसे के लिए उसका साथ नहीं लीजिए… प्यार से साथ दीजिए पैसे तो यूँ ही खर्च हो जाते

लौट कर नहींआते… रिश्तों पर खर्च करिए व दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी करेगा क्योंकि जब परिवार खुश रहेगा आप खुश रहेंगे ।

 

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# स्वार्थ 

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

 

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