इसमें पकौड़ों का क्या कसूर – अनिता गुप्ता

“रेखा ! चाय के साथ पकौड़े भी बना लेना। रिमझिम शुरू हो गई है। और हां तुम भी अपनी चाय बालकनी में ही ले आना,साथ में पकौड़ों और बारिश का मज़ा लेंगे।” रितेश ने अखबार में सिर गड़ाए ही आवाज लगाई।

थोड़ी देर तक जब कोई जवाब नही आया और न ही पकौड़े, तो रितेश दुबारा आवाज लगाने को हुआ,

” अरे…..” कहते – कहते रितेश एकदम चुप हो गया।

रेखा है ही कहां घर में जो पकौड़े बना कर लाती। वो तो दो दिन पहले घर और उसे छोड़ कर जा चुकी है।

वो भी शादी के 26 साल बाद…..

“अचानक रेखा ने ऐसा फैसला क्यों लिया ?”

ये विचार आते ही रितेश अपनी गुजरी जिंदगी के पन्ने पलटने लगा।

कितना सुखी परिवार था उनका। रेखा रितेश और उनकी प्यारी सी बेटी रितिका। रेखा एक कुशल होम मेकर थी और हर कार्य में निपुण। उसने घर और बाहर दोनों अच्छे से संभाल रखे थे। रितेश को सिर्फ अपने ऑफिस ही जाना होता, बस। शायद इसी कारण वह कुछ ज्यादा लापरवाह हो गया था।

रेखा के पाक कला में निपुण होने के कारण रितेश अक्सर अपने दोस्तों को खाने पर घर ले जाता।कभी तो वो रेखा को बता देता था और कभी तो बिना बताए ले जाता और हद तो तब हो जाती जब वह दोस्तों के सामने ही लंबी – चौड़ी पकवानों की लिस्ट बता देता।

पिछले साल तक तो सब ठीक था, लेकिन फिर रेखा को उम्र के साथ स्वास्थ्य की समस्याएं होने लगी । उसने रितेश को इसके लिए कहा भी,

” रितेश! तुम जब दोस्तों को खाने पर बुलाओ तो उससे पहले मुझसे पूछ लिया करो। आजकल तबियत थोड़ी ठीक नहीं रहती है। पहले तो रितिका मदद कर देती थी, लेकिन उसकी जब से शादी हुई है, मैं अकेली पड़ गई हूं और तुमको कोई काम वाली रखना पसंद नहीं है।”

“ठीक है! ध्यान रखूंगा, आगे से मैं।” रितेश ने लापरवाही से कहा।



लेकिन रितेश तो आदत से मजबूर था। उसने इस बात की गंभीरता पर ध्यान नहीं दिया और पूर्ववत अपने दोस्तों को लाता रहा। रेखा भी मन मार कर मजबूरी में करती रही।

कुछ हद तक रेखा भी रितेश की लापरवाही के लिए जिम्मेदार थी। वह आगे से आगे रितेश का सब काम कर देती।यहां तक कि बीमार होने पर भी किसी भी तरह मैनेज कर लेती। बेटी ने कई बार समझाने की कोशिश की। लेकिन रेखा,

“जब तक हो रहा है, कर रही हूं। जब नहीं होगा तब करना बंद कर दूंगी।” कह कर टाल देती।

अभी दो दिन पहले की बात है, आदत से लाचार रितेश अपने 8 -10 दोस्तों को शाम को घर ले आया और ड्रॉइंग रूम से ही बोला,

” रेखा! सावन की पहली बारिश हो रही है, तुम फटाफट 8-10 प्लेट पकौड़ों की बना दो और हां साथ में गर्मागर्म चाय भी। अरे हां! आलू – प्याज के साथ अगर पनीर,ब्रेड और मिर्ची बड़े भी बना दोगी तो मज़ा ही आ जायेगा।”

ये सुन कर रेखा तो परेशान हो गई।पिछले एक हफ्ते से कमर में तेज़ दर्द होने के कारण वो ठीक से काम नहीं कर पा रही थी और बाज़ार जाकर सामान भी नहीं ला सकी थी।पतिदेव ने तबियत तो पूछी नहीं, ऊपर से दोस्तों को ले आए और ये फरमान जारी कर दिया।

जैसे – तैसे उठ कर रसोई में पहुंची और बेसन चैक किया, जो थोड़ा सा ही बचा था। सोचने लगी कि अब, क्या ही करें? रितेश को आवाज लगाई, लेकिन जनाब तो बातचीत में इतने मशगूल थे कि आवाज को नजरंदाज कर दिया।

समस्या का हल तो रेखा को ही निकालना था। जो भी सामान था, उसी में से बनाने लगी। गैस पर आलू की सब्जी चढ़ाई और खस्ता पूरी का आटा लगाने लगी। उसके बाद जितना बेसन था, उसी का घोल तैयार किया। पहले पूरी – सब्जी बना कर देने गई, क्योंकि रितेश तो दोस्तों के पास से हिलने वाला था, नहीं।

” अरे! पकौड़े नहीं बनाए ? ” रितेश ने पूछा।

” वो भी बन रहे हैं। मैंने सोचा पूरा खाना ही कर देती हूं, इसलिए बना दिया। ” रेखा ने दिखावटी मुस्कराहट के साथ कहा।



दो घंटे बाद दोस्त तो खा – पीकर चले गए। लेकिन इधर रितेश का इंतजार कर रही रेखा आज क्रोध से कांप रही थी। उसके अंदर आते ही रेखा गुस्से से बोली,

” कितनी बार समझाया है,आपको लेकिन आप सुनते ही नहीं हैं।”

” क्या नहीं सुनता ?” रितेश ने भोले बच्चे के जैसे पूछा।

अब तो रेखा गुस्से से पागल हो गई और चीखी,

” मुझे नहीं रहना, तुम्हारे साथ।” कहकर अपना बैग पैक कर बरसते पानी में ही निकल गई, अपनी फ्रेंड के घर, जो उसी शहरब में रहती है।

इधर रितेश को समझ नहीं आ रहा था कि उसने ऐसा क्या कर दिया कि रेखा अचानक से घर छोड़ कर चली गई। उन दोनों के बीच में तो प्यार भी बहुत है।

फिर क्या हुआ ?

इसी सोच के साथ वो सो गया। सुबह उठकर रेखा को फोन किया लेकिन उसने नहीं उठाया। पूरा दिन फोन करने की कोशिश की लेकिन शायद रेखा ने फोन ना उठाने की कसम खा ली थी। बेटी को फोन किया लेकिन उसको भी कुछ पता नहीं था।

आज जब रितेश से शांति से पूरे घटना क्रम को सोचा तब उसे समझ आया कि उससे कहां चूक हुई। उसने तुरंत बेटी को फोन लगा के सारी बात बताई और अपनी गलती का अहसास भी किया। तब रितिका बोली ,

” ठीक है पापा! मैं मम्मी से बात करती हूं और आपको बताती हूं कि वो कहां हैं।”

” क्या ? ” रितेश  चौंका।

” हां पापा! हम आपको अपनी गलती का अहसास करवाना चाहते थे। मम्मी ने तो परसों ही नीलिमा आंटी के घर पहुंच कर सब बता दिया था। अब आप आंटी के घर जा कर मां को ले आओ।” रितिका ने राज खोला।

रितेश तुरंत नीलिमा के घर पहुंचा और रेखा से माफी मांगते हुए कहा, ” मुझे माफ कर दो रेखा ! मैं आज तक तुम्हारे दर्द को नहीं समझ पाया। लेकिन मेरा वादा है, अब आगे से ऐसा नहीं होगा।” और रेखा उसे माफ कर उसके साथ घर आ गई।

अनिता गुप्ता

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