• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

स्वाभिमान – आरती झा आद्या

कैसी बात कर रही हो भाभी… भाई नहीं रहा तो क्या? हम तो हैं ही न। वीनू हमारे साथ रह कर पढ़ेगी। तुम चिंता मत करो…वीनू की बुआ माधुरी अपनी भाभी सरिता से कहती है।

सच दीदी.. कौन ननद इतना सोचती है..सरिता भाव विभोर होकर माधुरी के दोनों हाथ पकड़ कर कहती है।

भाई था वो मेरा… मैं ऐसे कैसे उसके परिवार को छोड़ दूंगी। वीनू समान पैक करना शुरू कर दो। अब डिग्री, मास्टर्स सब वही करोगी तुम… माधुरी आदेशात्मक लहजे में वीनू से कहती है।

बेटा मन लगाकर पढ़ना। तेरे पापा तुझे ऑफिसर बने देखना चाहते थे। उन्हें हमेशा यही लगा कि उनका मन पढ़ने में नहीं था इसीलिए छोटी सी नौकरी में संतोष करना पड़ रहा है। लेकिन तुझे आसमान में उड़ते देखना चाहते थे…वीनू को गले से लगाए सरिता अपने कमरे में रोती हुई कहती है।

तुम चिंता मत करो मां… मैं मन लगाकर पढूंगी…वीनू मां के गालों पर आ गए अश्रु धार को पोछ्ती हुई कहती है।

देख बेटा जो बुआ हमें खुद से कमतर समझ कभी सीधे मुंह  बात नहीं करती थी। आज वो तेरे लिए, हमारे लिए सोच रही हैं…उन्हें निराश मत करना। उन्हें कभी खुद के फैसले पर अफसोस मत होने देना… वीनू को समझाती हुई सरिता कहती है।

अरे भई तुमदोनों मां बेटी का रोना धोना हो गया हो तो चले क्या… वीनू चल भी… बाहर गाड़ी आ गई है…अपनी महंगी साड़ी का पल्लू ठीक करती माधुरी कहती है।

हां हां दीदी..चल चल वीनू…सरिता माधुरी की कड़कदार आवाज सुन हड़बड़ाती हुई बेटी से कहती है।

दीदी पेंशन आते ही इसके कॉलेज की फीस के पैसे भेज दिया करूंगी…बहुत अहसान किया आपने दीदी…सरिता माधुरी के पैर छूती हुई कहती है।

हां हां ठीक है…स्वर में घमंड का पुट लिए बोलती माधुरी गाड़ी में बैठ गई।

छः महीने की ट्रेनिंग पीरियड में समस्त प्रतिभागियों में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागी चुना गया है वीनू शर्मा को और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच वीनू मंच पर आती है। 

सरिता वीनू ने तो कमाल कर दिया। इतनी जल्दी ऑफिसर बन गई। अगर उस दिन मैं इसे यहां नहीं लाती तो ऐसा नहीं हो पाता…अपनी पीठ थपथपाती माधुरी कहती है।



बिल्कुल सही बोल रही हैं बुआ… उस दिन अगर आपने मेरा स्वाभिमान न जगाया होता तो आज शायद मैं आपके घर में काम करने वाली की हैसियत से ही रह रही होती।

क्या बात है माधुरी…तुझे तो अपनी वो गंवार भाई और उसका परिवार पसंद नहीं था….माधुरी की सखियों की महफिल जमी थी…जिसमें से एक ने टेबल पर पकौड़े रख वीनू के जाते ही कहा।

हां और क्या…सोनाक्षी की शादी में कितने बेमन से तूने इन सबों से हमें मिलवाया था…दूसरी ठहाके लगाती कहती है।

अचानक इतना प्यार कैसे जाग गया माधूरी… भतीजी को यहां लाकर कॉलेज में दाखिला भी करवा दिया…एक ने पकौड़े खाते हुए पूछा। 

ये तो बता पकौड़े कैसे बने हैं… माधुरी ने पूछा।

यम्मी हैं…दूसरा रसोईया रख लिया क्या तुमने… पकौड़े खाती सखी ने जिज्ञासा प्रकट की।

यही तो…वीनू को लाने के पीछे का कारण है… देखो घर के सारे कामकाज जानती है। सुबह शाम दो रोटी, एक दो कपड़े में ऐसी काम वाली कहां मिलेगी। इसकी मां के पेंशन से कॉलेज की फीस चली जाती है और मेरे सारे पैसे बच जाते हैं…ये है मेरी बुद्धि का कमाल… हींग लगे न फिटकरी, रंग भी चोखा होए… ख़ुद पर इतराती माधुरी सखियों को बताती है।

और दरवाजे के पीछे चाय की ट्रे लिए वीनू को नहीं देख पाती है। ओह अब मैं यहां किसी हालत में नहीं रहूंगी…मेरा भी कोई स्वाभिमान है। लेकिन जाऊंगी कहां…मां पापा के सपनों को क्या अपने स्वाभिमान तले रौंद दूं…आज अगर बुआ की मंशा नहीं जानती तो क्या मेरा स्वाभिमान जागता। क्या मैं दृढ़ प्रतिज्ञ हो पाती। वीनू के दिन रात अब इसी ऊहापोह में कट रहे थे… नहीं अब यही रहकर मुझे मेरे सपने पूरे कर स्वाभिमान को जिंदा रखना है।

         बुआ आज मैं जो कुछ भी हूं…आपके द्वारा जगाए स्वाभिमान के कारण ही हूं… मां ने सच कहा था आपका ये अहसान हम जिंदगी भर नहीं भूलेंगे…आशीर्वाद दीजिए कि ये स्वाभिमान अब हमेशा जिंदा रहे… बुआ के पैर छूती हुई वीनू कहती है।

चलो मां हम अपना समान पैक करें…मैं ज्वाइनिंग से पहले अपने घर जाना चाहती हूं… अवाक होकर बेटी की बात सुनती सरिता को वीनू अपने बाहों में समाती हुई कहती है।

#स्वाभिमान

आरती झा आद्या

दिल्ली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!