तानी का मन बड़ा उदास रहता था ! उसकी सासू माँ प्रतिमाजी हमेशा उसके मायके वालों को लेकर कुछ ना कुछ सुनाती रहती थी ! वही जेठानी रूही को हमेशा प्यार जताती रहती थी ! कारण था तानी के मायके वालों का ज्यादा अमीर ना होना और उनका सादगी से रहना ! वहीं रूही के मायके वाले अमीर होने के साथ साथ हमेशा खूब दिखावे की ज़िंदगी जीते थे ! जो प्रतिमाजी को बेहद पसंद था !
प्रतिमा जी के पति आरोड़ा जी इन सब बातों को भली भांति समझते थे इसीलिए वह अपनी पत्नी को दोनों बहुओं के प्रति हो रहे भेदभाव को देखकर अक्सर समझाते और कहते देखो प्रतिमा हमारी दोनों बहू के बीच यह जो तुम भेदभाव कर रही हो अच्छा नहीं कर रही हो अच्छा है मेरी बातों पर गौर करो वरना एक दिन तुम्हें पछताना पड़ेगा क्योंकि तुम इज्जत पैसे की करती हो इंसान की नहीं जबकि इज्जत इंसान की होनी चाहिए पैसे की नहीं मगर प्रतिमाजी को यह बातें समझ नहीं आती थी!
ऐसे ही समय गुजरता गया अचानक अरोड़ा जी इस संसार से
चले गए अब प्रतिमा जी बिल्कुल अकेली पड़ गई थी।
पति के चले जाने के बाद रूही के व्यवहार में कोई अंतर ना आया। उसे जहां जाना होता वह अच्छे से बन ठन के तैयार होकर चली जाती ।अब तो रूही जाते वक्त प्रतिमा जी को कभी-कभी कहना भी भूल जाती ।
प्रतिमा जी को तानी से ही पता चलता। जबकि तानी अपनी सासू मां को अकेली छोड़कर कहीं नहीं जाती थी। उनका अच्छे से ख्याल रखती थी और किताबों से नई-नई कहानी निकाल कर उनको सुना कर उनका मन बहलाते रहती थी।
उन्हें खुश रखने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती थी क्योंकि तानी इस बात को समझती थी की एक पति के चले जाने के बाद एक नारी का जीवन कितना सुना हो जाता है । वह उस खालीपन को भरने के लिए हमेशा कुछ ना कुछ नया सोचती रहती थी। जो कि प्रतिमाजी दिल से महसूस करने लगी थी।अब धीरे-धीरे प्रतिमा जी को अपने पति की बातें समझ आने लगी थी की व्यर्थ के दिखावे से बेहतर है घर के बड़े बुजुर्ग प्यार संस्कार और इज्जत से अपने परिवार के इमारत की छत बने ना कि उसकी दीवार की ईंटों को ही अपने भेदभाव वाले रवैए से हिला दे ।
आज जब तानी के मायके वाले प्रतिमा जी से जब मिलने पहुंचे तो आज प्रतिमा जी को तानी के मायके वालों में कोई कमी नजर नहीं आई और बहुत खुशी भी हुई।
उन्होंने बाजार से उनके लिए मिठाई और घर पर भी वही पकवान बनवाए जो कभी रूही के मायके वालों के लिए बनते थे । आज तानी और उसके मायके वाले दोनों हैरान थे और रूही का तो कहना ही क्या उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था ।अचानक ऐसा क्या हो गया जो मम्मीजी इतनी बदल गई है प्रतिमा जी तानी और उसके मायके वाले के सामने ही सब से कहने लगी। मुझे क्षमा कर दीजिए मुझे समझने में देर लगी कि इज्जत इंसान की होनी चाहिए पैसे की नहीं । यह सब सुनकर आज तानी के मायके वालों को सुकून हुआ ।
चलो अब हमारी तानी को भी बहुत सम्मान मिलेगा क्योंकि हर बेटी के मायके वालों की इच्छा होती है कि ससुराल में उनकी बेटी को प्यार मिले आदर सम्मान मिले। उन्होंने कहा कुछ नहीं बस सम्मान में हाथ अपने जोड़ लिए।
ये सब देख कर रूही को भी अपने किए हुए व्यवहार से पछतावा होने लगा
वो अब अच्छी तरह जान चुकी थी! परिवार को सुघड़ता से सहेजकर रखना है तो व्यर्थ दिखावे को छोड़ प्यार और संस्कार जरुरी है ! आज रूही ने भी तानी से प्यार से कहा !
तानी मुझे क्षमा करना! बात बड़ी सीधी थी मगर व्यर्थ के दिखावे के चक्कर में पड़ कर मैं भी बेवजह ही तुम्हें प्यार करना भूल गई। रूही की बात सुनकर प्रतिमा जी फिर बोल उठी रूही अब जाने भी दे और छोड़ इस बात को खुशी इस बात की है कि हम सब समझ चुके हैं की इज्जत इंसान की होनी चाहिए पैसों की नहीं व्यर्थ के दिखावे से अच्छा है प्यार और संस्कार से परिवार को चलाना और खुश रहना कहकर उन्होंने तानी और रूही दोनों को गले से लगा लिया !
इज्जत इंसान की करो पैसे की नहीं कहती ये कहानी ।
खुश रहो और रहने दो कुछ पल की है ये जिंदगानी।।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम