हमारी माँ .. – अंजू अग्रवाल ‘लखनवी’

पिछले 5 दिन से सासू मां आईसीयू में एडमिट थीं! पिछले महीने ही पति अविनाश के पैर में फ्रैक्चर होने की वजह से वो पूरे रेस्ट पर थे इसलिए सारा बोझ इकलौती बहू रीना पर आ गया हालांकि दोनों ननदें मां की बीमारी की खबर सुनकर अगले दिन ही आ गई थीं!अब रात भर तो रीना अस्पताल में रुकती और दोनों ननदें सुबह नहा धोकर 11-12 बजे तक अस्पताल पहुंच जाती थीं और फिर रीना अस्पताल से निकलकर घर का सामान, दूध,ब्रेड आदि खरीदती हुई घर पहुंच जाती फटाफट खाना बनाकर सबको खिलाती! ट्यूशन के बच्चों को पढ़ाती! शाम का खाना बना कर रखती और रात में रुकने के लिए अस्पताल पहुंच जाती! आज डॉक्टर जब विजिट पर आए थे तो उन्होंने बताया था की सासू माँ की हालत में सुधार है तो कल रूम में शिफ्ट कर देंगे! रीना ने चैन की सांस ली क्योंकि आईसीयू का भारी-भरकम बिल उसे अलग तरह से तनाव दे रहा था! आज दोनों ननदों को अस्पताल छोड़ कर घर पहुंची तो देखा छोटे बेटे के दांत में बहुत दर्द है जल्दी से डॉक्टर को फोन मिला कर अपॉइंटमेंट लिया और जैसे तैसे लंच के लिए खिचड़ी बनाकर वहां पहुंची! दो घंटे बाद  थकी हारी लौटी तो शरीर टूट रहा था! जैसे-जैसे शाम का खाना बनाकर जरा लेटी तो नींद लग गई! बेटे के हिलाने पर नींद जगी- “जल्दी उठो मां! अस्पताल नहीं जाना क्या? बड़ी बुआ का फोन आया था, कि मां कितनी देर में आएगी!”

 रीना ने जल्दी से उठने की कोशिश की मगर थकान के कारण उठा ही नहीं गया! 

“आज तो अस्पताल जाने की जरा भी हिम्मत नहीं है क्या करूं?”

 उसने मायूसी से पति से पूछा!

 :फिर क्या करें!” पति बेचारे अपनी लाचारी देखकर बोले- 

“मैं ठीक होता तो रुक जाता!”

 “नहीं! नहीं! मैं तो यह सोच रही हूं कि प्राइवेट हॉस्पिटल है आईसीयू वार्ड में अंदर तो किसी को जाने नहीं देते! फिर मेरा नंबर वहां सब के पास है ही! कोई बात होते ही फोन कर देते हैं! कल से रुम में शिफ्ट कर देंगे तब तो वहां रुकना ही पड़ेगा मैं सुबह सुबह 6:00 बजे ही पहुंच जाऊंगी! बस आज जरा सो लूँ! पांच  दिन से अस्पताल में सो नहीं पाई हूं! दीदी लोग रात में आ जाएंगीं तो मैं एक बार अस्पताल मे फोन करके बोल दूंगी कि कोई जरूरत हो तो मुझे फोन कर लें!” 

“हां, यह ठीक रहेगा!” पति ने सहमति जताई! “तो ठीक है! मैं अभी सो जाती हूं सुबह 4:00 बजे उठकर आप सब का नाश्ता बना कर अस्पताल चली जाऊंगी! आप दीदी को फोन करके यह बता देना!” 



कह कर रीना सो गई! कुछ देर बाद अविनाश ने बड़ी बहन रमा को फोन लगाया रमा “दीदी! आप लोग घर आ जाओ! खाना तैयार है! रीना थकी हुई है, सो गई है, इसलिए अस्पताल सुबह जाएगी!”

 “क्या मतलब!” दीदी जबरदस्त चौंक उठीं!  “फिर रात में यहां कौन रहेगा? हम लोग तो सुबह से यहां बैठे-बैठे थक गए हैं! फिर अपनी रात की दवाई वगैरह भी नहीं लाए हैं, वरना रुक जाते!” 

“नहीं दीदी! आप लोग घर आ जाओ! आज तो मां आईसीयू में हैं तो मैनेज हो जाएगा! वैसे भी रात में सोना ही तो है! रीना सुबह 6:00 बजे ही पहुंच जाएगी!”

 “अच्छा!” कहकर दीदी ने फोन काट दिया! और छोटी बहन से बोलीं- 

“सुना छोटी! रीना क्या कह रही है! सुबह से हम लोग यहां अस्पताल मे खट रहे हैं और वो रीना कह रही है कि रात में भी नहीं आएंगी! अब तू ही बता! मम्मी को रात में अकेले कैसे छोड़ दें! रात में कोई जरूरत पढ़ जाये तो! तो क्या.. रात में भी हम लोग ही रुकें..”

 “नहीं नहीं!”

 छोटी बहन बोली- 

“मेरी तो बिल्कुल हिम्मत नहीं है रात में रुकने की! और यह क्या बात हुई! जब दिन में रोज हम रुक रहे हैं और रात में रीना, तो रीना को ही आना चाहिए! रुको दीदी मैं बात करती हूँ!”

तुरंत छोटी बहन ने फोन मिलाया- 

“अरे अविनाश! जरा रीना को फोन दो!” 

“मगर वह तो सो रही है!”

 अविनाश हिचकिचाये!  

“उठाओ उसे! जरूरी बात है!” 



दीदी ने आदेश दिया! उनींदी सी पड़ी रीना एक आवाज में ही उठ बैठी! पांच दिनों से अस्पताल के हाॅल के कोने में सतर्क सोने के कारण शायद गहरी नींद आ नहीं रही थी! “जी दीदी!” रीना ने फोन कान से लगाया! “रीना देखो! मम्मी की हालत ठीक नहीं है ऐसी हालत में यहां उन्हें रात में अकेले छोड़ देना क्या होशियारी की बात है?” दीदी की आवाज में गुस्सा और कड़वाहट साफ झलक रही थी! “लेकिन दीदी! केवल आज की ही बात है कल से तो मां जी रूम में शिफ्ट हो जाएंगी, फिर तो रात में हर हाल में रुकना ही पड़ेगा! इसलिए बस आज जरा घर में चैन से सो लूं..” रीना गिड़गिड़ाई!

 “और रात में मम्मी को कुछ हो गया तो?”

 दीदी चिढ़कर बोलीं! 

“नहीं दीदी! मैंने डॉक्टर से बात की है.. अब उनकी हालत ठीक है! आप चिंता मत करो रात में कोई प्रॉब्लम नहीं होगी! और अगर ऐसा कुछ हुआ तो एक फोन आते ही मैं चली जाऊंगी!”

 रीना ने पुनः अपनी बात रखी! 

“नही रीना!” 

“यह नहीं हो सकता!” “मम्मी को अकेले नहीं छोड़ सकते! रात में रुकना तो पड़ेगा ही!” 

“तो आप बताइए दीदी! आप क्या चाहती हैं?”

 अब तक रीना का धैर्य भी जवाब दे चुका था! 

“देखो, तुम ऐसा करो, थोड़ा आराम करके फिर यहां आ जाना.. तब तक हम रुके हैं!”

 दीदी ने आदेश सुनाया! 

“माफ करना दीदी! आज तो मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं है! हां, अब अगर आप लोग चाहो तो रात में रुक जाओ!”

 थकान से चिड़चिड़ा उठी रीना ने भी अपना फैसला सुना दिया! अब अगर सामने वाला उसकी समस्या सुनना ही नहीं चाहता तो वह क्या करें..उसने सोचा! 



बात बिगड़ती देख अविनाश ने फोन अपने हाथ में ले लिया! 

“देखो दीदी.. आप चिंता ना करो! अस्पताल में अपने कई जान-पहचान वाले हैं, और फिर सुबह-सुबह तो रीना पहुंच ही जाएगी! आप क्यों इतना परेशान हो रही हैं! आखिरकार वह हमारी भी तो मां है क्या हमें उनकी चिंता नहीं है!” 

लेकिन दीदी जो हमेशा चुप रहने वाली रमा के जवाब से तिलमिला गई थीं, गुस्से से बोलीं- “हां अविनाश! जानती हूं! वह मेरी मां हैं.. तुम्हारी मां हैं.. लेकिन उसकी मां तो नहीं है ना इसीलिए…क्या वो अपनी माँ को भी यूँ रात में अकेला छोड़ देती!”

 स्पीकर पर चल रहे फोन को सुन रही रमा सकते में आ गई ! दीदी तो बात का बतंगड़ ही बना रही हैं! अस्पताल में उसकी भागदौड़ देखकर सब लोग उसकी सासू मां को उसकी सगी मां ही समझ रहे थे और दीदी ने एक मिनट में कह दिया कि वो उसकी मां नहीं हैं!  फफक-फफक कर रोते हुए वो अविनाश से बोली- “अविनाश! क्या मैंने तुम्हारी मां की देखभाल में कोई कसर छोड़ी है?”

 अविनाश ने उसे संभालते हुए कहा-

“नहीं रीना! तुम्हारी कोई गलती नहीं है! तुम जो कुछ कर रही हो वह बहुत है!” 

“तो फिर दीदी ने ऐसा क्यों कहा?”

 “जब तक मम्मी पापा ठीक थे तब भी दीदी लोग कभी मुझसे सीधे मुँह बात नहीं करती थीं और हमेशा यही जताती थीं कि वह तो अपने मम्मी पापा के घर आई हैं! जैसे हमारा इस घर मे कोई अस्तित्व ही नहीं हो!और अब पापा के जाने के बाद जब मैं कोशिश कर रही हूँ कि संबंधों में मधुरता बनी रहे तो दीदी का ऐसा व्यवहार! क्या उन्हे नहीं दिखाई नहीं दे रहा कि मैं लगातार 5 दिन से अस्पताल में किस तरह सो रही हूं! क्या अस्पताल में कोई आराम कर सकता है? उन लोगों को कष्ट ना हो इसलिए एक भी रात मैंने उन्हें अस्पताल में रुकने के लिए कहा?”

 “रो मत रीना! मम्मी की चिंता में ही दीदी के मुंह से यह सब बातें निकल गई हैं! तुम दिल पर मत लो!”

 “लेकिन अब जब दीदी ने इतनी बड़ी बात कह ही दी है तो उन्हे इसका मूल्य भी चुकाना होगा! कल से 1 रात  हॉस्पिटल में तुम रहोगी और 1 रात दीदी रहेंगी ताकि उन्हें भी अहसास हो सके कि रात मे हॉस्पिटल में रुकना कितना कष्टदायक है!” अविनाश ने निर्णयात्मक स्वर में कहा!

स्वरचित 

अंजू अग्रवाल ‘लखनवी’

(V)

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