हमारे खानदान में बहू को इंसान समझा जाता है। – अर्चना खंडेलवाल : short moral stories in hindi

“तुम तो रहने ही दो, तुम्हारे खानदान में तुमने ये सब नहीं देखा होगा, तुम्हारे खानदान वालों को तो पता भी नहीं है कि बेटियों को कैसे विदा करते हैं?”

ये सुनते ही साक्षी की आंखें गीली हो गई, आज उसकी ननद वापस ससुराल जाने वाली थी तो उसकी सास कल्पना जी अपनी बेटी को विदा की विदाई में कपड़े और मिठाइयां, बाकी उपहार रख रही थी, इसी बीच साक्षी रसोई काम पूरा करके आई और अपनी सास की मदद कराने लगी और उन्होंने उसे तानों से छलनी कर दिया।

फिर भी सब सुनकर वो चुप रही और बाकी के काम करवाने लगी, इतने में उसकी ननद दीप्ति हंसते हुए आई और बोली,” भाभी अपना ध्यान रखना और आप भी कभी भैया के साथ में घुमने हमारे शहर आओं, और कुछ दिनों के लिए ननद के घर भी रहकर जाओ।”

“हमारे खानदान में ननद के घर जाकर भाभी नहीं रहती है, ये रिवाज नहीं है, तेरी भाभी तेरे घर नहीं आयेगी, बेटियों को खिलाते हैं, बेटियों के घर जाकर रहते नहीं है।”

कल्पना जी बोलती है तो साक्षी फिर से मौन हो जाती है, पिछले महीने उसके भैया इंटरव्यू देने उनके शहर में आये थे तो उसने होटल की जगह अपने घर रूकने का आग्रह किया तो भैया -भाभी दो दिन यही रुक गये, तब उसकी सास अपनी बहन के घर गई हुई थी, उन्होंने आकर घर में हल्ला मचा दिया, भला बहू के मायके वाले कैसे आकर रूक गये ?

उसके बाद से दोबारा भैया जॉब के लिए आये थे तो सिर्फ सबसे मिलकर गये और बाहर ही होटल में रूक गये। उसका ताना कल्पना जी आज तक देती है, साक्षी ने आहें भरी और कुछ ना बोली।

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कल्पना जी बेटी दीप्ति को लगातार निर्देश दे रही थी, ये तेरी सास के लिए जरी वाली साड़ी है, साथ में  चांदी की पायल, सोने का नाक का कांटा और शॉल है, ससुर जी के लिए रेशम का कुर्ता पायजामा है, तेरे देवर के लिए ब्रांडेड शर्ट है तो ननद के लिए वनपीस रखा है,

और ये सर्दियों में खाने के लिए गोंद और मेवे से भरे लड्डू, और पड़ोसियों में बंटवाने के लिए ये मिठाइयां है,और ये नगद लिफाफा है , बाकी रोहन तुझे कार से रेलवे स्टेशन छोड़ आयेगा,” अपनी मां से विदा लेकर दीप्ति चली गई।

थोड़ी देर बाद साक्षी रसोई समेटने लगी और उसे भूख लग आई, सुबह से वो काम में लगी थी, दीप्ति के लिए दो समय का खाना बनाकर दिया, कहने को सफर चार घंटे का ही था, पर सासू मां का निर्देश था कि समधियों के लिए भी खाना बनवाकर भिजवा देते हैं, नहीं तो दीप्ति को वहां जाकर फिर से खाना बनाना पड़ेगा, ये बात अलग है कि यहां इसका भार उनकी बहू पर पड़ेगा, पर क्या फर्क पड़ता है, ससुराल वाले अपनी बेटी की चिंता करेंगे या बहू की, बहू तो दूसरे की बेटी है।

उसने लड्डू का डिब्बा खोला तो उसकी आंखें फटी रह गई, डिब्बे में एक भी लड्डू नहीं मिला, गोंद के लड्डू उसे भी बहुत पसंद थे, वो सास के साथ लगातार तीन-चार दिनों से रसोई में लड्डू और नमकीन बनवाने में लगी थी, उसकी सास ने बहुत कुछ बनाया था पर ये पता नहीं था कि वो सारा बेटी के लिए बनवाया था।

साक्षी ने अपने लिए दो रोटी सेंकी और खाना लगाने लगी, तभी कल्पना जी आई, “ये देखो घर की बेटी को गये दस मिनट भी नहीं हुये और बहू खुशी में खाने भी लगी है, हमारे खानदान की बहूएं तो ऐसा कभी नहीं करती है, मै भी जब से इस घर में आई हूं, मेरे गले से तब तक निवाला नहीं उतरता था, जब तक ननद बाई अपने घर पहुंचकर खाना नहीं खा लेती।”

अब साक्षी का धैर्य जवाब दे गया, “मम्मी जी माफ कीजिए, मै सुबह से भूखी हूं और आपकी ही बेटी की सेवा में लगी हुई हूं, दीदी को मैंने अच्छे से खिलाकर भेजा है, अब ट्रेन दो घंटे देरी से जायें तो क्या मै रात तक भूखी रहूंगी? 

हमारे मायके के खानदान में बहू को इंसान समझा जाता है, एक बेजान मशीन नहीं जो सुबह से रात तक लगातार काम करती रहें और उसका ध्यान भी ना रखा जायें, वैसे आपकी बेटी है ये नियम तो आपको लेना चाहिए पर आपने तो खाना खा लिया।”

ये सुनते ही कल्पना जी की बोलती बंद हो गई।

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“मम्मी जी, मुझे आपके खानदान का अभी इतना पता नहीं है, क्योंकि मुझे शादी हुए छह महीने हुए हैं, पर हमारे मायके के खानदान में बहू को भूखा नहीं रखते हैं, और ना ही जलीकटी बातें सुनाकर उसका दिल जलाते हैं, हमारे खानदान में मेरी मां पहले बहू के लिए सर्दियों के लड्डू बनाती है और बाद में बेटी के लिए भिजवाती है, हमारे खानदान में बेटी का घर होते हुए उनके भैया -भाभी इस तरह से होटल में नहीं रूकते हैं, जब बेटी बीस दिन मायके में जा-जाकर रह सकती है तो उसके भैया -भाभी दो दिन भी बहन के घर क्यों नहीं रूक सकते हैं?”

“हमारे मायके के खानदान में बेटी को विदा में हिसाब से दिया जाता है, और देने से पहले  बेटे की जेब भी देखी जाती है, कहीं इससे उनके घर के बेटे पर अनावश्यक बोझ तो नहीं लादा जा रहा है, हमारे खानदान में लेने-देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो, इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है।”

“बहू को भी प्यार और अपनेपन से रखा जाता है, हमारे खानदान में बहू चहकती है, तानें सुनकर सिसकती नहीं है।”

अपनी बहू की बात सुनकर कल्पना जी भौंचक्की रह जाती है, और उन्हें आत्मग्लानि भी महसूस होने लगी, साक्षी कुछ गलत तो नहीं कह रही है, आखिर उन्होंने साक्षी को हमेशा ताना ही दिया है, दीप्ति के लिए वो बहुत कुछ करती है, पर इस कारण वो अपनी बहू की हमेशा उपेक्षा करती है, बेटी का घर भरने के चक्कर में उन्होंने बेटे का घर खाली कर दिया, इस बात का उन्हें अफसोस हो रहा था, आज साक्षी ने उन्हें वो आईना दिखा दिया, जिसमें वो खुद से ही नजरें नहीं मिला पा रही थी।

वो खुद को संयत करते हुए साक्षी से बोली, ‘साक्षी  आज तुमने मेरी आंखें खोल दी है, आगे से ऐसा कभी नहीं होगा, और वो अपने कमरे में चली गई, साक्षी उन्हें जाते हुए एकटक देखती रही।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

VM

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