हमारा बुरा वक्त हमारे जीवन को नई दिशा दे जाता है – लक्ष्मी कानोडिया : Moral Stories in Hindi

सरिता पुणे के एक मध्यमवर्गीय परिवार से थी। पढ़ाई में अव्वल, सुंदर और दिल से सरल। उसकी जिंदगी का सपना बहुत साधारण था — एक छोटा-सा घर, एक प्यार करने वाला पति और हँसी-खुशी भरा परिवार।

शादी के शुरुआती दिन उसकी उम्मीदों जैसे ही थे। अमित, उसका पति, एक बड़ी कंपनी में नौकरी करता था। सरिता पूरे मन से घर संभालती थी। शाम को दोनों साथ चाय पीते, फिल्में देखते, हँसते-खेलते।

लेकिन समय के साथ कुछ बदलने लगा। अमित छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगा।
“तुमसे कुछ ठीक से नहीं होता,” अमित अक्सर ताने कसता।
सरिता चुपचाप सह लेती, सोचती शायद काम का दबाव होगा।

एक दिन सरिता ने खाने में हलकी सी नमक की कमी पर अमित की बात काट दी। बस, इसी बात पर अमित का गुस्सा फूट पड़ा।
वह चीखा,
“तुम कुछ नहीं कर सकती, सरिता! तुम्हारा होना या ना होना मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता।”

यह सुनते ही सरिता का दिल टूट गया।
उस रात वह अकेले में फूट-फूटकर रोई। आँखें सूज गईं, लेकिन उसके मन में एक विचार उगने लगा — “क्या सचमुच मैं इतनी कमजोर हूँ?”

सुबह उठते ही उसने खुद से वादा किया,
“मैं खुद को साबित करूंगी। अपने लिए, अपनी इज्जत के लिए।”

सरिता को याद आया — उसे बचपन से बेकिंग का शौक था। मिठाइयाँ, केक, कुकीज़ बनाना उसे खुशी देता था।
उसने माँ से पाँच हजार रुपये उधार लिए। एक छोटा-सा ओवन खरीदा और घर पर ही “सरिता’ज़ बेकरी” नाम से छोटा व्यवसाय शुरू कर दिया।

ऑर्डर के लिए वह सोशल मीडिया का सहारा लेने लगी। केक की तस्वीरें खींचकर इंस्टाग्राम पर डालती।
शुरुआत में दिन भर में एक भी ऑर्डर नहीं आता। दोस्त भी मजाक उड़ाते,
“घर पर बैठकर बिजनेस? हँसी की बात है।”

पर सरिता डटी रही। वह हर ताने को अपनी ताकत बना रही थी। हर फेल ऑर्डर के बाद कहती,
“एक दिन आएगा जब मेरी मेहनत बोलेगी।”

धीरे-धीरे लोग उसके स्वाद के दीवाने होने लगे। ग्राहकों ने रिव्यू लिखे — “घर जैसा स्वाद”, “दिल से बनी मिठाइयाँ”।
एक साल में उसका नाम शहर भर में फैल गया। लोकल अखबार में उसका इंटरव्यू छपा, रेडियो पर उसकी कहानी सुनाई गई।

फिर एक दिन अमित भी उसकी बेकरी के सामने से गुजरा। चमचमाता कैफे, ग्राहकों की भीड़ और सरिता की मुस्कान देखकर वह अवाक रह गया।
रात को उसने सरिता को फोन किया,
“सरिता… मुझसे गलती हुई। हम फिर से साथ शुरू कर सकते हैं?”

सरिता मुस्कुरा दी।
“अमित,” उसने शांत आवाज में कहा,
“जिस दिन तुमने मुझे तोड़ना चाहा था, उसी दिन मैंने उड़ना सीखा था। अब मेरी दुनिया में तुम्हारी जगह नहीं है।”

आज सरिता का बेकरी कैफे पूरे पुणे में मशहूर है। वह कई दूसरी महिलाओं को भी ट्रेनिंग देती है, उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करती है।

सेमिनारों में सरिता जब बोलती है, तो कहती है,
“जब ज़िंदगी में बुरा वक्त आता है, तो समझिए खुद को बदलने का समय आ गया है। डरिए मत, उठिए, बढ़िए — और खुद को साबित करिए।”

रोज शाम को वह अपने कैफे की बालकनी में बैठकर चाय की चुस्की लेते हुए खुद से कहती है,
“शुक्रिया उन आँसुओं का, जिन्होंने मुझे मोती बना दिया”l 

सर्वथा अप्रकाशित एवं मौलिक रचना

लक्ष्मी कानोडिया

अनुपम एंक्लेव किशन घाट रोड,

खुर्जा

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