ग्रैंड पैरेंट्स डे – रश्मि सिंह

शिवि-मम्मा कल ग्रैंड पैरेंट्स डे है, सबके दादा-दादी आएँगे। दादी को बुलाया गया है।

शिखा-रुको अभी समीर (शिखा का पति) को फ़ोन कर कहती हूँ कि गाँव से मम्मी को लेते आएँ।

शिवि-मम्मी अबकी बार दादी आएगी तो उन्हें यही रोक लेंगे।

शिखा-नहीं बेटा उनको यहाँ अच्छा नहीं लगता है गाँव में रहने की आदत है ना। 

शिखा (फ़ोन पर)-सुनो कल शिवि के स्कूल में ग्रैंड पैरेंट्स डे है तो मम्मी को गाँव से लेते आना।

समीर-तुम हमेशा ऐसा करती हूँ जब तुम्हें उनकी ज़रूरत होती है तुरंत बुला लेती हूँ पिछली बार अपनी किटी पार्टी में मदर्स डे के सेलिब्रेशन में दिखावे के लिए उन्हें बुला लिया था और अगले ही दिन गाँव भेज दिया था। क्या मिलता है ये दिखावा करके, वैसे तो माँ अकेले गाँव में रहती है तो फ़ोन पर भी हालचाल नहीं लेती हो। कब तक करोगी ये दिखावा। 

शिखा-अब मेरा दिमाग़ मत ख़राब करो अगर शिवि की नानी जिंदा होती तो मैं ना बुलाती तुम्हारी माँ को।

समीर हमेशा की तरह मन मसोस कर शिखा की बात मानकर सरला जी (समीर की माँ) को घर ले आया।

शिवि-दादी तुम कितनी अच्छी हो, मेरे लिये हमेशा आ जाती हो। अबकी बार तुम कुछ दिन यहां रुकोगी। सरला जी शिखा का चेहरा देखकर बोली कि मेरी रानी बिटिया हमका शहर मा तनिक भी अच्छा नहीं लागत है इसलिए गाँव की सुर्ख़ ठंडी हवाओं में जल्द वापस जायिब।

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शिखा सरला जी की बात सुन सुकून की साँस लेती है कि चलो मम्मी जल्दी चली जाएँगी।




शिखा-मम्मी जी कल शिवि के स्कूल में आप ये साड़ी पहनकर जाना, और कोई कुछ पूछे तभी कुछ बोलिएगा, गाँव के लहजे में बात मत करिएगा, क्योंकि बहुत बड़ा स्कूल है, बहुत हाई-फ़ाई लोगो के बच्चे पढ़ते है वहाँ।

सरला जी हाँ में सर हिला देती है और कल के समारोह को लेकर चिंतित हो जाती है कि कही मेरी वजह से कुछ गड़बड़ ना हो जाए।

अगले दिन सब निर्धारित समय पर स्कूल पहुँचते है वहाँ पता चलता है कि सभी बच्चों को अपने दादा-दादी के बारे में स्पीच देनी है कि उनकी क्वालिटीज़ क्या है वो पूरे दिन अपना समय कैसे बिताते है।

शिवि बहुत दुखी हो जाती है क्योंकि उसे तो अपनी दादी के बारे में कुछ पता ही नहीं है, पता भी कैसे हो, जब वो उनके साथ ही नहीं रहती। शिवि मैम से एस्क्यूस लेकर अपनी मम्मी के पास जाती है और स्पीच के बारे में बताती है तो शिखा कहती है कि तुम्हारा रोल नंबर तो 27 है ना तब तक तुम अपने पहले के बच्चों को सुनकर कुछ भी बोल देना। 

समीर रूखे स्वर में कहता है देख लिया नतीजा, अब क्या होगा तुम्हारे स्टेटस का, तुम्हारी सो कॉल्ड रेपुटेशन का। शिखा इस बार समीर को कोई जवाब नहीं दे पाती है।

शिवि की बेस्ट फ़्रेंड रीतिका की बारी आती है वो बड़े उत्साह के साथ अपने दादा दादी को स्टेज पर ले जाती है और दोनों का हाथ पकड़कर बोलती है-ये है मेरे दादा-दादी, जो मुझसे और मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ। मेरे दादा जी धोती कुर्ते में और मेरी दादी साड़ी में बहुत अच्छे लगते है, मेरे दादा जी को बाग़बानी का शौक़ है और संडे को मैं भी उनके साथ पौधों को पानी देती हूँ, मेरी दादी मुझे पारियों वाली कहानी सुनाती है। मेरी मम्मी दादी को “बूढ़ी मम्मी” कहती है जिसपर दादी कहती है मैं कहाँ बूढ़ी, बूढ़ी होगी तुम। एक और मज़ेदार बात मेरे दादा जी का एक डायलॉग मुझे बहुत प्यारा लगता है, जो उनकी भाषा में बोलूँगी, वो है-“अरे बहुरिया, तनिक पानी तो ले आओ, आज बहुत थक गेन है।”




 ये बात सुन वहाँ उपस्थित सभी लोग ठहाका मारकर हसतें है पर शिखा की आँखों के कोने से आँसू की धार बहने लगती है कि सच में बच्चों के लिए दादा-दादी, नाना-नानी का प्यार बहुत मायने रखता है। शिखा, समीर से कहती है कि यहाँ से सीधा हम गाँव चलेंगे और वहाँ मम्मी का सामान लेकर ताला लगा देंगे। अब मम्मी हमारे साथ रहेंगी। गाँव हम गर्मियों की छुट्टियों में जाया करेंगे।

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शिखा शिवि और सरला जी को जब ये बात बताती है तो दादी पोती दोनों एक दूसरे को कसके गले लगा लेती है। सब ख़ुशी ख़ुशी गाँव की तरफ़ रवाना होते है और गाड़ी में बज रहा ये गाना मन को सुकून दे रहा था-

कौन दिसा में लेके चला रे बटुहिया,

ठहर ठहर, ये सुहानी सी डगर

ज़रा देखन दे, देखन दे

मन भरमाये नयना बाँधे ये डगरिया, 

कहीं गए जो ठहर, दिन जायेगा गुज़र

गाडी हाँकन दे, हाँकन दे, कौन दिसा…

आदरणीय पाठकों, 

आज हमारे समाज में दिखावा और बाह्य आडंबर जीवन का अंग बन गये है, लोगों का जीवन कुछ यूँ हो गया है-

इस दशक में एक अनोखा दस्तूर हो गया,

दूसरे का दुखी होना, ख़ुद के खुश होने से ज़रूरी हो गया।

पैसा और शौहरत बने व्यक्तित्व के परिमाप,

ना खुश होते हुए भी खुश दिखना मजबूरी हो गया। 

परिवार संग मेले और नानी के यहाँ जाने का ख़ुशनुमा सफ़र,

समाज के दिखावे के लिए गोवा और मसूरी हो गया।

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आज अधिकतर लोग एकाकी जीवन जीकर पुराने रीति-रिवाजों और मूल्यों से पीछा छुड़ाना चाहते है, उन्हें ऐसा लगता है कि अगर हम अपने पैतृक मूल्यों को लेकर चलेंगे, तो आज की रफ़्तार में पीछे रह जाएँगे, बल्कि अगर आप पुराने मूल्यों के साथ आगे बढ़ेंगे तो कभी डगमगायेंगे नहीं, इसलिए बाह्य आडंबर और दिखावे के लिए अपने मूल्यों की अनदेखी नहीं करिए, इन मूल्यों को अपने साथ साथ अपनी आगामी पीढ़ियों में स्थानांतरित करते रहिए।

आशा है आप सबको मेरी ये रचना पसंद आयी हो, पसंद आने पर लाइक, शेयर और कमेंट करना ना भूलें।

#दिखावा

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

लखनऊ।

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