“रोहित,अब और मैं यहां नहीं रह सकती।छोटे से घर में मेरा दम घुटता है।
पापा मम्मी का इतना बड़ा घर खाली पड़ा है हम लोग वहीं चलकर रहते हैं। पापा भी कितनी बार कह चुके हैं।”नेहा मुंह बनाते हुए बोली।
कहने को नेहा और रोहित की लव मैरिज हुई थी पर नेहा शुरू के दिन से ससुराल में नहीं रहना चाहती थी क्योंकि वो अपने मां बाप की इकलौती संतान थी ऐशो-आराम में पली बढ़ी थी।पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन थे पैसे की कोई कमी नहीं थी।वो तो इस शादी के लिए तैयार नहीं थे पर नेहा की जिद्द के आगे उनकी एक ना चली।
रोहित इंजिनियर था और देखने में भी हैंडसम था बस इसलिए नेहा उस पर फिदा हो गई थी।दोनों की मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड की शादी में हुई थी।रोहित का परिवार साधारण था।पिता नौकरी से रिटायर्ड हो गए थे।रोहित की एक बड़ी बहन थी उसकी शादी हो गई थी।वैसे रोहित की तनख्वाह ठीक ठाक थी पर उसपर माता पिता और बहन की जिम्मेदारी थी
इसलिए वो तरीके से खर्च करता था।जबकि नेहा को तो नोटों में खेलने की आदत थी।दूसरा उसे घर वालों की दखलंदाजी बिल्कुल पसंद नहीं थी।क्योंकि रोहित की मां कभी कभी उसे कुछ गलत करने पर टोक देती तो उसे बुरा लगता था।सारा दिन बस अपने कमरे में बैठी रहती शाम को रोहित घर आता तभी बाहर आकर सबके साथ बैठती।
रोहित घरवालों का तो ख्याल रखता ही था पर नेहा को भी खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ता।फिर भी नेहा ने जिद्द पकड़ रखी थी,कि रोहित उसके मायके चलकर रहे।नेहा की खुशी के लिए रोहित ने ससुराल में रहने का मन बना लिया और अपने माता पिता से भी इस बारे में बात की तो उन्होंने खुशी खुशी उसे ससुराल जाकर रहने की इजाजत दे दी क्योंकि वो भी बच्चों की खुशी चाहते थे।दूसरा बेटे को एक ही शहर में तो रहना था कहीं दूर तो जाना नहीं था।रोहित ने भी उन्हें कहा था,कि वो आते जाते रहेंगे।नेहा रोहित संग अपने मायके रहने आ गई।
रोहित ससुराल में आकर बहुत खुश था सुबह शाम नौकर चाकर उसके आगे पीछे घूमते रहते थे।ऑफिस जाने के लिए ड्राइवर और कार दोनों उपलब्ध हो जाते थे।रोहित को कुछ करना नहीं पड़ता था..ऑफिस जाना और फिर घर आकर खाना पीना सो जाना। ना महीने का राशन पानी लाने की चिंता ना बिजली का बिल भरने की टेंशन।
सब कुछ बैठे बिठाए हाथों में मिल जाता था।अंधा क्या मांगे?दो आंखे बस रोहित का भी यही हाल था..मौज मस्ती में उसके दिन गुजर रहे थे..उसके यार दोस्त या रिश्तेदार कभी मिलने पर उसे मजाक में घर जमाई बोल देते तो वो बुरा नहीं मानता बल्कि मुस्कुराकर कहता -“जब ससुराल से इतना मान सम्मान मिले तो घर जमाई बनने में क्या बुराई है?
” वो कहावत है ना,कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात..बस रोहित के साथ भी अब यही होने लगा था।घर के जो नौकर चाकर उसकी एक आवाज पे दौड़े आते थे अब वो उसकी बात टालने लगे थे।जैसे एक दिन रोहित के सर में दर्द था उसने ऑफिस से छुट्टी ले रखी थी..नेहा शॉपिंग करने बाजार गई हुई थी इसलिए उसने रसोई में काम करने वाले कुक से बोला
-“अरे रमेश सुनो,मेरे लिए एक कप चाय बना दो सर में दर्द हो रहा है।” तो वो झुंझलाते हुए बोला -“साहब,मेरे पास अभी टाइम नहीं है बड़े साहब और मैडम जी (रोहित के सास ससुर)के लिए जूस बनाकर देना है फिर नेहा बेबी भी बाजार से आने वाली होंगी? उनके लिए जल्दी से ब्रेड रोल बनाना है नहीं तो वो नाराज हो जाएंगी।”
रोहित को पहली बार ऐसा महसूस हुआ,कि उसकी जगह इस घर में एक फालतू इंसान जैसी है।एक बार को तो उसकी आंखे नम हो गईं फिर उसने अपने को ये सोचकर सामान्य कर लिया कि एक दो दिन की बात और है पर रोज रोज कोई किसी को खास त्वज्जो नहीं दे सकता।नेहा बाजार से आई तो राहुल ने उससे चाय की बात बोली वो उल्टा उसे ही डांटने लगी
-“रोहित,तुम कुछ काम करते नहीं सारा दिन मुफ्त की रोटियां तोड़ते रहते हो..एक कप चाय भी खुद बनाकर नहीं पी सकते।”नेहा की बात सुनकर रोहित बहुत दुखी हुआ..और उससे भी ज्यादा तकलीफ उसे तब हुई जब वहीं खड़े नेहा के मम्मी पापा भी नेहा को समझाने के बजाय उसका साथ देते हुए बोले -“रोहित,नेहा ठीक कह रही है..अपने छोटे मोटे काम खुद कर लिया करो हमारी बेटी को परेशान करने की जरूरत नही है।”
आज रोहित को अपने पराए में अंतर समझ आ गया था।कुछ पलों के लिए वो अतीत की यादों में खो गया.. उसको कभी छींक भी आती तो मां सारा घर सर पे उठा लेती थी।कभी अदरख वाली चाय बनाकर ले आती कभी उसे भाप का सेक दिलवाती तो कभी उसका माथे पर प्यार से विक्स लगाती।पिताजी भी ऑफिस से आते ही उसकी तिमारदारी में लग जाते।मां से कहते -“रोहित के लिए गरम गरम शीरा बना दो..खाने से थोड़ा जुखाम में आराम आएगा।”रोहित ने मन बना लिया वो
अब अपने माता-पिता के पास ही जाकर रहेगा.. पराए घर की ऐशो आराम की जिंदगी से अपने घर की सम्मान की सूखी रोटी अच्छी।रोहित के दिमाग से घर जमाई का भूत उतर गया था उसने अपना बोरिया बिस्तर समेटा और घर जाने की तैयारी करने लगा।नेहा से बोला -“नेहा,बस अब मैं और तुम्हारे मायके नहीं रह सकता मैं अपने घर जा रहा हूं तुम्हें भी मेरे साथ चलना होगा।”
“रोहित,मैं उस घर में नहीं रह सकती जहां सुख सुविधा के नाम पर घर में बस एक झाड़ू पोछे वाली हो..और भी घर में बहुत से काम होते हैं।”
“ठीक है फिर तुम यहां रहो मैं अपने घर जा रहा हूं।”रोहित गुस्सा होते हुए बोला।नेहा रोहित के साथ घर जाने को तैयार हुई पर कुछ शर्तों पे।रोहित ने नेहा की शर्तें मान ली क्योंकि उसे लगा..सारी उम्र घर जमाई बनकर अपमान की जिंदगी जीने से अच्छा पत्नी की कुछ शर्तें मानकर अपने घर सम्मान से रहो।रोहित नेहा संग अपने घर लौट आया उसके माता पिता बहुत खुश हुए।रोहित अब ‘ घर जमाई ‘ के टैग के बिना सम्मानपूर्वक अपनी जिंदगी जी रहा था।
कमलेश आहूजा
#सम्मान की सूखी रोटी