ज़िंदगी में हम हर वक्त ख़ुशियों के पीछे भागते रहते हैं और ख़ुशियाँ हमसे और दूर भागती जाती हैं …….इंसान सारी ज़िंदगी मेहनत करता है की ज़िंदगी में आगे बढ़े, लेकिन ज़िंदगी हर बार उससे दो कदम आगे चलती है । एक वक्त आता है जब लगता है कि अब सब कुछ हासिल हो गया है,
सारे सपने पूरे होने को आए हैं, अब थोड़ा सुकून से जिया जाए तभी ज़िंदगी में कुछ ऐसा हो जाता है की सारे सपने, सारे अरमान चूर हो जाते हैं । जब हम सोचते हैं कि अब ज़िंदगी जीने का समय आ गया है तब तक ज़िंदगी हमें जी कर चली जाती है । ऐसा ही कुछ हुआ सपना और हर्ष के साथ …..
सपना और हर्ष बहुत खुश थे । पाँच साल बाद उनकी ज़िंदगी में एक नन्हा मेहमान आने वाला है । दोनो दिन रात मिलकर अपने आने वाले मेहमान के लिए नए नए सपने संजोते, खूब खुश थे दोनो । ज़िंदगी का हर लम्हा बहुत ख़ूबसूरती से गुज़र रहा था । आख़िर वह दिन आ ही गया जिसका दोनो को इंतज़ार था, हर्ष सपना को लेकर अस्पताल पहुँचा और सारी औपचारिकता पूरी करने के बाद इंतज़ार की घड़ी बिताए नही बीत रही थी …
सब कुछ सामान्य था तभी अचानक हर्ष को एक फ़ोन कॉल ने परेशान कर दिया जैसे उसकी ख़ुशियों पर कोई ग्रहण लग गया हो । पता नहीं कैसी अजीब सी उदासी छा गई उसके चेहरे पर । नर्स ने आकर आवाज़ दी ……हर्ष जी (नर्स उसकी जान पहचान की थी) मुबारक जो आपको बेटी हुई है । ख़ुशख़बरी सुनकर उसकी आँखों से आँसू छलक गए और उसने अपनी जेब से कुछ रुपय निकल कर नर्स को दे दिए, कहा मिठाई मँगा लेना इससे पहले वो कुछ कहती वह ……वहाँ से चला गया ।
इधर सपना को होश आया तो सबसे पहले उसने अपनी बेटी को गोद में उठाया और नर्स से हर्ष को बुलाने के लिए कहा तो नर्स ने कहा वो तो चले गए और हम सबके लिए मिठाई के पैसे भी दे कर गए हैं । सपना को लगा कि हर्ष कोई सर्प्राइज़ देने वाले हैं इसलिए गए होंगे। सुबह जब सपना की नींद खुली
तो फिर से उसने हर्ष के बारे में पूछा नर्स ने कहा वो तो नहीं आए । सपना ने फ़ोन देखा …..ना तो हर्ष ने उसे कोई फ़ोन ही किया ना ही मेसेज भेजा। वह परेशान हो कर हर्ष को फ़ोन मिलने लगी , हर्ष के फ़ोन पर रिंग जा रही थी
पर वो फ़ोन नही उठा रहा था, उसे चिंता होने लगी …उसका मन बहुत घबराने लगा क्यूँकि पिछले पाँच सालों में आज पहली बार हर्ष बिन बताए वो भी इस हालात में उसे अकेला छोड़ कर गए हैं , जबकि इस दिन का इंतज़ार सबसे ज़्यादा उनको ही था …….जो हर्ष उसे एक पल भी अकेला नहीं छोड़ता था आज वह कैसे ………वह इस हालत में भी नही थी की खुद जा कर हर्ष का पता लगाए …..,
तभी उसने एक नम्बर मिलाया और रोने लगी …….रोते-रोते उसने कहा ……..तुम्हारे सिवा मेरा यहाँ कोई नही जो इस समय मेरी मदद कर सकेगा ….कोई सवाल मत करना …..मैंने कल ही बेटी को जनम दिया है और कल से हर्ष का कोई पता नही …..अब तुम ही पता करो वो ज़रूर किसी मुसीबत में हैं और फ़ोन रख दिया।
सपना बच्चे को गोद में लिए रोते-रोते कहीं खो गई …….और मन में बड़बड़ा रही थी कि हर्ष मुझे माफ़ कर दो मेरे पास कोई रास्ता ना था ….आज तुम्हारी क़सम तोड़नी पड़ी….एक बार तुम्हारी सलामती की खबर मिल जाए ……फिर कभी बात नही करूँगी रूबी से।
अगले दिन रूबी उसे लेने अस्पताल आई, सपना उसे अपने सामने देख कर चौंक गई । रूबी ने उसे गले लगाया और बच्चे का माथा चूमा । सपना का मन घबराने लगा उसने रूबी से पूछा हर्ष कहाँ हैं । बिना कुछ कहे अस्पताल की सारी औपचारिकता पूरी की और उसे अपने साथ चलने को कहा, सपना उससे पूछती रही हर्ष कहाँ है और वह उसे लेकर उसके घर आई जहां बहुत भीड़ जमा थी ………
सपना घबरा गई, रूबी ने बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया ..,सपना गाड़ी से उतर कर घर की तरफ़ भागी ….घर के अंदर हर्ष को झूलता देख वह चक्कर खा कर गिर गई। जब होश आया तो वह रूबी से पूछने लगी कि ये सब क्या हो गया। हर्ष ने ऐसा क्यूँ किया ….,,क्यूँ उन्होंने अपनी बेटी का चेहरा एक बार भी नहीं देखा …,,,क्यूँ वो मुझसे मिलने नहीं आए ….
जिस घड़ी का उनको बेसब्री से इंतज़ार था ……क्यूँ बिना उस पल को जिए वो ऐसे चले गए । रूबी ने अपनी आँखों के आँसू छुपाते हुए उसे गले लगा लिया और कहा बहुत मुश्किल है पर अब तुम्हें अपनी बेटी के लिए जीना सीखना होगा वो भी हर्ष के बिना …,,,क्यूँकि याद तो उनको किया जाता है जो हिम्मत से जीते हैं जो बिना लड़े, जो अपनों के बारे में बिना सोचे ऐसा कदम उठाते हैं वो कायर होते हैं……..
यह बात सपना को अंदर तक घायल कर गई ..,,,बार बार यह सवाल उसे अंदर तक कचोट जाता की हर्ष ने उसे और उसकी मासूम बच्ची को आख़िर किस बात की सजा दी , कोई परेशानी थी तो एक बार बता कर तो देखते .,.,,समय के साथ धीरे-धीरे सवाल ने सवालों के जवाब ढूँढने बंद कर दिए। अब वह अपना ज़्यादातर समय अपनी बेटी वृंदा के साथ और रूबी के साथ नृत्य सिखाने में बिताने लगी ।
हर्ष की जुदाई ने उसे जितना तोड़ दिया उतना ही उसे मज़बूत भी बनाया। रूबी के प्यार और हौसले ने सपना को फिर से जीना सिखा दिया। रूबी एक किन्नर है जो सपना के साथ स्कूल में पढ़ती थी और उसकी बचपन की सहेली लेकिन समाज की नफ़रत ने दोनो को दूर कर दिया था। सपना को हर्ष से मिलाने वाली रूबी खुद हर्ष की नफ़रत की वजह से सपना से दूर हो गई थी । लेकिन दोनो का रिश्ता दिल का रिश्ता था दूर ज़रूर हुए थे घर से लेकिन दिल से नही।
रूबी ने समाज में सम्मान पाने के लिए बहुत मेहनत की वह बच्चों को नृत्य सिखाती थी उसके पास बहुत से बच्चे नृत्य सीखते थे । हर्ष को गए दस साल बीत गए । रूबी और सपना मिलकर जहां सुबह से शाम तक तक़रीबन दो सौ बच्चों को प्रतिदिन नृत्य सिखाते हैं और वही बच्चे अन दोनो का नाम विदेशों में अपनी नृत्य कला से खूब रोशन कर रहे हैं ।
रूबी और सपना की मेहनत आज रंग लाई , उन दोनो के संघर्ष का फल आज उन्हें मिलने जा रहा है क्यूँकि इनके कला केंद्र को राज्य सरकार द्वारा राज्य का सर्वश्श्रेष्ठ नृत्य कला केंद्र का पुरस्कार मिलने जा रहा है, दोनो बहुत खुश हैं।
सपना नम आँखों से……….आज हर्ष की बातें याद कर रही थी ..,,,कि किस तरह हर्ष ने रूबी के किन्नर होने की बात पता चलने पर उसका कितना अपमान किया था, और अपनी क़सम देकर सपना को उससे कभी ना मिलने और बात ना करने की क़सम दी थी आज उसी रूबी ने उसे इस मुश्किल वक्त में सहारा भी दिया और जीने का मक़सद भी ….,