एक प्रेम ऐसा भी,,,,,, –  मंजू तिवारी

 

 यूपी में दादा दादी को कई घरों में अम्मा और बाबा भी कहा जाता है। तो अम्मा बाबा के सच्चे प्रेम को शब्दों में बांधने का असफल प्रयास कर रही हूं। क्योंकि उनका प्रेम शब्दों से परे है।,,,,

 

अम्मा का भरा पूरा परिवार पांच बहुएं पांच लड़के और एक बिटिया दामाद ,,,घर नाती पोतों से भरा हुआ,,, अम्मा  पूजा पाठ करती और दान पुण्य भी करती,,,,, सोमवती अमावस्या देती इसमें 108 चीजों का दान किया जाता ,,,कई ना जाने कौन-कौन से पूजा करती कोई बता देता जिस पूजा पति की लंबी आयु के लिए होती है बड़े विधि विधान से करती,, अम्मा की पूजा का मात्र एक ही उद्देश्य था कि मैं सुहागिन हीं मरु,,,,,, शारीरिक रूप से असाध्य होने के बाद भी पीपल पर ही जाकर सोमवती अमावस्या की पूजा करती,,, सभी उनके लिए पूजा पाठ के सामान जो वह दान करती सारी व्यवस्था बाबा और चाचा  करते,,,,, वह अपने जीवन में पति से बढ़कर कुछ भी नहीं मानती थी,,,, अम्मा ने कभी भी बाबा से पहले भोजन नहीं किया था,, बाबा हमेशा घर से बाहर रहे उन्हें घर में रहने की आदत ना थी,, तो वह अपने बेटों के साथ दुकान पर रहते दोपहर में बस खाना खाने आते जब बाबा भोजन करके चले जाते तो उन्हीं की थाली में बहू के साथ भोजन करती हैं।,, जब बाबा शहर से बाहर होते तो उस जमाने में फोन तो नहीं थे तो एक अंदाजा लगा लेती कि अब तुम्हारे बाबा ने खाना खा लिया होगा तो ढाई 3:00 बजे ही भोजन करती,,, अम्मा और बाबा की अवस्था भी बहुत होती जा रही थी क्योंकि अब उनके बेटे भी वृद्धावस्था में जाने लगे थे बाबा के हाथ पैर कांपते थे फिर भी सुबह शाम वह खाना खाने घर पर ही आते थे ,,अम्मा बड़े प्रेम से उन्हें भोजन कराती बाबा जनेऊ पहनते थे उनके लिए चौकी लगाकर पानी छिड़ककर खाने की व्यवस्था करवाती,,, थोड़ी देर घर में रुकते,, अम्मा की हाल चाल लेते उनके स्वास्थ्य को पूछते उनकी दवा का हमेशा ध्यान रखते ,,, बेटों से कहकर मंगवाते हम बच्चे अपने अम्मा और बाबा का भरपूर प्रेम पाते,,,,,

 

 बाबा की अवस्था ,95 पार कर चुकी होगी तो एक दिन अचानक बाबा गिर गए जिससे उनकी पैर में हल्का सा फैक्चर आ गया ,,डॉक्टर को दिखाने पर डॉक्टर ने मना कर दिया इस अवस्था में बहुत ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता,, दवा इलाज जो कुछ हो सकता था वह बेटों ने कराया,, लेकिन अब बाबा का घर आना बंद हो चुका था,, बाबा के लिए दुकानों पर खाना जाता वहीं पर भोजन करते लेकिन अम्मा चादर ओढ़ कर बाबा को देखने जाती,, क्योंकि यह नया जमाना आ चुका था वह ठहरी पुराने जमाने की,,,, बाबा को उनका घर से बाहर आना अच्छा ना लगता वह हमेशा कहते,, कोई देखेगा तो क्या कहेगा उनको 5 मिनट भी वहां ना रुकने देते विचारी मन मार कर घर आ जाती,,,,, हमसे भी बुढा कोई इस एरिया में है जो देखकर हमें कुछ कहेगा,,,, सब तो हमारे बेटा बहू जैसे है। हमसे बड़ा तो कोई नहीं,,,

 



बाबा  चलने फिरने लायक तो ना थे फिर भी सब ठीक ठाक ही चल रहा था ,,,क्योंकि अब अवस्था भी हो चुकी थी तो उनका दिमाग कुछ डिस्टर्ब सा हो रहा था अजीब अजीब सी बातें कर रहे थे ,,,तो इससे  बेटों को लगा कि अब इनकी देखभाल के लिए दादा को घर में शिफ्ट करना चाहिए,,,, डॉक्टर से बेटों ने इलाज भी खूब कराया लेकिन डॉक्टर ने कहा ,,,अब तो इनकी उम्र है अब कुछ नहीं किया जा सकता फिर भी बेटे न माने अपनी तसल्ली के लिए उनका इलाज करवाया,,,, अब बाबा घर में आ चुके थे,,,,,, लेकिन जब भी अम्मा बाबा के पास खड़ी होती तो वह उनसे नाराज हो जाते कहते तुम फिर दुकानों पर चली आई क्योंकि उन्हें तो ऐसा लग रहा था कि वह दुकान पर ही है। ,,,,बेचारी अम्मा पास भी खड़ी नहीं हो सकती,,,,, बाबा को दूर से ही देखती और रोती रहती,,,, कि मेरा पूजा पाठ भी अब काम नहीं आ रहा है। अम्मा काफी बुजुर्ग और और धार्मिक महिला थी मृत्यु से पूर्व किए जाने वाले कर्मकांड गोदान बेतरणी जो भी विधि-विधान होते हैं। उन्होंने रोते-रोते बेटों से पूरे कराएं,,,,, बहुए एकांत में बातें करती अगर दादा को कुछ हो जाता है तो अम्मा को कैसे संभाला जाएगा,,, बहू और बेटों को यह नामुमकिन सा लग रहा था फिर एक दिन शाम को बाबा ने अपनी आंखें सदा के लिए बंद कर ली,,, यह उनकी कुदरती मृत्यु थी क्योंकि उन्हें कोई भी बीमारी नहीं थी,, लेकिन आशा के विपरीत अम्मा को बड़ा मजबूत पाया,,,,, सबसे बड़ा बेटा लगभग छेत्र 77 साल का होगे बाकी भी बेटे उम्र दार ही थे रोते हुए बेटों को समझाती,,,,, तुम सब पागल हो गए हो तुम कितने भाग्यशाली हो,,,, तुम बूढ़े होने जा रहे हो तुम्हारे ऊपर अभी तक बाप का साया रहा,,,,, लोग तुम पर हंसेंगे कि कैसे बूढ़े बूढ़े लड़के रोए जा रहे हैं,।,,,तुम लोगों ने उनकी सेवा और दवा भी खूब कराई किसी प्रकार की तुम लोगों ने कसर नहीं छोड़ी,,, बाकी परमात्मा की मर्जी,,,,,, लेकिन हम सब उनके दर्द को समझते थे,,,,,,,, अकेले में रोती और और अपने दर्द को छुपा जाती,,,,,, बाबा के सारे क्रिया कर्म अम्मा ने विधि विधान से कराए,,,, 

बाबा को जाए लगभग 2 महीने हो गए थे,,,,, एक दिन अम्मा चाची से लड़ रही थी वह गुस्सा कर रही थी इसे जब देखो तब कपड़े धोने की पड़ी रहती है। अम्मा की नाराजगी का कारण पूछा जो किसी को समझ नहीं आ रहा था,,,,,, कुछ बता नहीं रही थी सिर्फ गुस्सा कर रही थी,,,,,,, मैंने ज्यादा पूछा तो अम्मा ने बताया तुम्हारे बाबा का पहना हुआ कुर्ता चाची ने धो डाला है।,, मैंने कहा तो क्या हुआ ,,,,? अम्मा का उत्तर पाकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना न था,,,,,,, अम्मा बोली इस हॉल में मैंने तुम्हारे बाबा का पहना हुआ कुर्ता रखा था जब भी मुझे तुम्हारे बाबा के ना होने का एहसास होता,, तो मैं उस कुर्ता को छूती,,  तुम्हारे बाबा की खुशबू मुझे आती तो ऐसा लगता कि वह  अभी भी है। इस कुर्ते में तुम्हारे बाबा की महक बसती है। मुझे तुम्हारे बाबा की याद आती तो उस पहने हुए कुत्ते को मैं देख आती थी,,,,, उस कुत्ते की महक से मुझे उनके होने का एहसास होता था वह भी इसने धो दिया,,,,,

गलती तो चाची की भी ना थी लेकिन इस तरह से तो किसी ने भी ना सोचा था,,,,,,, वैसे तो मजबूत थी लेकिन बाबा के गुजरने के बाद वह भी धीरे-धीरे बीमार पड़ती गई,,,,, हम सब अम्मा को समझाते अम्मा आपने बाबा के साथ इतना लंबा वैवाहिक जीवन बिताया जो शायद बहुत कम लोगों के हिस्से में होता है। आपकी उम्र कितनी बची है। इतना ना सोचा करो,,,, अम्मा बताती,, मेरी और तुम्हारे बाबा का जब विवाह हुआ था तो मैं 6 साल की और बाबा 8 साल के थे,,

 फिर वह धार्मिक बातें करने लगती पति हमेशा पत्नी से बड़ा होता है। इसलिए शायद वह दुनिया से पहला जाता है फिर बाद में पत्नी,,,, अगर उम्र में पत्नी पति से बड़ी है तो वह भाग्यशाली होती है क्योंकि वह अपने पिछले जन्म में पति से पहले सुहागन मरी होगी है। इसलिए वह पहले पैदा हुई और पति से उम्र में बड़ी है। पति पत्नी का सात जन्म का जोड़ा होता है। मुझे अगले जन्म में भी तुम्हारे बाबा का साथ प्राप्त हो,,,



 

 बाबा के हाथ से मुखाग्नि ना मिलने का दुख आज भी अम्मा के हृदय में था,,,, जब अम्मा का लगभग आखिरी समय आ गया तो अम्मा ने अपनी बहूओ और पोतों से कहा तुम्हारे दादा के हाथ से मेरा अंतिम संस्कार तो वदा नहीं था,,, लेकिन तुम्हारे दादा के कपड़े मेरे संदूक में रखे हैं। जब तुम मुझे मुखाग्नि दो तो दादा के कपड़े कुर्ता धोती मेरे ऊपर रख देना मैं उनके कपड़ों के साथ जाना चाहती हूं।,,,,, और बेटे बहुओं से कहती ज्यादा रोने की जरूरत नहीं है। तुम लोगों ने मेरी बहुत सेवा की,,, एसे बेटे बहूए भगवान सभी को दें,,,,,,,,

बाबा के जाने के ढाई साल बाद2004 में लगभग 95 साल की उम्र में अम्मा परिवार रूपी हरा भरा बाग छोड़कर एक दिन सुबह बाबा से मिलने की इच्छा लेकर हम सब से दूर सदा के लिए अनंत यात्रा पर निकल गई,,,,

अम्मा की आखिरी इच्छा के अनुसार बाबा के कुर्ता धोती उनकी छाती पर रखकर उनका अंतिम संस्कार किया गया,,,,,, शायद बाबा और अम्मा का आत्मा का रिश्ता था,,, एक  प्रेम ऐसा भी मुझे देखने को मिला और मैं साक्षी बनी इस पवित्र प्रेम की,,,,, 

बाबा अम्मा वैलेंटाइन डे को नहीं जानते थे यह क्या होता है। उनका एक दूसरे के प्रति समर्पण था

 

वैलेंटाइन डे मनाया जा रहा है अच्छी बात है लेकिन प्रेम के प्रति समर्पण भी उतना ही होना चाहिए जिस उत्साह से वैलेंटाइन डे मनाया जा रहा है। 

 

आप सभी को आने वाले वैलेंटाइन डे की बहुत-बहुत शुभकामनाएं,,,, अपने वैलेंटाइन  के साथ जीवन के सफर का आनंद लीजिए,,,,,

 

#प्रेम

 मंजू तिवारी गुड़गांव

स्वरचित मौलिक

सर्वाधिकार सुरक्षित,,,,

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