निश्चल प्रेम – दीपा माथुर
- Betiyan Team
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- on Feb 10, 2023
अरे बिटिया चोट तो नही आई निर्मला जी ने पांच वर्षीय
नेहा को उठा कर कपड़े झाड़ते हुए कहा।
नेहा ने रोते रोते अपने हाथो की कोहनी सामने कर दी।
खून बह रहा था।
अरे कुछ नही देखो तो तुम्हारे तो जरा सा खून निकला
और तुम्हारे गिरते ही कितनी चिटिया मर गई।
और कहते कहते अपनी चुन्नी से घाव साफ करने लगी।
दादी आपकी चुनी तो गंदी हो गई।
नेहा ने एक हाथ से अपने आसू पोछे और बोली।
अरे तुम बच्चो की मुस्कुराहट पर तो हजारों चुन्नी वार दु।
दादी आप तो बहुत अच्छी है।
आप रोज मेरे साथ खेलेंगी।
हा जरूर ! क्यों नही।
तो चलिए अब घर जाने का समय हो गया है तो में जा रही हु पर आप प्रोमिस करो मुझे कल जरूर मिलोंगी।
निर्मला जी ने हंसते हुए नेहा के सिर पर हाथ रखा और बोली
” प्रोमिस”
नेहा ने अपनी साइकिल उठाई और ये गई वो गई।
जब तक नेहा आखों से ओझल नहीं हो गई निर्मला जी
उसे देखती रह गई।
और तुरंत बाद उनके चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गई।
फिर काली रात की ओर बढ़ते कदम।
दूसरे दिन शाम होते ही नेहा अपने मम्मी पापा के साथ गार्डन में दादी का इंतजार कर रही थी।
नेहा के पापा ( विशाल) ने घड़ी में टाइम देख कर बोले ” अरे नेहा बिटिया तुम्हारी दादी तो आज दिखाई नहीं दे रही है?”
नेहा बोली ” आ जाएंगी पापा उन्होंने मुझसे प्रोमिस किया है “
नेहा का विश्वास देखते ही बन रहा था।
तभी सफेद बालों में चेहरे पर अनुभवों की झुर्रियां लिए
निर्मला जी आ गई।
हाथ जोड़ कर उन्होंने संकोच पूर्वक नेहा के मम्मी,पापा का अभिवादन किया।
लेकिन नेहा की मम्मी ने फट से उनके पैर छू लिए।
आंटी कल से आपकी तारीफो के पूल बांध रखे है।
इसीलिए मिलने चले आए।
निर्मला जी नेहा और उसके भाई वृषभ को अपनी बाहों में भरकर बोली ” ये नन्ही नन्ही कोपल ही असली कमाई और मेरी खुशियां है।”
यहां गार्डन में आना और इन नन्हे बच्चो का ध्यान रखना मैने अपना जीने का रास्ता बना लिया है।
और इन्ही की चुलबुली हरकतों को याद कर रात गुजर जाती है।
आंटी आपका घर यही कही है क्या?
निर्मला जी बोली” हा वो वृद्ध आश्रम है ना वात्सल्य आश्रम उसी में …
बात पूरी होने से पहले ही नेहा की मम्मी बोली ” क्यों आपके बच्चे ?”
निर्मला जी ने एक ऊंची श्वास ली और बोली ” दो बच्चे है
पर दोनो मेरी सारी जमीन जायदाद में हिस्सेदार बन कर
अमेरिका शिफ्ट हो गए ।
जब बेघर हो गई तब से इस आश्रम में रहती हु।
कहते कहते निर्मला जी की आखें भर आई।
चलो अब आप लोग घर जाओ नेहा और वृषभ का तो मैं ही ध्यान रख लूंगी।
आंटी आप बहुत अच्छी है।
निर्मला जी सोचने लगी ” दूसरे तो हमेशा ही अच्छे लगते है।
कभी अपने मां,बाप को अच्छा रहने दो तब ना?
नेहा के मम्मी ,पापा गार्डन से बाहर निकल चुके थे।
नेहा की मम्मी विशाल से बोली ” सुनो जी मैने मेरा विचार त्याग दिया है ।
अब आप मम्मी से जायदाद अपने नाम करने की बात भी मत करना।
जब तक वो है उनके पास रहेंगी तो उन्हे विश्वास रहेगा
वर्ना वृद्ध आश्रम का एक किरदार और खड़ा हो जाएगा”
विशाल भगवान को मन ही मन धन्यवाद देता हुआ
मुस्कुराया।
तीन चार घंटे बाद रात की चूनर ने आसमा को अपने रंग
में रंग लिया था।
निर्मला जी की आखों से नींद आज कोसो दूर थी।
और वह अपने अतीत के पन्नो को एक एक कर पलटने लगी।
सूरत में कपड़े की मील के मालिक की इकलौती बेटी थी।
घर में मजाल है एक बर्तन इधर से उधर करना पड़े।
जिस चीज पर हाथ रख देती थी वही उन्हे मिल जाती थी।
विविध एशो आराम के साथ बचपन ने यौवन अवस्थता में प्रवेश किया।
पिताजी ने एक बड़े घराने के लड़के जिसका बैंगलोर में
अपना सी एन जी मशीन टूल्स का कारखाना था।
जैसा मायके में राज किया उससे दुगुना ससुराल में राज
मिला।
पर समय की गति और विधाता के लेख को कोन समझ सका।
विधि और सजग (बेटी और बेटा) को खूब पढ़ा लिखा कर अच्छे घर में शादी कर दी।
साल भर निकलते ही बहु ने सारी जायदाद अपने नाम करने की ठान ली।
और रोज कलह करने लगी थी।
एक दिन विधि के पापा ने तंग आकर सजग से शिकायत की तो उसका उत्तर था ” आप सास ,बहु की लड़ाई में मुझे शामिल मत कीजिए।
और फिर क्यों इतनी उधेड़ बुन करते है अंत में तो सब हमारा ही है तो आज ही दे दे।
घर में शांति रहेंगी।
और आखिरकार घर में शांत वातावरण बनाए रखने के लिए सारी धन दौलत जायदाद बेटे बहु और बेटी में बाट
दिया।
पर अब बहु ने घर में रहना दुभर कर दिया।
रोज की चिक चिक किट किट से बचने के लिए
किराए के घर में आ गए ।
कभी कभी बेटी संभाल लिया करती थी।
पर वो भी विदेश में शिफ्ट हो गई।
तब हम वृद्धा आश्रम आ गए।
और पिछले साल वो भी मेरा साथ छोड़ गए।
पर बच्चो के आगे झुकना मैने मुनासिब नहीं समझा।
जब उनको पिताजी के मरने की खबर सुनाई तो वीडियो कॉल करके हाल चाल पूछ लिए।
किसी ने साथ चलने की बात नही कही।
और यही वजह है की मैं यहां आकर इन नन्ही किलकारियों को देखती रहती हु।
ये भी मुझे देख कर मस्त होकर खेलते है।
इनके मुंह से दादी सुनकर ही मन खुश हो जाता है।
सोचते हुए निर्मला जी नींद के आगोश में चली गई।
दूसरे दिन से वही रूटीन शुरू हो गया।
तभी नेहा की मम्मी निर्मला जी से मिलने आ गई।
निर्मला जी के पैर छू कर बोली ” आंटी आप मेरे घर आया कीजिए।
बच्चो का ध्यान भी रह जायेगा और आपका मन लग जायेगा।
निर्मला जी बोली ” क्यों तुम्हारे सास श्वसुर नही है?”
नेहा की मम्मी बोली “है ना।”
निर्मला जी ने नेहा की मम्मी को कहा ” बेटा सास श्वसुर नही है तुम्हारे?
है ना आंटी पर वो हमारे साथ रहना नही चाहते।
नेहा की मम्मी बोली।
हु वो रहना नही चाहते या तुम रखना नही चाहती
बेटा अगर तुम उन पर विश्वास करोंगी अपने कुछ लम्हे उन्हे दोगी।
तो वो तुम्हे बिलकुल इनकार नहीं करेंगे।
इस उम्र में थोड़ा सम्मान ही तो चाहते है पर नही आज की पीढ़ी ये सोचती है जैसे वो तो अमृत पीकर पैदा हुई है
इनका बुढ़ापा कभी नही आयेगा …….
और फिर दादा,दादी का प्रेम तो निश्चल प्रेम होता है
तुमने सुना ही होगा मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है।
निर्मला जी ने अपनी पूरी भड़ास निकाल दी।
फिर फूट फूट कर रोने लगी।
नेहा की मम्मी निर्मला जी का दर्द कुछ हद तक समझ गई थी।
नेहा की मम्मी ने आंटी के हाथ को अपने हाथ में लेकर बोली ” आंटी आप एक प्रोमिस कीजिए जब मेरे सास ,श्वसुर जी मेरे घर आ जायेगे तो आपको रोज मेरे यहां चाय पीने आना पड़ेगा।
निर्मला जी इस स्नेह और अपने पन की बात पर मुस्कुरा
उठी और बोली ” प्रोमिस “
घर लोट कर अपने पति विशाल से बोली ” सुनो अब मम्मी जी ,पापा जी को दीदी के गए बहुत समय हो गया
यहा ले आइए।
बेटी के घर इतना रुकना भी अच्छा लगता है।
विशाल खुश हुआ परिवर्तन का कारण जाने बिना
हुकम का पालन करना ही उचित समझा।
दीपा माथुर