एक निर्णय – कविता झा  : Moral Story In Hindi

सुबह से लगातार कई लोगों के बधाई संदेश और फोन आए पर मैं अपनी खुशी जिनके साथ बांटना चाह रही थी जो मेरे अपने हैं उन्होंने एक बार भी ना ही मुझे फोन किया और ना ही कोई मैसेज।

मैंने वाट्स अप पर आए मैसेज पर एक निगाह डाली फिर फेसबुक खंगालने लगी । अपने भाई और बहनों की प्रोफाइल में खुद को ढूंढ़ रही थी । दोनों की फोटो गैलरी में मैंने खुद को देखा । दीदी ने बचपन की मेरी तस्वीरें डाल रखीं थीं उन तस्वीरों पर लाइक कमेंट की भरमार थी। मेरे बारे में सबको बता रही थी । 

पर आज कैसे अपनी इस छोटी बहन अवि को भूल गए दोनों। अपनी हर खुशी जिनके साथ बांटती थी आज उन्हें मेरी उन्नति से खुशी नहीं जलन हो रही है। रात जब मैंने बताया  दीदी को अपने शहर आ रहीं हूं सुबह की फ्लाइट से। इतना सुनते ही आवाज नहीं आ रही है कह कर फ़ोन काट दिया था।

फिर जब भाई को फोन लगाया तो उसने उठाया ही नहीं फिर ओडियो मैसेज छोड़ दिया उसके वाट्स अप पर।

जो कि थोड़ी देर बाद ब्लू टिक दिखा रहा था।यानी भाई ने सुना होगा और जरूर आएगा। होगा तो कुछ दिन के लिए रुक जाऊंगी वहीं यही सोचकर हफ्ते भर के कपड़े रख लिए थे । 

कितना बड़ा दिन था मेरे लिए ।

 मेरी यादों का पिटारा मेरी पहली किताब एक साहित्यिक संस्था से निःशुल्क प्रकाशित हो गई थी और उन्होंने मुझे सम्मानित किया था। उसी का पुस्तक विमोचन था और साथ में अपनी कुछ कविताएं उसी किताब मे से सुनाई  थी सभी वाह वाह!! कर रहे थे तालियों की गूंज के बीच एक और सुनाओ एक और…कह रहे थे। पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था और मेरी नजरें दीदी और भईया को ही ढूंढ रही थी। दोनों में से कोई नहीं आया था। मैं स्टेज पर अपने  भाई बहन को बुलाना चाहती थी। बचपन की सारी यादें उन्हीं से तो जुड़ी थी जिन्हें कविता के रूप में पन्नों पर उकेरा था। 

अपने हिस्से का टॉफी चॉकलेट मुझे देने वाला मेरा भाई पिछले कुछ सालों से  इसलिए मुझसे बात नहीं करता कि कहीं मैं पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा ना मांग लूं।

माँ – पापा के जाने के बाद भाई बहनों से ही मायके था पर अब वो ही मुझसे कोई सम्पर्क नहीं रखना चाहते थे।

भाई ने पापा का बनाया घर सिर्फ इसलिए बेच दिया क्योंकि उसके वकील दोस्तों ने उसे पिता की संपत्ति पर बेटियों का बराबर अधिकार है के बारे में बताया था। 

मेरी बहन ने मुझे कई बार कहा था , “अवि भाई पर केस कर देतें हैं। वो अकेले ही पापा के उस घर के सारे पैसों से अपने बच्चों के लिए फ्लैट खरीदने की बात कर रहा है। तू मेरा साथ दे हम दोनों बहनों को भी पैसा मिलना चाहिए।”

मैंने साफ़ मना कर दिया था । अपने भाई पर केस करना मेरा मन गवाही नहीं दे रहा था। मेरे पास तो वो बेशकीमती यादें ही मेरी सबसे बड़ी संपत्ति थी जिसे मैं संजोए रखना चाहती थी।

हम भाई बहनों के रिश्तों में खटास आने लगी थी इस बात का इल्म मुझे भी बखूबी हो रहा था। 

जब भाई ने रक्षाबंधन वाले दिन मुझसे फोन पर कहा,

” तुम दोनों बहनें लालची हो। मैं जानता हूं राखी भेजना तो तेरा सिर्फ एक बहाना रहता है कि उसके बदले मैं तुझे गिफ्ट भेजूं। मुझसे नहीं होगा अब यह सब ।” 

आंखों से आंसू रोक नहीं पाई थी उस दिन भी और अभी भी… मेरा फ़ोन पूरा भीग गया था आंसुओं से वो सारी बातें याद करके।

कैसे हमारे रिश्ते खोखले होना शुरू हो गए पता ही नहीं चला। मैं तो हर बार भाई के हर दुख सुख में उसके एक फोन पर चली जाती थी। जितना मुझसे बन पाया हमेशा करती रही जिस कारण मेरे ससुराल वाले अक्सर मुझसे नाराज रहते। 

बहुत ही कड़वाहट वो अपने बच्चों में मेरे प्रति भरते रहे।

जब मेरी सहेली सुधा मुझे बताती अविका सुन तुझे पता है तेरे भतीजे भतीजी तेरे बारे में क्या-क्या बोलते हैं… गली में सबसे कहते हैं कि…

” बुआ तो सिर्फ कपड़े गहने लेने के लिए आती है ।”

मुझे विश्वास ही नहीं होता था उसकी बातों पर और मैं कहती…

“नहीं सुधा तुझे गलतफहमी हुई होगी। मैं बहुत किस्मत वाली हूं कि मेरे भाई बहन और उनके बच्चे सभी मुझे बहुत प्यार करते हैं। वो तो जबरदस्ती कुछ ना कुछ पकड़ा देते हैं।”

“तू बहुत भोली है अविका ये चालबाजी तेरी समझ में नहीं आएगी। वो सब दिखावा है।”

सच सुधा की सारी बातें सौ प्रतिशत सत्य थी।

आज हमारे रिश्ते कितने खोखले हो गए थे ।

शाम की फ्लाइट से मैं वापस अपने ससुराल आ गई थी।दो साल बाद मायके जाने का मौका मिला था पर कहां जाती वो घर तो रहा नहीं जिसे अपना कहती थी वो यादों का पिटारा तो भाई ने बेच दिया था।

एक मैसेज भी नहीं किया था कि तू आ जा तेरे भाई बहनों का घर कोई पराया थोड़े ही है तेरे लिए। 

“अवि आओ खाना खाने…”

 मेरे पति राजेश मुझे बुला रहे थे आज उन्होंने मेरी पसंद की खिचड़ी बनाई थी। मेरे बेटे बेटी भी डायनिंग टेबल पर बैठे मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे।

“मम्मा कैसा रहा आज का दिन।”

 बिटिया पूछ रही थी। मेरे आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

बेटा मेरे गले लग कर बोला ,

“ठीक हो  मम्मा आप… आप रो रहे हो? क्या हुआ किसी ने आपको डांटा या मारा। मुझको बताओ सबकी हड्डी-पसली एक कर दूंगा।”

“तुझे नहीं मम्मा मुझे बताएंगी मम्मा को क्या हुआ है।” दोनों आपस में मेरे लिए ही झगड़ रहे थे। 

कभी इनके बीच खटास ना आए मैंने निर्णय ले लिया था। अपनी पुस्तक की रोयल्टी दोनों बच्चों के नाम बराबर करने का और मेरी सारी संपत्ति पर मेरे दोनों बच्चों का बराबर का हिस्सा होगा।

मेरे पति मुझे प्यार भरी नजरों से देख रहे थे और मेरे मन के हर पन्ने को पढ़ रहे थे। 

रात सोने जब बिस्तर पर आई तो राजेश ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। “ऐसा कुछ नहीं होगा हमारे बच्चों के साथ अविका जैसे तेरे भाई बहन कर रहें हैं। हम जैसे संस्कार बच्चों में डालेंगे हमारे बच्चे वैसे ही बनेंगे। “

मैं भी पूरे दिन की थकान और अपने उस खोखले रिश्तों की तकलीफ को भूलकर इनकी बाहों में समा गई।

अभी से अपने बच्चों में रिश्तों की अहमियत समझानी होगी। यह खून के रिश्ते हमेशा के लिए होते हैं इन रिश्तों में खटास आने से मुझ पर जो बीत रही है वो मैं कभी अपनी बेटी के साथ नहीं होने दूंगी।

कविता झा “काव्य”

#खोखले रिश्ते

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