एक फैसला आत्मसम्मान के लिए – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

आज मै जो हूँ अपनी माँ की बदौलत हूँ..मेरी माँ ने मेरी खातिर किया.. “एक फैसला आत्मसम्मान के लिए”….मेरे लिए किया था उसने फैसला वो मुझे फर्श से अर्श तक पहुँचा कर रहेगी ।

आज भले ही वो इस दुनिया में नहीं है….. ये दुनिया उन लोगों को सलाम करती है जो अपने बल पर बुरी से बुरी परिस्थिति का सामना करते हुए आगे बढ़ते हैं ये शब्द थे रेवती पांडे आई ए एस के, महिला कालेज के वार्षिक समारोह में मुख्य अतिथि की भूमिका के भाषण में।

 तालियों की गड़गड़ाहट से सारा हाल गूँज उठा आज महिला कालेज की छात्राओं में गजब का उत्साह नजर आ रहा था । रेवती पांडे जो की प्रबंधन में निपुण शिद्दत से कार्य करती महिलाओं की प्रेरणा स्रोत जिनकी छवि लोगों के मन मस्तिष्क पर छप चुकी थी।उनकी सकारात्मक सोच सबको कायल बना देती है।

जिनकी कर्तव्य परायणत,जुनून, दृढ़ता उनके व्यक्तित्व का अहम पहलू है। आज जब वो छात्राओं को सम्बोधित करने मंच पर आई हर कोई उनको सुनने को उत्सुक था आखिर हो भी क्यों नहीं…? हर को जानने की उत्सुकता थी  उनके फर्श से अर्श तक के सफर की…

रेवती पांडे बोली आत्मसम्मान सिर्फ भावना ही नहीं है बल्कि यह हमारे व्यक्तित्व का आईना है। हमारे निर्णय लेने की शक्ति है ये…हर कोई अपने आत्मसम्मान के लिए जीना चाहता है क्योंकि यही इंसान को खड़े होने में मदद करता है इसके बिना व्यक्ति कभी सार्थक पूर्ण जीवन नहीं जी सकता।

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जब मैं पांच वर्ष की थी मेरे पिता का स्वर्गवास हो गया मेरी माँ पढी लिखी नही थी। हमारी जमीन जायदाद सभी रिश्तेदारों ने अपने कब्जे में कर ली हम दर दर की ठोकरें खाते सड़क पर आ गये ।

मेरी माँ आस पड़ोस के घरों में काम करती उसके पास तन ढकने को जरूरत मंद वस्त्र ही थे । वो भी जगह जगह-जगह से फटे सीले अमीरों के ताने, छिछोरी हरकते ,तीखे व्यंग्य,भी का मेरी माँ को सामना करना पड़ता। रिश्ते नाते सब दूर होते गये…वैसे भी लाचार बेबस इंसान की तरफ देखता ही कौन है..? वहीं देखते जो कुछ बदले की चाहत रखते।

बचपन की दुर्धटना, देखभाल की कमी, अपनों का साथ न मिलना मुझमें आत्मसम्मान की कमी घर करने लगी जैसा की बच्चों के सीखने बढ़ने के लिए स्वस्थ वातावरण बनाना जरूरी होता है।

मुझे खुद पर कम भरोसा होने लगा.. मैं गलती करने से डरती मैं स्वयं से सन्तुष्ट ही नहीं थी । ऐसे में स्वयं को मूल्यवान, सम्मान योग्य कैसे बना पाती…? मुझे अपने सफल होने की क्षमता पर सदा ही संदेह बना रहता।मेरा मन कहता “ मैं मूर्ख हूं “!”मैं यह नहीं कर सकती “!” जो करूंगी सब गलत ही करूंगी “! ऐसी ही भावना मेरा पीछा किया करती थी ।

मेरा हर वक्त विपरीत परिस्थितियों में हार मान जाता। जोखिम से बचकर रहना मुझे सफल ही नहीं होने दे रहा था ।

 “ बच्चों ये ही समय होता है जब इंसान नशे की आदत, नशीली वस्तुएं दवाओं का सेवन जैसे दुरुपयोग करने लग जाता है”!! 

रेवती आगे बोली– लेकिन मेरी ‘माँ ने हार नहीं मानी उनका साहस मुझे बराबर प्रोत्साहित करता रहा वो क़दम क़दम पर मेरा हौसला बढ़ाती रही।मेरी माँ मेरे लिए एक मजबूत स्तंभ थी । सुबह मैं स्कूल जाती माँ घरों में काम करती । शाम माँ के साथ मन्दिर के बाहर फूल प्रसाद बेच हम अपना गुजारा करते। हमारी गरीबी देख कुछ पैसों से मदद करना चाहते

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लेकिन माँ फूल प्रसाद खरीद लो भीख नहीं चाहिए मेहनत की खानी है यही कहती।माँ की बाते सुनकर मुझमें भी परिवर्तन आने लगा जब मेरी माँ अकेली इतनी खुद्दारी से आत्मविश्वास से जी सकती है तो भला मैं क्यों हर परिस्थिति का मुकाबला नहीं कर सकती….?

अनेक राह चलते लोग रिश्तेदार जिन्होंने मेरी माँ का आत्मसम्मान गिराया दुर्भाग्य से ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं रही जो जान बूझकर नुकसान पहुँचाने से नहीं चूकते थे। मेरी तरफ उठती लोगों की गन्दी निगाहें मेरी मां को बेबस कर देती । वो नहीं चाहती थी मै उसकी तरह ठोकरें खाऊं लोगो की गलत निगाहों का सामना करूं वो मुझे मेरे पैरों पर खड़ा देखना चाहती थी ताकि मैं इन गलत लोगों का डटकर मुकाबला कर सकूं….उसका लिया गया.. ‌

“एक फैसला आत्मसम्मान के लिए” जो मुझे आज यहां तक पहुंचा पाया ….माँ का प्यार मुझे चलने बढ़ने की प्रेरणा देता ।उसकी मुस्कान में हर समस्या का हल छिपा रहता वह मुझे बुरी चीजों से बचाती सच्चाई ईमानदारी की राह चलना सिखाती और धीरे-धीरे मैं…

 “ घुटनों से रेंगती- रेंगती अपने पैरो पर खड़ी हो गई,माँ की ममता की छाँव में जाने कब बड़ी हो गई “!!

माँ का खुद्दारी से जीना अपना आत्मसम्मान बनाये रखना। बच्चों माँ के प्यार को कभी खरीदा नहीं जा सकता। उसका प्रेम त्याग भावनाएं तो दिल में रहती है उन्हें शब्दों में पिरोया जाना कठिन है। उसके मार्गदर्शन ने मुझे अहसास कराया अप्रत्याशित भावनाओं को खुद पर हावी नहीं होने देना है और मार्ग में आने वाले बदलावों को स्वीकार करना है।

माँ की देखा-देखी मुझमें आत्मसम्मान की भावना पोषित होने लगी मैं भी अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने लगी । असत्य के साथ किसी तरह कि समझौता मुझे भी स्वीकार नहीं था।देह की वासना,मन की तृष्णा,अंह की क्षुद्रता को पैरों तले रौदते हुए मै अंतरात्मा की आवाज सुनने लगी मेरा आत्मविश्वास मेरा व्यक्तित्व चमकने लगा ।

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और मैं सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए खुद को तैयार करने लगी। मेरी मां का प्रोत्साहन मागदर्शन साथ रहा, भले ही आर्थिक मजबूरी बनी रही इंसान में हिम्मत और प्राप्त प्रोत्साहन उससे क्या नहीं करवा सकता …?

  मेरी मेहनत, लगन, निष्ठा ईमानदारी ने आज मुझे यहां तक पहुँचा दिया….. बच्चों यह संसार काहिलों के लिए नहीं है जो कर्म करेगा सफलता उसी के कदम चूमेगी…. हमेशा अपने आत्मसम्मान के लिए जीना यही व्यक्ति की पहचान गरिमा का हिस्सा है। यही हमारी संस्कृति, सभ्यता की रक्षा करता, । जय हिन्द जय भारत रेवती जी ने भाषण को विराम दिया।

     लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

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