सुबह होने ही वाली थी, कुछ देर बाद ही मेरी बेटी स्वीटी मुझसे जुदा हो जाएगी, क्योंकि उसकी आज शादी थी और कुछ ही देर में वह विदा होकर अपने मायके से ससुराल चली जाएगी, लेकिन मैं यह दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी। मैंने अपने आप को एक कमरे में जाकर बंद कर लिया और जोर-जोर से रोने लगी। मुझे आज भी वह दिन याद है जब हम पहली बार स्वीटी से मिले थे।
बात उन दिनों की है, जब मेरे पति सीआईएसएफ में नौकरी करते थे इनकी जॉब ट्रांसफरेबल थी और हर 3 साल बाद भारत के किसी न किसी शहर में इनका ट्रांसफर हो जाता था। उस समय हम देश की राजधानी दिल्ली में रहते थे, लेकिन कुछ ही दिनों बाद हमें दिल्ली छोड़कर जयपुर जाना था। क्योंकि मेरे पति का ट्रांसफर वहीं पर हो गया था । कितना मुश्किल है एक बसी बसाई दुनिया को उजाड़ कर फिर से एक नई दुनिया बसाना। ऐसा लगता है कि हम बंजारों की जिंदगी जीते थे हमारा कोई स्थाई ठिकाना ही नहीं फिर से एक नया शहर नए दोस्त और नए पड़ोसी। यह आसान नहीं है लेकिन यह सत्य है और इसे स्वीकारना भी पड़ेगा।
इस फेरबदल में सबसे ज्यादा कष्ट अगर किसी को होता है तो वह है मेरा बेटा आशु जो कि आठवीं क्लास में पढ़ता था। नए शहर में उसका नए स्कूल मे एडमिशन कराना। नई जगह पर उसको सेट करना कितना मुश्किल था। उसे भी वहां नए दोस्त बनाने पड़ते थे। लोग कहते थे कि तुम्हारे पति सरकारी नौकरी करते हैं तुम्हारी तो बल्ले-बल्ले है लेकिन मैं कहती हूं काश मेरे पति प्राइवेट नौकरी करते और हम एक जगह कम से कम पूरी जिंदगी इकट्ठा तो रहते।
विनय (मेरे पति) ने ऑफिस से 2 दिन की छुट्टी लिया था जयपुर में जाकर अपना आशियाना भी ढूंढना था हम लोग जयपुर आकर ऑनलाइन एक सोशल वेबसाइट से किराए के लिए घर ढूंढा। जब उस वेबसाइट से फोन पर बात किया तो पता चला वह किसी प्रॉपर्टी डीलर का नंबर है और वह किराए पर घर देता है। हम लोगों ने उससे मीटिंग फिक्स कर ली और उसके ऑफिस में जाकर उससे बात किया और हमने कहा कि हमें ऐसा घर दिला दो। जहां शोरगुल कम होता हो किराया थोड़ा ज्यादा भी हो तो चलेगा लेकिन हम शांति पसंद लोग हैं।
प्रॉपर्टी डीलर ने कहा, “ऐसा एक घर मेरी नजर में तो है, उनको भी ऐसे ही लोग चाहिए जिनका परिवार बहुत छोटा हो और आप लोग भी बता रहे हैं कि आपके परिवार में सिर्फ तीन ही लोग हैं ,प और आपका एक बेटा, मैं उनसे बात करता हूं अगर वह किराए पर अपना फ्लैट देने के लिए राजी हो जाते हैं तो मैं आपकी बात करा देता हूं।”
प्रॉपर्टी डीलर, बाहर जाकर उनसे फोन पर बात किया और आकर कहा वह तैयार हैं , आपको अपना फ्लैट देने के लिए ऐसा कीजिए आप अपना आईडी प्रूफ मुझे दे दीजिए और 2 महीने का एडवांस और 1 महीने का किराया मुझे कमीशन के तौर पर देना पड़ेगा। हमने बोला कि चलो ठीक है हम तैयार हैं देने के लिए लेकिन इससे पहले हम एक बार घर देखना चाहते हैं प्रॉपर्टी डीलर अपने कार से हमें घर दिखाने के लिए चल दिया हम घर देख कर आए हमें घर पसंद आया और उसी वक्त हमने अपने घर की चाबी भी ले ली।
कुछ दिनों बाद ही हम पूरे साजों सामान के साथ अपने घर में यानी कि किराए के घर में दाखिल हो चुके थे। दिन में तो हमने खाना होटल से ही मंगा कर खा लिया था लेकिन शाम को हम अपने घर में खाना बनाना चाहते थे लेकिन हमें कुछ भी आईडिया नहीं था कि यहां आस-पास दुकान कहां है और सब्जी बाजार कहां है। विनय ने कहा कि नीचे जो मकान मालिक रहते हैं उनसे जाकर पता कर लो या अगर वह सब्जी खरीदने जाती है तो तुम भी चले जाओ उनके साथ सब्जी खरीद आओ। मैं तब तक किराने का सामान लेकर आ जाता हूं।
मैं जैसे ही नीचे आई तो दरवाजे पर 3 साल की सुंदर सी बच्ची बैठकर खेल रही थी मैंने पूछा कि तुम्हारे मम्मी पापा कहां है बच्ची ने कुछ नहीं बोला बस इशारों से उसने अपने हाथ अंदर कर दिया। मैं जैसे ही कमरे के अंदर दाखिल हुई तो वहां पर एक अंकल आंटी बैठे हुए थे। वो अचानक से मुझे देखकर थोड़ा सा सहम गए और खड़े हो गए मैंने उनको कहा अरे अंकल आंटी आप को तकलीफ देने की कोई जरूरत नहीं मेरा नाम ज्योति है और मैं ही आपकी नए किरायेदार हूं। तभी आंटी ने कहा बताओ बेटी क्या बात है। आओ बैठो, मैंने आंटी से पूछा आंटी आपसे छोटा सा काम है हम इस शहर में नए हैं और हमें कुछ भी यहां के आसपास का आईडिया नहीं है, मैंने सोचा कि क्यों ना आपसे ही पूछ लूँ आसपास कहां सब्जी बाजार लगता है? शाम हो गई है शाम को खाने का इंतजाम करना पड़ेगा। आंटी ने कहा, “बेटी, मुझे भी सब्जी खरीदने जाना है मैं तुम्हें आवाज लगा लूंगी।”
उसके बाद मैं ऊपर अपने फ्लैट में चली आई मैंने सोचा तब तक जो सामान घर में बिखरा पड़ा है उसको ही सजा लेती हूं अभी आधे घंटे ही हुए थे तभी नीचे से आंटी ने आवाज़ लगाई, ज्योति बेटी आ जाओ चलो चलते हैं।
मैंने घर से थैला लिया और नीचे आकर आंटी के साथ सब्जी खरीदने के लिए साथ में चल दिया। रास्ते में जाते हुए मैंने आंटी से पूछा, आंटी क्या आपके बेटा और बहू दोनों नौकरी करते हैं क्योंकि घर में तो सिर्फ आप ही दोनों हैं और वह छोटी सी बच्ची। इसके पहले आंटी मुझसे हंस-हंस के के बातें कर रही थी लेकिन मैंने जैसे ही उनके बेटे और बहू के बारे मे पूछा आंटी के चेहरे पर उदासी छा गई। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैंने कुछ गलत तो नहीं पूछ लिया लेकिन मैंने इसमें गलत भी क्या कहा मैंने तो सिर्फ उनके बेटे और बहू के बारे में पूछा था।
कुछ देर के बाद आंटी ने कहा बेटी हमारे घर में भी सिर्फ हम 3 लोग हैं, हमारी पोती स्वीटी और हम दोनों हमारे बेटे और बहू का 1 साल पहले ही एक कार एक्सीडेंट में मौत हो चुकी है। एक ही बेटा था मेरा बेटा और बहू के चले जाने के बाद सारे रिश्तेदारों ने भी हमसे अपना साथ छुड़ा लिया है उन्हें लगा कि उन्हें हमारी मदद करनी पड़ेगी। मेरे पति टीचर थे और उनको पेंशन मिलता है जिससे हम तीनों का गुजारा हो जाता है।
ज्योति बेटी, तुम लोग जिस कमरे में रहते हो उसमें मेरे बेटे और बहू रहा करते थे मैं अपनी जिंदगी में कभी नहीं सोची थी कि उसे किराए पर दूंगी लेकिन हमने सोचा अगर हम उसको किराए पर दे देंगे तो थोड़े पैसे जमा होते जाएंगे जो स्वीटी के बड़े होने पर काम आएगी क्योंकि वह जैसे जैसे बड़ी होती जाएगी उसके पढ़ाई के भी तो खर्चे आएंगे।
बात करते-करते हम कब सब्जी बाजार पहुंच गए थे हमें खुद भी पता नहीं चला। आंटी और मैंने सब्जी बाजार से सब्जी खरीदा और वापस आते हुए आंटी का थैला भी मैंने ले लिया था मैंने बोला कोई बात नहीं आंटी आप चलिए मैं लेकर चलती हूं।
जयपुर आने से पहले मन में कितना डर था कि नया शहर होगा न जाने कैसे पड़ोसी मिलेंगे लेकिन एक दिन में ही मां जैसी मकान मालकिन मिल गई थी उनके सानिध्य में ऐसा लग रहा था जैसे वह मेरी मां हो।
मेरे सास-ससुर भी बहुत पहले ही गुजर चुके थे इसीलिए ससुराल में अक्सर मुझे सास-ससुर की कमी खलती थी।
उस दिन के बाद से तो आंटी जैसी मेरी दुनिया ही हो गई विनय ऑफिस चले जाते थे और मेरा बेटा आशु जब स्कूल चला जाता था तो मैं भी अपना काम निपटा कर नीचे आंटी के पास आ जाती थी और आंटी के साथ बैठकर घंटों तक बातें करती थी।
कई दिन बीत गए थे मैंने कभी भी आंटी के पोती को बात करते हुए नहीं सुना था मैंने एक दिन आंटी से पूछ ही लिया आंटी स्वीटी कभी बोलती नहीं है। आंटी ने कहा हां बेटा स्वीटी बोलती नहीं है जब मेरे बेटे और बहू का कार एक्सीडेंट हुआ था उसमें स्वीटी भी थी और उसी एक्सीडेंट में इसकी आवाज चली गई जब से यह सिर्फ इशारों में बात करती है।
मुझे न्यूज़पेपर पढ़ने का बहुत ही शौक था मैं सुबह-सुबह न्यूज़पेपर जरूर पढ़ती थी। एक दिन मैं न्यूज़पेपर पढ़ रही थी तो न्यूज़पेपर के फर्स्ट पेज पर ही बड़ा सा विज्ञापन निकला हुआ था कि जयपुर शहर में पहली बार अमेरिका का एक डॉक्टर आ रहे हैं जो 1 सप्ताह तक जयपुर में ही रहेंगे। जो लोग गूंगे हैं या फिर जिनको बोलने में तकलीफ होती है वह उन्हीं का इलाज करने में स्पेशलाइजेशन रखते हैं।
यह न्यूज़ पढ़ते ही मैं दौड़ते हुए नीचे आंटी के पास आई और यह विज्ञापन दिखाया और कहा आंटी क्यों ना हम लोग स्वीटी को भी इस डॉक्टर से दिखाते हैं क्या पता स्वीटी बोलने लगे। स्वीटी के दादाजी ने भी कहा कि हां स्वीटी के दादी, ज्योति ठीक कह रही है हम फोन करके अपॉइंटमेंट बुक कर देते हैं हम स्वीटी को जाकर जरूर दिखाएंगे।
मैंने फोन करके स्वीटी के लिए अपॉइंटमेंट बुक कर दिया था और अंकल-आंटी से यह भी कहा था कि मैं भी आप लोगों के साथ चलूंगी।
अपॉइंटमेंट वाले दिन में अंकल-आंटी और स्वीटी को लेकर डॉक्टर से मिलने के लिए उसके क्लीनिक पहुँच चुकी थी। डॉक्टर ने जांच करने के बाद कहां कि यह बचपन से गूंगी नहीं है और जो लोग बचपन से गूंगे नहीं होते हैं उनको बोलने की संभावना ज्यादा होती है बस इसके लिए एक छोटा सा सर्जरी करना पड़ेगा और उसके बाद रोजाना कुछ एक्सरसाइज बताऊंगा वह करना पड़ेगा इसके लिए लगभग एक लाख खर्च करने पड़ेंगे।
अंकल आंटी इस बात के लिए तैयार हो गए उन्होंने कहा कोई बात नहीं अगर एक लाख खर्च करने से हमारी पोती की आवाज वापस आ जाएगी तो इससे बड़ी बात क्या है।
अगले दिन ही स्वीटी की सर्जरी हो गई और उसके 1 सप्ताह बाद वह घर वापस आ गई। अगले दिन से मैं स्वीटी की को एक्सरसाइज भी करा रही थी जैसा डॉक्टर ने बताया था।
धीरे-धीरे अंकल आंटी के साथ हमारी दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि हमें पता ही नहीं चलता था कि अंकल आंटी किसी दूसरे परिवार के हैं ऐसा लगता था वह दोनों ही हमारे परिवार के अंग हैं।
एक बार आंटी बीमार हो गई नीचे आई तो देखा कि अंकल खाना बना रहे हैं मैंने अंकल को बहुत डांटा और बोला अंकल आपने मुझसे क्यों नहीं कहा मैं खाना बनाकर पहुंचा जाती। क्या आप लोगों को मेरे पर इतना भी अधिकार नहीं है। कहने को तो आप मुझे बेटी कहते हैं लेकिन बेटी का अधिकार नहीं देते हैं उस दिन तो मैंने खाना अंकल के यहां ही बना दिया लेकिन मैंने साफ मना कर दिया कि आज के बाद आप तीनों का खाना मेरे यहां बनेगा फिर क्या था अब रोजाना अंकल आंटी और स्वीटी का खाना मैं ही बनाने लगी।
अगले महीने जब किराया देने की बारी आया तो अंकल किराया लेने से मना कर दिया उन्होंने बोला बेटी तुम हमसे कोई खाने का खर्चा भी नहीं लेती हो और पूरे महीने खिलाती हो हम किस मुंह से किराया लेंगे। मैंने कहा नहीं अंकल किराया तो आपको लेना पड़ेगा मैंने कहा एक तरफ तो कहती हो कि तुम हमारी बेटी हो और फिर हमें घर का किराया भी दोगी तो बेटी से भी कोई किराया लेता है क्या। आंटी ने कहा अरे नहीं बेटा तुम्हारा भी परिवार है ऐसा करती हूं कि तुम अगले महीने से सिर्फ आधा किराया देना।
एक दिन में सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर जा रही थी तभी आंटी के कमरे से आवाज आई मम्मी-मम्मी यह आवाज सुनकर मेरे खुशी का ठिकाना नहीं रहा अरे यह तो स्वीटी की आवाज है। मैं दौड़कर नीचे आई और स्वीटी को प्यार से गले लगाया और मैंने भी उसे कहा बेटा हां मैं तुम्हारी मां हूं। उसे मैंने जी भर के प्यार किया ऐसा लगा सचमुच में स्वीटी मेरी बेटी हो और वह भी मेरे गोद मैं बैठ गई थी इतने में अंकल-आंटी भी अपने कमरे से बाहर आ गए थे और वह भी बहुत खुश थे कि आखिर मेरा परिश्रम रंग लाया और स्वीटी ने बोलना शुरू कर दिया था।
वक्त बीतता गया मेरा बेटा आशु और स्वीटी में भी भाई-बहन का रिश्ता हो गया था मेरा बेटा भी स्वीटी को अपनी बहन की तरह प्यार करता था और स्वीटी भी उसको भैया कहती थी मैं पहले कितना डरती थी कि नए शहर में आकर पता नहीं कैसे रहेंगे कैसे लोग मिलेंगे लेकिन यहां तो एक ऐसी दुनिया बन गई थी कि अब यह सोचकर मैं डर रही थी कि अगर यहां से ट्रांसफर हुआ तो कितना मुश्किल होगा इस रिश्ते को डोर को काटना।
बचपन से ही मुझे ब्यूटीशियन बनने का शौक था और अपना खुद का एक बड़ा सा ब्यूटी पार्लर खोलने का लेकिन कभी टाइम नहीं मिला कि मैं ब्यूटीशियन का कोर्स कर पाऊं शादी से पहले पढ़ाई करते रहे शादी के बाद बच्चे स्कूल परिवार में टाइम ही नहीं मिलता था।
लेकिन जयपुर में अंकल आंटी के साथ ऐसा रिश्ता जुड़ा कि मुझे अपने सास-ससुर की कमी अब महसूस नहीं होती थी जब मैंने अपने सपने के बारे में आंटी को बताया तो उन्होंने बताया कि तुम जाकर कोर्स ज्वाइन क्यों नहीं कर लेती हो हम तो घर में है ही बच्चों को देखभाल करने के लिए।
शाम को विनय जब घर पर आए तो मैंने उनसे इस बारे में बात किया विनय ने कहा क्या करोगी सीखकर तुम्हें तो पता ही है कि हर 3 साल बाद मेरी कहीं ना कहीं ट्रांसफर हो जाता है अब तुम अगर कहीं पर ब्यूटी पार्लर भी खोल लोगी तो क्या हर 3 साल बाद बंद करती रहोगी और फिर दूसरी जगह जाकर खोलोगी यह हमारे लिए संभव नहीं है।
मैंने कहा देखो विनय हम कब तक यूं ही बंजारों की तरफ भागते रहेंगे जब तक यहां पर तुम्हारी नौकरी है तब तक हम यहीं रहते हैं इसके बाद हम दिल्ली शिफ्ट हो जाएंगे वहां पर मेरा मायका भी है तो कोई दिक्कत नहीं है और वहीं पर मैं ब्यूटी पार्लर खोल दूंगी। जब ब्यूटी पार्लर अच्छा से चल जाएगा तो तुम भी अपनी नौकरी से रिजाइन कर देना और दोनों मिलकर इस बिजनेस को हम और बड़ा करेंगे।
विनय इस बात के लिए मान गए और अगले दिन से मैंने ब्यूटीशियन का कोर्स ज्वाइन कर लिया था।
जयपुर रहते-रहते कब 3 साल बीत गए हमें बिल्कुल ही पता नहीं चला, ब्यूटीशियन का कोर्स कंप्लीट हुए मुझे भी 1 साल से ज्यादा हो गया था मैं भी सोच रही थी कि इनका ट्रांसफर होगा तो हम लोग दिल्ली में शिफ्ट कर जाएंगे।
एक दिन शाम को विनय जब घर पर आए तो उन्होंने बताया कि उनका ट्रांसफर अहमदाबाद हो गया है। यह खबर सुनकर एक तरफ जहां मन में खुशी हुई कि चलो अब अपना पार्लर खोलेंगे तो दूसरी तरफ दुख भी हो रहा था क्योंकि अंकल आंटी और स्वीटी के साथ जो रिश्ता बन गया था वह रिश्ता कैसे एक पल में तोड़ देंगे यह आसान नहीं था अगर मेरा बस चलता तो मैं स्वीटी को अपने साथ ही ले जाती और अंकल आंटी को भी लेकिन हम यह कैसे कह सकते थे कि आप हमारे साथ चलिए। स्वीटी से मेरा लगाव इतना हो गया था कि मुझे लगता ही नहीं था कि वह मेरी बेटी नहीं है।
मुझे तो समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे अंकल आंटी से कहूं कि हम लोग अब यहां से जाने वाले हैं लेकिन यह भी सच्चाई थी बताना पड़ेगा ही। अगले दिन आंटी ने जब मुझे देखा तो कहा, “क्या हो गया बेटी तुम इतना परेशान क्यों हो तुम्हारे चेहरे पर परेशानी साफ दिखाई दे रही है।” मैंने अपनी घबराहट छुपाते हुए कहा, “नहीं आंटी ऐसी कुछ बात नहीं है। आंटी ने कहा, “ज्योति एक तरफ तो तुम हमें अपने सास-ससुर मानती हो और हमसे बातें भी छुपाती हो। बोलो क्या बात है। ” मैंने धीरे से आंटी से यह बात बताई कि हमारा ट्रांसफर हो गया है और हम कुछ दिनों बाद ही यहां से दिल्ली चले जाएंगे लेकिन आप लोगों को छोड़कर जाने का भी दिल नहीं कर रहा है आप लोगों से ऐसा रिश्ता जुड़ा है कि समझ नहीं आता है क्या करें।
यह बात सुनकर आंटी के चेहरे पर भी घबराहट साफ देखा जा सकता था।
आंटी ने कहा, सच में ज्योति या मजाक कर रही हो”
“नहीं आंटी सच में”
आंटी ने कहा, कोई ना बेटा वहां जाकर हमें भूलना नहीं हमें फोन करते रहना।
उसी दिन दोपहर में मैं खाना बना रही थी तभी अंकल और आंटी दोनों आए और बोले, ” ज्योति तुमसे एक बात करनी है।” मैंने अंकल आंटी को बैठने के लिए कहा और उनके साथ बैठ गई मैंने कहा, “बोलिए अंकल क्या बात कहना है मुझे बुला लेते मैं आ जाती नीचे।
” नहीं बेटी कोई बात नहीं हम आ गए तो क्या हो गया।”
बेटी तुमसे एक बात करनी है हम कहना तो नहीं चाहते हैं लेकिन तुम हमें जब इतना प्यार करती हो और स्वीटी से भी प्यार करती हो तो हमने भी काफी सोच-विचार कर सोचा एक बार तुमसे बात करते हैं।
आंटी ने कहा, “बेटी तुम्हें तो पता ही है कि हम दोनों बूढ़े हो गए हैं, स्वीटी अभी सिर्फ 5 साल की ही हुई है स्वीटी का हमारे अलावा कोई नहीं है स्वीटी के नाना-नानी भी नहीं है उसके मामा-मामी है तो वह तो कभी फोन भी नहीं करते हैं स्वीटी से मिलना तो दूर की बात है। तुमसे ज्यादा करीबी रिश्ते वाला अभी हमारे पास तो कोई नहीं है। हम यही सोचकर घबरा रहे हैं कि हम दोनों के बाद स्वीटी का क्या होगा। बेटी अगर तुम्हें बुरा ना माने तो स्वीटी को अपने साथ रख लो स्वीटी का जो भी खर्चा है हम तुम्हें भेजा करेंगे। बेटी बहुत मेहरबानी होगी स्वीटी भी तुम्हें अपनी मां ही समझती है बस इतना सा एहसान कर दो। अंकल-आंटी आप कैसे बात करते हैं स्वीटी को मैंने भी अपने बेटी की तरह प्यार किया है और मेरे लिए बहुत खुशी की बात होगी कि स्वीटी मेरे साथ रहे लेकिन एक बार फिर भी मैं शाम को विनय से बात कर लूंगी। फिर आप लोगों को बताऊंगी।
शाम को विनय जब घर पर आए तो मैंने अंकल-आंटी वाली बात विनय से बताया विनय ने कहा कि मुझे कोई एतराज नहीं अगर तुम स्वीटी को अपने साथ रखना चाहती हो तो लेकिन अंकल आंटी कैसे रहेंगे स्वीटी के बिना, मैं तो कहता हूं कि अंकल-आंटी से बोलो किवो भी हमारे साथ ही रहें तुम्हारे लिए भी एक सहारा हो जाएगा आखिर वो लोग भी तो यहां अकेले ही रहते हैं यहां का घर किसी को किराए पर दे दे।
उसी समय मैं नीचे आई और अंकल-आंटी से कहा आंटी विनय तैयार हैं स्वीटी को हमारे साथ रखने के लिए लेकिन हमारी एक और शर्त है कि आप लोगों को भी हमारे साथ ही रहना पड़ेगा क्योंकि हम अब आपको अकेले नहीं छोड़ सकते हैं। आप कहते हैं ना कि मैं आपकी बेटी हूं तो अब आपको अपने बेटी और बेटे के साथ ही रहना पड़ेगा।
अंकल आंटी भी इस बात को इनकार नहीं कर पाए और कुछ दिनों बाद ही अंकल आंटी भी जयपुर छोड़ हमारे साथ दिल्ली आ गए और आज हम दिल्ली में खुशी खुशी एक साथ ही रहते हैं हमें कभी भी एहसास नहीं होता है कि अंकल आंटी मेरे सास-ससुर नहीं है।
कुछ देर बाद ही मेरे दरवाजे पर अंकल-आंटी की आवाज आई ज्योति बेटी जल्दी से आओ विदाई की घड़ी नजदीक आने वाली है ऐसे करोगी तो कैसे काम चलेगा यह तो एक सत्य है बेटियों को तो अपने घर जाना ही होता है।
स्वीटी भी आ गई थी वह मुझे गले लगाकर रो रही थी और रोते हुये कह रही थी। मुझे अपने माँ पापा का चेहरा तो नहीं याद लेकिन वो बिलकुल आपके जैसे ही होंगे। काश आपके जैसी माँ हर बेटी को मिले।