“ये क्या कर रही है सरला….तू पागल तो नहीं हो गई….और तू सुधीर उसे समझाने के बजाय उसी का साथ दे रहा है…अरे कन्यादान करना बेटी के माता पिता का काम होता है,
भला किसी सास ससुर को अपनी बहू का कन्यादान करते हुए देखा है कहीं तुमने…जो चले तुम दोनों मधु का कन्यादान करने….अरे जब यहां मधु के मम्मी पापा भी आए है तो उन्हें करने दो…आप उनसे कहोगी तो मना थोड़े ही कर देंगे….” सरला की बुआ सास ने सरला और उसके पति सुधीर से गुस्सा होते हुए कहा।
“मना तो नहीं करेंगे वो….लेकिन उन्होंने तो अपना ये फर्ज तो उसी दिन पूरा कर दिया था जब मेरे बेटे विनय से विवाह किया था….अब तो इसकी जिम्मेदारी हमारी है क्योंकि यह हमारी बहू है जिसे हम ये कहकर लाए थे कि ये हमारी बेटी जैसी है….
अब भगवान ने हमसे हमारा बेटा छीन लिया तो फिर बहू क्या बेटी ही हो गई इसलिए अब ये फर्ज हम पूरा करेंगे.. ” कहते हुए सरला अपने दिल में बेटे के गम को छुपाए अपने कमरे में चली गईं और विनय की तस्वीर को हाथ में ले बीती बातों को याद कर रो पड़ीं…
विनय का विवाह 6 वर्ष पूर्व सुधा के साथ हुआ था फिर भी वह उन्हें दादी बनने का सुख न दे सकी तब विनय पर उन्होंने दूसरी शादी का दबाव बनाया…
“बेटा, तू दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेता….तू क्या ये चाहता है कि मैं पोते का मुंह देखे बिना भगवान के पास चली जाऊं….”
“क्या मां, आप रोज रोज एक ही बात ले बैठती हो….एक बार मना कर दिया न मैंने कि मैं दूसरी शादी नहीं करूंगा….सुधा से मै बहुत प्यार करता हूं और उसकी जगह मैं किसी को नहीं दे सकता….यदि संतान सुख भाग्य में होगा तो इसी से मिल जाएगा नहीं तो रहने दो….और यदि आप चाहो तो क्यों न एक बच्चा गोद ले लें …. लेकिन अब आप मुझसे बार बार ये दूसरी शादी वाली बात मत करना….”
“पागल हो गया है तू…. बच्चा गोद ले लें….अरे अपना खून अपना होता है….अच्छा तू ही बता कि व्यक्ति विवाह क्यों करता है?… जिससे उसके परिवार का वंश आगे बढ़ सके….अब जब वह यही नहीं कर सकती तो क्या फायदा हुआ ऐसे विवाह से….”
” और यदि कोई कमी मुझमें होती तो….तो क्या आप सुधा का दूसरा विवाह करवा देतीं…..” विनय ने अपनी मां की बात को काटते हुए गुस्से से कहा और बिना कुछ सुने वहां से चला गया।
इसके बाद भी सरला जी नहीं मानी और फिर विनय को दूसरी शादी के लिए राजी करने की जिम्मेदारी उन्होंने सुधा के ऊपर डाल दी जिसके लिए उन्होंने सुधा को बहुत परेशान किया….उन्हें ये तक अहसास नहीं रहा कि सुधा के दिल पर अपने पति को दूसरी शादी के लिए मनाते हुए क्या बीतेगी… वो जानती थी कि सुधा की इस घर में रहना मजबूरी है क्योंकि वो चाहकर भी वहां से जा नहीं सकती थी
क्योंकि उसके माता पिता तो उसके विवाह के बाद ही भगवान को प्यारे हो गए इसलिए उसने विनय को किसी भी तरह अपने प्यार का वास्ता दे दूसरी शादी मधु से करने के लिए राजी कर लिया और फिर 2 साल पहले विनय का विवाह मधु से हो गया….लेकिन सुधा अब भी यहीं रहती थी और इसी शर्त के साथ विनय ने दूसरा विवाह किया था…
लेकिन होनी को कौन टाल सकता है मधु के विवाह के 6 माह बाद ही एक सड़क दुर्घटना में विनय चल बसा….आज जो दुखों का पहाड़ परिवार पर गिरा उसमें मधु बेचारी की तो सारी दुनिया ही उजड़ गई।
मधु ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि जिसके साथ वह सारी जिंदगी जीने के सपने देख इस घर में ब्याह के आई है वह उसे 6 माह में ही अकेला छोड़ भगवान के पास चला जायेगा….
सारे क्रिया कर्म होने के बाद मधु से उसके माता पिता ने अपने साथ चलने को कहा तो सरला जी ने ये कहकर रोक लिया कि यह भी मेरी बेटी जैसी है और विवाह के बाद इसका यही घर है क्योंकि आप तो इसका कन्यादान कर चुके हैं परन्तु इसकी खुशी के लिए आप जो फैसला लेना चाहें वो हमें भी मंजूर होंगे लेकिन अब जो भी मां बाप के फर्ज होंगे वो हम पूरा करेंगे…..
मधु जिसके आगे सारी जिंदगी पड़ी थी उसे देख सरला जी का दिल विनय की बातों को याद कर चीत्कार कर उठता कि अगर कमी विनय में होती तो क्या वह सुधा का दूसरा विवाह करा देती….
आज विनय की सोच का मान रखते हुए ही उसकी मृत्यु के डेढ़ साल बाद वह मधु का दूसरा विवाह अपनी बहन के बेटे से करवा रहीं थीं…शायद अपने कर्मों का प्रायश्चित कर रहीं थीं।
शब्द – “प्रायश्चित”
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’