दिल से दिल का रिश्ता – गरिमा जैन

मैंने झटपट खाना खाया और  बचा हुआ  खाना फ्रिज में रखा और तुरंत ऑफिस के लिए निकल पड़ी। किचन के दरवाजे पर ही दादी से मुलाकात हो गई ।उन्हें जल्दी से गुड मॉर्निंग विश की और उनके गले से जोर से लिपट गई ।दादी ने कहा बेटा तू बासी खाना खाकर जा रही है और आ कर भी क्या रात में यही बासी खाना खाएगी? इसे किसी को दे क्यों नहीं देती फिर बासी खाएगी और शनि खराब करेगी।

अरे दादी बहुत महंगाई है ।अब वह पहले वाला जमाना नहीं रहा। आज तो आदमी अपने कमाए एक एक रुपए गिन गिन के खर्च करता है ।दादी भी झट से बोली हां और उसके बाद पांच सौ की कॉफी पीके उसे बर्बाद भी कर देता है ।

       अफ्फो दादी तुम्हें कोई नहीं समझा सकता ।मैने उनके माथे पर चुंबन लिया और जल्दी से अपनी टैक्सी बुकिंग की। आज पानी बहुत तेज बरस रहा था ।काफी ट्रैफिक जाम भी था। टैक्सी वाले ने रेडियो बजा रखा था ।एक पॉडकास्ट  चल रहा था जिसमें बड़ी सुरीली आवाज में एक रेडियो जॉकी कहानी सुना रही थी ।कहानी ईरान की थी। सालों पहले जब फ्रिज नया-नया आया था बात तब की थी। आज सुबह ही दादी से फ्रिज की ही बात हुई थी तो वह कहानी मैं बड़े ध्यान से  सुनने लगी ।

कहानी ईरान की थी जब नया नया फ्रिज आया था ।लोगों ने आसान किस्तों पर हर घर में लगभग फ्रिज लिया था लेकिन लगभग 2 साल के बाद ही सब ने बहुत सस्ते दामों पर वह फ्रिज भेज दिए और साल भर के अंदर आलम यह था कि ईरान के उस गांव में किसी घर में भी फ्रिज नहीं था और यह बात तब खुली जब बाहर से रिश्तेदारों उनसे मिलने आए और ठंडे पानी की मांग की ।

तब लोगों ने बताया कि उन्होंने तो फ्रिज सस्ते दामों पर बेच दी है ।उनके रिश्तेदारों को बड़ी असुविधा हुई उन्होंने झट से पूछा कि वह अपना बचा हुआ खाना क्या करते हैं? ईरान के लोगों ने बताया कि वह उतना ही बनाते हैं जितना जरूरी हो और अगर फिर भी बचता है तो वह अपने गांव के चौराहों पर जाते हैं और कोई भी अगर भूखा बैठा हो तो उसे खाना देते हैं  । उनके रिश्तेदारों ने कहा अरे यह जो बड़ी बेवकूफी की बात है इतनी मेहनत से कमाए हुए पैसे का खाना तुम लोग यूं ही दूसरों को दे देते हो ।तब ईरान के लोगों ने दिल जीतने वाली बात कह दी ।उन्होंने कहा यही तो दिल का दिल से रिश्ता होता है।जब फ्रिज हमारे घर में नहीं थे तब खाना कम बनाया जाता था और बचा हुआ खाना हम जरूरतमंदों को देते थे ।कहते हैं तब गांव में कोई भी भूखा नहीं सोता था ।सब पेट भर खाते थे और बचा हुआ खाना जरूरतमंद को दे कर उसकी भी भूख मिटाते थे ।पर जब से यह घरों में आ गया हम बासी बासी खाना खाने लगे जिससे हमारी सेहत तो खराब हुई गांव में जरूरतमंद लोगों को खाना नहीं मिला जिसे अक्सर वे सारे भूखे ही सो जाया करते थे । ईरान की यह  कहानी तो खत्म हो गई लेकिन मेरे अंदर मन में अंतर्द्वंद चलने लगा। दादी की कही बात  बार-बार याद आती। उसके बाद मैंने उसी दिन निश्चय किया कि मैं भी दिल से दिल का रिश्ता जरूर बनाऊंगी ।मेरे आस-पास जो गरीब लोग हैं शायद रात को भूखे सोते हैं ! मैं कोशिश करूंगी कि खाना उतना ही बनाऊं जितनी जरूरत है और अगर बचे तो मेरे आस-पास कोई भी भूखा ना सोए।

#दिल_का_रिश्ता

गरिमा जैन 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!