दिखावे कि ज़िंदगी – शीतल भार्गव : Moral Stories in Hindi

# दिखावे की जिंदगी # रमेश और सुरेश दोनों बचपन के दोस्त थे , जो एक ही गाँव में पले-बड़े थे । दोनों के सपने बहुत बड़े थे, लेकिन रास्ते बिल्कुल अलग थे ।

रमेश हमेशा से ही मेहनत और ईमानदारी में विश्वास रखता था । उसकी एक छोटी सी दुकान थी जिसे उसने धीरे-धीरे बढ़ाया और अपने परिवार के लिए एक स्थिर जीवन बनाया

दूसरी और सुरेश को हमेशा से ही दिखावे का शौक था । महँगी गाड़ियाँ , बड़े घर और ब्राण्डेड कपड़े पसंद थे ।गाँव छोड़कर शहर आने के बाद सुरेश ने ऐसे दोस्त बना लिये

जो उसकी तरह ही दिखावे की जिंदगी जीना पसंद करते थे ।वे अक्सर महँगी पार्टियों में जाते सोशल मीडिया पर अपनी शानदार जीवनशैल तसवीरे डालते और लोगों को अपनी सम्पत्ति और सफलता से

प्रभावित करने की कोशिश करते । सुरेश को यह सब बहुत अच्छा लगता था ,उसे लगता था कि वह बहुत अच्छी तरह से अपनी जिंदगी में आगे बड़ रहा है । धीरे-धीरे सुरेश इस दिखावे की दौड़ में इतना खो गया

कि उसने अपनी असलियत और अपनी जड़ो को भी भुला दिया ।उसनेअपनी बचत का अधिकतर हिस्सा महँगी चीजें ख़रीदने और अपनी झूठी शान और शौकत दिखाने में उड़ा दिया ।

वह अक्सर अब क़र्ज़ में डूबा रहता था, लेकिन फिर भी अपनी झूठी दिखावे की जीवन शैली को बनाये रखने के लिए हर वक्त एक नया झूटबोलता ही रहता था। एक दिन रमेश सुरेश से मिलने शहर आया ,

वह सुरेश की आलीशान जीवनशैली को देखकर हैरान रह गया , लेकिन उसे यह भी अहसास हो गया कि सुरेश अंदर से खुश नहीं है । रमेश ने सुरेश से बात करने की कोशिश की और उसे समझाया कि

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असली ख़ुशी दिखावे में नहीं बल्कि सच्चे रिश्ते और संतोष में है । सुरेश को रमेश की बाते सुनकर थोड़ा सा अहसास तो हुआ , दिखावे का नशा उस पर इतना हावी था कि वह तुरंत बदलने को तैयार नहीं हुआ ।

कुछ महीने बाद सुरेश को एक बड़ा झटका लगा, उसका कारोबार बुरी तरह से डूब गया और सारे पैसे ख़त्म हो गए और जिनसे उसने इतना कर्जा ले रखा था वो भी उसे धमकाने लगे।

उसके दिखावटी दोस्त भी उससे किनारा कर गये । उस मुश्किल वक्त में सिर्फ रमेश ही उसके साथ खड़ा था। रमेश ने ऐसे मुश्किल हालातों में सुरेश का साथ दिया

जब कोई भी उसका साथ देने को तैयार नहीं था जिन लोगों ने सिर्फ पेसो की ख़ातिर सुरेश से दोस्ती कर रखी थी बुरे वक्त में सबने उससे किनारा कर लिया ।

अब सिर्फ रमेश ही उसके साथ खड़ा था , धीरे-धीरे हालातों में सुधार होने लगा और सुरेश को भी यह बात समझ आ गई कि सब पैसों के लिए ही उसके साथ थे

उसे दिखावे की जिंदगी से नफरत हो गई और वह रमेश की ही तरह सुकून की जिंदगी जीने लगा अब जाकर उसे सच्ची ख़ुशी मिली उसे समझ आ गया

की असली ख़ुशी तो सच्चे रिश्तों और संतोष में ही है । ।

शीतल भार्गव जिला बारा राजस्थान

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