दतिया का  डरावना  घर – सुषमा यादव

इनकी पहली पोस्टिंग दतिया जिले में हुई थी,, इन्होंने एक अच्छा सा मकान लिया और मुझे बुलाने आ गये,उस समय मैं म . प्र. के एक और जिले में नौकरी कर रही थी,, मैं बहुत खुश होकर मेडिकल अवकाश पर इनके साथ
दतिया में उस नये मकान में रहने पहुंची,,घर बहुत अच्छा था, मुझे बहुत पसंद आया,

मैंने बड़े मनोयोग से उसे सजाया,, कुछ दिनों तक हम आराम से रहे, बाद में इन्हें सरकारी दौरे पर भिंड मुरैना जाना पड़ा,,रात में मैं जब सोने लगी तो मुझे एक अलग सा कुछ अहसास हुआ,जो डरावना था, वैसे मैं बचपन से ही अकेले अपने छोटे भाईयों के साथ ही रहती आई थी,

और आज़ तक कहीं भी अकेले ही रहतीं हूं, भूतों से डर तो लगता है,पर बस सुना ही था, कभी कुछ अनदेखा,अनचाहा महसूस नहीं किया,सब लोग आश्चर्य करते हैं कि कैसे मैं गांव और यहां अपने शहर में इतने बड़े घर में अकेली रहती हूं,,,पर उस मकान में मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था,

ऐसे लग रहा था कि मेरे सीने पर कोई बैठा है, बहुत भारी सा लगता,पर अपना वहम मानकर मैं आंखें खोलकर चारों तरफ देखती और फिर भगवान का नाम लेते गायत्री मंत्र जपते किसी तरह रात काटती, हम नये नये थे, किसी से कुछ कहते नहीं बन रहा था,

ये आये तो मैंने सब बताया तो बोले ऐसा कुछ नहीं है, बेकार में शंका करती हो,, लेकिन मैं देखती कि ये तो मुझे किसी तरह सुला देते हैं ,पर खुद बार बार उठते बैठते हैं, करवटें बदलते हैं, मैं पूछती तो कहते, कुछ नहीं, नींद नहीं आ रही है,


एक बार फिर ये मुझे समझा बुझाकर टूर पर चले गए, किसी तरह डरते डरते दिन बीता ,रात आई, फिर से वही अहसास,,अब तो सचमुच मैं डर गई, और सुबह जाकर मैंने अपने पड़ोसी आंटी से और मकान मालकिन से सब बताया तो दोनों मुझे टालती रहीं, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि वो कुछ छुपा रही हैं, मैंने आंटी से कहा,आप अपनी बेटी को मेरे पास रात को सोने के लिए भेज दीजिए,

मुझे बहुत डर लग रहा है,पर उन्होंने बहाना बना दिया, किसी तरह मैंने जागते हुए ही रात काटी और अपने पिता जी को सारी बात बताते हुए पत्र लिखा, बाबू जी ने प्रतिउत्तर में लिखा,,पूरे घर को गंगाजल से छिड़काव करके शुद्ध करो, जिसमें सोती हो, उसमें गायत्री मंत्र जपते हुए हवन यज्ञ करो, गीता पाठ करो, हनुमान चालीसा पाठ करो, जोर जोर से, और हनुमान जी की तस्वीर दरवाजे पर लगा दो,

और हाथ जोड़कर प्रार्थना करो कि आप जो कोई भी हो,हम आपको कोई तकलीफ़ नहीं देंगे, किसी बाबा,या तांत्रिक को नहीं बुलायेंगे, आप भी हमें आराम से बिना किसी परेशानी के रहने दें, आपके हम आभारी रहेंगे,हमारा सादर प्रणाम स्वीकार करिए, पूरी श्रद्धा और विश्वास से विनती करना और पूजा भी, पूर्ण निष्ठा आस्था से करना,,हम दोनों ने बहुत ही विधि विधान से पूजा पाठ हवन यज्ञ किया, और हाथ जोड़कर उस अजनबी अनजान से विनती किया,

आप शायद विश्वास नहीं करेंगे,उस रात हम दोनों बहुत आराम से भरपूर नींद सोये, ऐसा लग रहा था कि बरसों से नहीं सोये हैं,

कुछ दिनों बाद इन्होंने जब देखा कि मैं अब निश्चिंत हो कर आराम से सोती हूं तो एक दिन बोले,, एक बात बताऊं,, तुम्हें मैं समझा तो देता था,पर मैं भी जब सोने लगता तो ऐसा आभास होता कि मेरे सीने में कोई बैठा है और जोर जोर से धक्का मार रहा है, मेरी सांस घुटने लगती और मैं घबराकर उठ बैठता, जागने पर भी महसूस होता

कि मेरे सीने पर कोई भार सा है, मैंने तुम्हें नहीं बताया कि तुम बहुत डर जाओगी,पर बाबूजी ने बहुत अच्छा उपाय बता कर सब शांत करवा दिया,,

फिर तो ये कई बार बाहर टूर पर चले जाते और मैं अकेले ही रहती पर उसके बाद मुझे ऐसा कुछ भी नहीं लगा और हम लोग आराम से दो साल उस मकान में रहे, मेरी बड़ी बेटी ने वहीं पर अपने आने की आहट से हमें खुशियों से सराबोर कर दिया था,,


,,जब इनका ट्रान्सफर दतिया से मंदसौर हुआ और हम वहां से आने लगे तब हमारे पड़ोसी अंकल और आंटी हमसे मिलने आये और उन्होंने उस घर का रहस्योद्घाटन करते हुए कहा, हम सबको बहुत हैरानी हुई है कि आप इतने साल तक कैसे इस घर में रहे, इसमें तो कोई टिकता ही नहीं था, मैंने कहा, क्यों, ऐसा क्या है,इस घर में,, आंटी आंखें फ़ाड़ते हुए डरते डरते इधर उधर देख कर बोली,,इस कमरे में नीचे कड़ाहा चलता है, इसके नीचे किसी ने धन गाड़ कर रखा है,

कोई उसकी रखवाली करता है, और वो किसी को भी रहने नहीं देता, मैंने कहा, आपको कैसे पता, बोली, मकान मालिक ने बहुत ओझाई, झाड़ फूंक कराया है, उन्हीं लोगों ने बताया, और मकान मालिक ने इसे सच भी बताया है, इसीलिए तो वो आपके पास आते नहीं थे, सबको मालूम है, बहुत सालों से ये घर बंद पड़ा था,

,हम दोनों ने एक दूसरे को अचरज और अविश्वसनीय आंखों से देखा और उस अनजान आत्मा
का धन्यवाद आभार व्यक्त किया, घर की डेहरी को छूकर, स्थान देवताभ्यो नमः कहकर वहां से प्रस्थान किया,,
सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र,
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित,

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