दर्द समझने वाली बहू !-  मीनू झा

“तुम्हारा तो ये रोज का है” कोई कितना एडजस्ट करेगा रोहित…तुम जैसे पहले अपनी सारी डेली रूटीन फ़ॉलो कर रहे थे वैसे अभी भी कर रहे हो क्या ये सही है?? अरे मम्मी पापा आएं हैं तुम्हारे,उनके प्रति भी तुम्हारा कोई फर्ज बनता है कि नहीं.. उन्हें समय देना बनता है ना तुम्हारा मुझे तुम पर भरोसा है मोनिका तुम उनका भरपूर ध्यान रखा रही हो…और जहां तक मेरी बात है तो मैं तो शुरू से ऐसा ही रहा हूं उनके आगे,उन्हें पता है कि मेरी उनके पास बैठ कर लंबी लंबी बातें करने की आदत कभी नहीं रही,समय कहां है मेरे पास वैसे भी? पहले और अब में अंतर है रोहित..पहले तुम कुंवारे थे अब तुम शादीशुदा हो…मानती हूं कि मेरी पूरी कोशिश रहती है कि उन्हें किसी चीज की कमी ना हो वक्त पर सबकुछ मिल जाए…पर मुझे आए हुए छह महीने भी नहीं हुए हैं

रोहित…अभी वो इतना खुले नहीं मुझसे कि अपनी हर बात बेझिझक शेयर कर पाएं..वैसे भी हमारा रिश्ता ऐसा है कि बहुत सोचना समझना पड़ता है दोनों पक्षों को कुछ भी बोलने से पहले।और रही समय की बात तो समय निकालना पड़ता है रोहित..उनके लिए नहीं निकालेंगे तो किसके लिए निकालेंगे ?? मेरे मम्मी पापा इतने दकियानूसी विचारों के नहीं हैं मोनिका…और तुम भी क्या ये सब बातें लेकर बैठ गई… पंद्रह दिनों के लिए ही तो आए हैं वो..चलने दो ना जैसे चल रहा है सब! पंद्रह दिनों के लिए आएं हैं इसलिए तो कह रही हूं…थोड़ा समय उनके लिए भी निकालो रोहित..दफ्तर का समय तो चलो ठीक है पर तुम्हारा ये वाॅक, एक्सरसाइज,योगा और बैडमिंटन का शौक पंद्रह दिनों बाद भी पूरा हो सकता है..वो समय अगर तुम अपने मम्मी पापा को दोगे तो उन्हें सुख और सुकून का एहसास होगा।

अच्छा चलो…जल्दी से मेरा लंच पैक कर दो मैं ऑफिस के लिए निकलूंगा–कहकर रोहित वाॅशरूम घुस गया। रोहित और मोनिका की शादी को अभी छह महीने ही हुए थे..शादी के बाद हनीमून फिर उसके बाद माता पिता के पास आठ दिन रहकर दोनों नौकरी वाले शहर चले आए थे। बहू बेटे के पास कुछ वक्त गुजारने के उद्देश्य से रोहित के मम्मी पापा आए थे। मोनिका अपनी ओर से हर कोशिश करती की उन्हें किसी तरह की तकलीफ़ ना हो..पर रोहित जैसे था वैसे ही था..सुबह उठता वाॅक करने चला जाता..फिर उधर से ही जिम…लौटता तो ऑफिस जाने की हड़बड़ी रहती… वहां से आता तो चाय नाश्ता करके बैडमिंटन खेलने निकल जाता और उधर से लौटकर थोड़ी देर अपने कमरे में बैठकर टीवी देखता..हां डिनर पर वो डायनिंग टेबल पर सबके साथ होता… वही दस पंद्रह मिनट वो घरवालों को देता था..इस बात से मोनिका को चिढ़ होती..दो चार बार उसने घुमा फिरा कर कहा पर जब रोहित पर कोई असर नहीं हुआ तो आज उसने सीधे सीधे बोल दिया…पर उसे लग रहा था कि शायद रोहित कुछ समझने के ही मूड में नहीं है अपने माता पिता को फाॅर ग्रांटेड ले रहा है.. जबकि वो उससे बहुत उम्मीदें रखते हैं..।




और इस परिस्थिति से मोनिका के माता पिता भी गुजर चुके थे,जब उसके भाई के पास जाते तो उसका भी यही रवैया होता था, तो मोनिका को इस तरह के दर्द का अच्छी तरह पता था कि जब बेटा समय ना दे तो मां बाप को कैसा महसूस होता है। खैर जब बात सीधे सीधे ना बने तो थोड़ा उल्टा बनना पड़ता है। मोनिका…यार घर पर ताला लटका हुआ है… कहां हो तुम और मम्मी पापा कहां है..–ऑफिस से लौटे रोहित ने दरवाजे पर ताला देखकर मोनिका को फोन किया। अच्छा आप आ गए… दरअसल मम्मी पापा को यहां आए पांच दिन हो गए और वो घर में कैद से थे,

मम्मी जी का मन कुछ अजीब सा हो रहा था तो मैं उन्हें सेंट्रल पार्क में ले आई.. दोनों ताजी हवा में टहल रहे हैं और बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं..आप या तो वेट कर लो या फिर यहां आकर मुझसे चाबी ले जाओ–मोनिका ने सफाई दी। रोहित पार्क गया तो उसे वहां बैठे मम्मी पापा का चेहरा बड़ा तरोताजा और अच्छा लगा.. आपलोग यही रूकना… मैं अभी घर से कपड़े चेंज करके आता हूं–रोहित ने कहा। पर तुम्हारा बैडमिंटन गेम?? वो सब बाद में मैनेज कर लूंगा फिर रोहित उन सबको लेकर ना केवल अच्छी अच्छी जगह घुमा लाया.. बल्कि वो लोग बाहर डिनर करते हुए लौटे.. मम्मी पापा के साथ मोनिका भी प्रसन्नचित लग रही थी। दूसरे दिन सुबह की चाय रोहित ने ही बनाई और लेकर मम्मी पापा के कमरे में गया…तो देखा पापा अपने पैरों की मालिश में लगे हैं और मम्मी उनके चश्मे से पेपर पढ़ने की कोशिश कर रही है। दोनों के लिए रोहित का आना आश्चर्यजनक था..। टहलने नहीं गए बेटे—मम्मी ने पेपर साइड में रखते हुए पूछा नहीं मन नहीं किया…पापा को पैरों में दर्द है क्या?? अरे नहीं…रोज टहलने की आदत है ना और यहां बैठे बैठे आदत छूट गई थी तो कल थोड़ा ज्यादा चलना फिरना हो गया इसी वजह से–मम्मी ने बताया और आप…पापा का चश्मा क्यों लगा रहे हो??

वो इधर कुछ दिनों से आंख में तकलीफें आ रही है और नजदीक के अक्षर धुंधले दिखते हैं…अब यहां तो नहीं…वापस जाकर आंख दिखला लूंगी वहां चाय पीकर रोहित वहीं बैठा रहा और बातें करता रहा…उसे एहसास हुआ उससे करने के लिए मम्मी पापा के पास बहुत सारी बातें हैं जिसे वो जल्दी जल्दी कर लेना चाहते हैं..सोचकर कि शायद फिर बेटे के पास उन्हें देने को वक्त फिर हो ना हो। रोहित…आप ऑफिस के लिए लेट हो जाएंगे–मोनिका ने किचन से आकर कहा। डोंट वरी… मैंने दो दिन की छुट्टी के लिए कल रात ही मेल कर दिया था,उसके बाद सटरडे संडे छुट्टी ही होगी…तुम ब्रेकफास्ट लगाओ..सब इकट्ठे करेंगे ,फिर मम्मी पापा को लेकर डाक्टर के पास भी जाना है..उधर से लौटकर आसपास एक दो दिन के टूर का प्लान करते हैं—रोहित ने मुस्कुराते हुए कहा तो मोनिका की भी बांछें खिल उठी। अब तो नहीं कहोगी ना…”तुम्हारा तो ये रोज का है”–अकेले में रोहित ने पूछा। बिल्कुल नहीं..ये आपने बहुत अच्छा किया रोहित,मम्मी जी और पापाजी के चेहरे पर आत्मविश्वास और खुशी दोनों आ गई है आपने नोटिस किया? हां…पर इसमें सारा योगदान तुम्हारा है मोनिका..मेरे मम्मी पापा बहुत किस्मत वाले है जो उन्हें तुम्हारे जैसी बहू मिली जो दर्द बेटा ना समझ पाया बहू ने समझ लिया… हमेशा ऐसी ही रहना..लव यू—रोहित की आंखों में मोनिका के लिए बहुत प्यार उमड़ आया। स्वरचित एवं मौलिक 🙏

मीनू झा

# दर्द

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