दर्द की अधिकता ही दवा बन जाती है – लतिका श्रीवास्तव 

…..सारे समाचार पत्रों की सुर्खियों में थी वो आज…..मीडिया ने चटखारे लेते हुए उसके ऊपर लगे आरोपों को छापा  था….अचानक सबकी नजरों में वो निहायत घटिया भ्रष्ट कामचोर और फर्जी साबित हो गई थी…..उसके खासमखास भी उसके बारे में मनगढ़ंत फर्जी कहानियां यत्र यत्र सुना रहे थे मजे ले रहे थे ..!

शमिता के लिए ये सब  असहनीय होता जा रहा था दूर दूर तक कोई  आशा की किरण दिखाई नहीं दे रही थी….हताश क्लांत अपमानित छिन्न भिन्न सी वो बेगुनाह सरेआम गुनहगार बना दी गई थी ….इतनी मेहनत से बनाई उसकी छवि धूमिल हो चुकी थी ….ऐसे निकृष्ट बेबुनियाद ऑफिस स्टाफ केआरोपों से उसकी निष्कलंक आत्मा छटपटा उठी थी….तीन दिनों तक अपने घर से निकली ही नहीं किसी से कोई बात नहीं की रातों की नींद उड़ गई थी शमिता की…!

याद है उसे ऑफिस का पहला दिन…वो ऑफिस जो उसकी जिंदगी का ड्रीम था..

खुसुर फुसुर होने लगी थी उसके पहुंचते ही….उसकी योग्यता या काबिलियत के बारे में नहीं बल्कि शादी के कुछ महीनों बाद ही अपने पति से अलग हो जाने की !….उसकी कार्य क्षमता या ईमानदारी की नहीं बल्कि घर से अलग यहां अकेले रहने की !….

…….पहली बार कोई महिला अधिकारी उस बीस पुरुषों के स्टाफ में आई थी…सभी अपनी अपनी वफादारी और मैडम के  विश्वस्त होने की दावेदारियां बढ़ चढ़ कर प्रस्तुत कर रहे थे

..”मैडम आप तो आराम से घर में रहा करिए यहां आपको थोड़ा अजीब सा लगेगा हम सब जेंट्स हैं….वैसे भी ऐसा कोई काम वाम भी नहीं रहता है करने के लिए जिसे यहीं बैठ कर किया जाए जरूरी होने पर आपके घर फाइल आइल मैं लेकर आ जाऊंगा……”ऑफिस के बड़े बाबू और पूर्व ऑफिस इंचार्ज सदानंद जी ने अतिरिक्त विनम्रता और मधुरता घोलते हुए उससे कहा था।

शमिता जो विभागीय कठिन परीक्षा देकर इस ऑफिस की सबसे कम उम्र की हेड बन गई थी पूरे ऑफिस में एकमात्र महिला कर्मचारी वो भी सबकी अधिकारी …!..शमिता बुलंद इरादों वाली कर्मठ और सक्रिय अधिकारी थी वो नवीनता और विकास की पक्षधर थी।ईमानदारी उसकी रग रग में थी एक एक पैसे का भी हिसाब ना मिलने पर वो स्टाफ की गर्दन पकड़ लेती थी समय की सख्त पाबंद सबसे पहले ऑफिस पहुंच जाती थी देर से आने वाले स्टाफ का वेतन काट लेती थी..हर काम समय पर…कोई फाइल पेंडिंग नहीं होनी चाहिए…ज्यादा बातचीत करना उसके स्वभाव में नहीं था।



एक निहायत सच्ची नेकनीयत मजबूत इरादों वाली शमिता..!जिसकी सबसे बड़ी बुराई शायद उसका सच्चा और ईमानदार होना ही था या शायद महिला  अधिकारी होना था!!

ऑफिस स्टाफ इन नियम कायदों से बेतरह हलाकान था एक महिला का उन पर नकेल कसना सख्ती बरतना ….बिना काम किए ऊपर की कमाई करने की उनकी संजोई वर्षों पुरानी परम्परा को तहस नहस करना प्रतिदिन ऑफिस समय से आना इतना ज्यादा काम उन सबके लिए बहुत नागवार और अत्यधिक  पीड़ादायक होता जा रहा था…..!

एक दिन बड़े बाबू द्वारा चुपचाप दो हजार रिश्वत लेते पकड़ाए जाने पर शमिता ने बुरी तरह लताड़ा था…. उनको सार्वजनिक खरी खोटी सुनाना मानो धधकती अग्नि में कटोरा भर घी डालने जैसा हो गया था …सबको मौका मिल गया था……अपमान की आग से धधकते बड़े बाबू ने तत्क्षण संकल्प ले लिया था तीन दिनों के अंदर इस औरत को इस ऑफिस से निकाल बाहर करेंगे।

अभी वो ऑफिस से निकल कर घर तक पहुंची भी नहीं थी कि मोबाइल बज उठा था शमिता का…..

जैसे ही कान में लगाया ….मेडम शमिता आप अभी तुरंत ऑफिस पहुंच जाइए वरिष्ठ अधिकारी आए है…..मोबाइल बंद हो चुका था ।

..उसके ऑफिस में अचानक ….!जैसे तैसे ऑफिस पहुंची तो चपरासी ने बताया मैम आपके निकलते ही  पूरी टीम आ धमकी और तब से अभी तक सारी फाइल मंगवाने देखने की कवायद जारी है….!

शमिता को देखते ही वरिष्ठ अधिकारी अभ्यंकर जी ने तल्खी से कहा अच्छा आप ही हैं ऑफिस हेड आपके विरुद्ध मिली सारी शिकायतें सही साबित हो चुकी हैं लीजिए यहां साइन करिए…. आपको तुरंत बर्खास्त किया जाता है…..हक्की बक्की सी शमिता यंत्रवत साइन करती गई थी जहां भी वो कहते गए थे

मेरे विरुद्ध शिकायतें..!!बर्खास्त….!!क्या किया है मैंने कैसी शिकायतें..!!थोड़ी देर बाद थोड़ी सजगता आने पर उसने उन्हीं से पूछ लिया था सर कैसी शिकायतें..!!किसने की मैने क्या किया..!

अभ्यंकर जी शमिता के हाव भाव से कुछ नरम हुए और रजिस्टर्ड लेटर उसकी तरफ बढ़ा दिया…पूरे बीस स्टाफ  सदस्यों से हस्ताक्षरित वो शिकायती पत्र सीधे अभ्यंकर जी वरिष्ठ कार्यालय के नाम से ही था….



मानसिक प्रताड़ना स्टाफ के सदस्यों से अपशब्दों का प्रयोग… स्टाफ सदस्यों से अपना निजी कार्य करवाना….गलत बिल वाउचर्स पर जबरदस्ती साइन करवा कर ऑफिस की खरीदी कार्यो में लाखों का हेर फेर…..शमिता अपने विरुद्ध लगाए इन सरासर बेबुनियाद आरोपों को पढ़ ना सकी….दर्द की तेज लहर उसके सीने से उठी और चेहरे पर फेल गई थी…चपरासी श्याम ने जल्दी से  एक कुर्सी उसके नजदीक खींच कर बिठा ही दिया था।

आपको एक मौका अपनी सफाई प्रस्तुत करने के लिए दिया जाएगा तभी जो भी आपको कहना हो लिखना हो आप कर सकती हैं….उसकी स्थिति देख कर अभ्यंकर जी ने कहा और गाड़ी में बैठ कर चले गए।

कैसे घर जाए!रास्ते भर महसूस होता रहा मानो सारे आते जाते लोग रुक रुक कर उसे ही घूर रहे हैं…सबकी नजरों में उसके लिए उपहास और नफरत उफन रहा है….इन तीखी नजरों का सामना कैसे करे…!किसी को मुंह दिखाने लायक  ही नहीं हूं मैं…!

बुरी नीयत वालों को साथ देने वाले भी तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं…. रातों रात साजिश रच ली गई सबके हस्ताक्षर करवाकर मनचाहा करवा लिया गया…।पूरा स्टाफ आज जश्न मना रहा था बड़े बाबू की जय बुला रहा था ….साजिश कामयाब हो चुकी थी।

बेटा खामोशी से अन्याय सहना भी अन्याय करने के बराबर ही होता है….सच हमेशा सच ही रहता है….अगर हम सही हैं तो किसी से डरने या दबने की नहीं वरन हिम्मत से मुकाबला करने की जरूरत होती है….पापा की बातें कानों में गूंजने लगीं थीं…. मैंने तुम्हें लड़की मानकर कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया तुम्हें इसलिए इतना पढ़ाया लिखाया काबिल बनाया कि दूसरों के साथ न्याय कर सको अपने साथ अन्याय क्यों सहन कर रही हो!!क्योंकि तुम एक लड़की हो महिला हो!!गलत तुम नहीं गलत वो हैं जो तुम्हारे साथ असाधारण रूप से गलत कर रहे हैं..!

कहते हैं ना असहनीय दर्द ही असाधारण हिम्मत बन जाता है।

अचानक शमिता का सारा दर्द ही मानो उसकी ताकत बन गया …मैं गलत नहीं हूं  सही हूं……ये सिर्फ मैं ही जानती हूं…..सही को सही साबित करने की एक  पुरजोर कोशिश के  उमड़ते जुनून में उसका सारा अवसाद गायब सा हो गया उसने तुरंत  वरिष्ठ कार्यालय को एक पत्र लिखते हुए स्टाफ द्वारा  अपने साथ की गई भयंकर साजिश की निष्पक्ष जांच करवाने की अपील कर दी और स्टाफ सदस्यों का पिछले वर्षो का सारा कच्चा चिट्ठा एकत्र कर फाइल बनाने में जुट गई।

आज जांच कमेटी का निर्णय आ गया था…. महिला अधिकारी के विरुद्ध गलत इरादे से साजिश कर फंसाने के आरोप में पूरे स्टाफ का तत्काल निलंबन आदेश हो गया था ….।

 #दर्द

लतिका श्रीवास्तव 

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