साइकिल वाला डिलीवरी बॉय – रश्मि सिंह

यात्रीगण कृपया ध्यान दें गाड़ी नंबर 11546 यमुना एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर-1 पर आ रही है। आपकी यात्रा मंगलमय हो। धन्यवाद।

रोहित-मम्मी जल्दी चलो आपकी ट्रेन प्लेटफार्म नंबर-1 पर आएगी, हम ग़लत प्लेटफार्म पर खड़े है।

रोहित और सुशीला जी बैग उठाये तुरंत प्लेटफार्म नंबर एक पर आते है। रोहित अपनी मम्मी को उनकी सीट पर बैठाकर विदा लेता है।

सुशीला- बेटा बाहर का कुछ मत ख़ाना, पेट में एसिडिटी रहती है तुम्हें, और चाँदनी (सुशीला की की बेटी) से भी मत झगड़ना।

रोहित-ओके मॉम

रोहित घर आते ही गुनगुनाते हुए चाँदनी से कहता है आज  संडे है ज़ोमटो करने का डे है

चाँदनी- मम्मी को फ़ोन लगाऊ क्या? मम्मी ख़ाना बनाकर गई है कुछ बाहर से नहीं आएगा।

रोहित-अच्छा तेरा फेवरेट चाइनीज़ मंगवाऊँगा, तब तो चलेगा।

चाँदनी-अच्छा ठीक है पर ज़्यादा नहीं, बस मंचूरियन और चाऊमीन का कॉम्बो मंगा ले।

रोहित ऑर्डर कर देता है। दोनों बेसब्री से ऑर्डर का इंतज़ार करते है।

चाँदनी- ऑर्डर में टाइमिंग तो 15 मिनट की थी एक घंटा होने वाला है।




रोहित फ़ोन मिलाता है  पर डिलीवरी वाला फ़ोन नहीं उठाता है।

चाँदनी- अभी पड़ोस वाले भैया आ रहे होंगे अगर देख लेंगे डिलीवरी वाले को तो मम्मी को शिकायत कर देंगे। उनके आने से पहले बुलाओ डिलीवरी वाले को।

रोहित (ग़ुस्से में)- 15 मिनट का रास्ता है तब भी नहीं आ पा रहा है अब मैं इसको नेगेटिव रिमार्क दूँगा।

तभी दरवाज़े की घंटी बजती है, रोहित दरवाज़ा खोलता है।

दरवाज़ा खोलते ही रोहित हक्का-बक्का रह जाता है, उसके मुँह से डिलीवरी वाले के लिये एक शब्द भी नहीं निकलता है।

डिलीवरी वाला- बेटा माफ़ करना थोड़ा साइकिल ख़राब हो गई थी, ठीक करने में लेट हो गया। मैंने जान बूझकर लेट नहीं किया है, कृपया कोई ग़लत रिमार्क मत देना। डिलीवरी वाला ऑर्डर देकर चला जाता है।

रोहित की आँखों में नमी आ जाती है वो अपने ग़ुस्से पर पछता रहा था कि बिना कुछ जाने समझे क्या क्या बोल रहा था वो। उसने तुरंत ऑनलाइन उसे टिप के रूप में कुछ पैसे दिए।

उसे तो इस इंसान को सेल्यूट करना चाहिए कि एक हाथ ना होने पर और साइकिल से वो इतनी इतनी दूर डिलीवरी करने जाता है और हम सही सलामत अपने घरों में होकर सिर्फ़ इंतज़ार करने पर इतना झुंझला जाते है।

आदरणीय पाठकों, ये बात सत्य है आज की तेज रफ़्तार वाली ज़िंदगी में हमे हर चीज़ तुरंत और बिना किसी विलंब के चाहिए, पर हम कभी सामने वाले की मजबूरी, उसकी व्यथा को समझना ही नहीं चाहते। घर, दफ़्तर कही भी हो कभी कभी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का हाल चाल ज़रूर लें, और ज़रूरत पड़ने पर उनकी सहायता भी करे

ये मेरी पहली लघुकथा है, जो सत्य घटना पर आधारित है। आशा है कि आप सबको पसंद आएगी। 

स्वरचित

रश्मि सिंह

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